बॉम्बे हाईकोर्ट ने 16 साल की यौन उत्पीड़न पीड़िता को 23 सप्ताह का गर्भ समाप्त करवाने की अनुमति दी
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को यौन उत्पीड़न की शिकार एक 16 साल की किशोरी को 23 हफ्ते का गर्भ समाप्त करवाने की अनुमति दे दी।
न्यायमूर्ति केके टटेड और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की अवकाश पीठ ने नाबालिग के पिता की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार कर लिया है।
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि,
''...इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस गर्भावस्था को जारी रखने से याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंच रही है। इसके अलावा, निश्चित रूप से, उसकी 16 वर्ष की उम्र को देखते हुए, उसके जीवन के लिए एक अंतर्निहित जोखिम भी है।''
आरोपी कथित तौर पर पीड़िता के पड़ोस में ही रहता था और उसने उसका यौन उत्पीड़न किया। जब पीड़िता की मां ने उसके पेट में बदलाव को देखा तो वह उसे एक डाक्टर के क्लिनिक पर ले गई,जहां पर पीड़िता के गर्भवती होने के बारे में पता चला।
बाद में एक अस्पताल में हुई चिकित्सा-कानूनी जांच में भी गर्भावस्था की पुष्टि की गई।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि बलात्कार के अपराध के कारण पीड़िता गर्भवती हो गई और इस गर्भावस्था के कारण पीड़िता को मानसिक आघात झेलना पड़ रहा है,जो अब उसके मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीर चोट पहुंचा रहा है। इसके अलावा, इतनी कम उम्र में गर्भावस्था के कारण उसकी जान को भी खतरा है।
मेडिकल बोर्ड ने पाया कि नाबालिग और भ्रूण ठीक हैं, लेकिन न तो उसके माता-पिता और न ही वह गर्भावस्था को जारी रखना चाहती है। बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है, ''नाबालिग (16 साल की) गर्भावस्था से परेशान है।''
रिपोर्ट में गर्भावस्था को समाप्त करने की सिफारिश की गई है, क्योंकि इसके जारी रहने से नाबालिग मां पर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का तनाव होगा। बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भपात भी गर्भवती नाबालिग के लिए काफी जोखिम भरा है, क्योंकि यह 23 सप्ताह का गर्भ है। अदालत में यह भी प्रस्तुत किया गया था कि रिपोर्ट के तथ्यों के बारे में नाबालिग और उसके माता-पिता को बता दिया गया है।
कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के एक फैसले का उल्लेख किया, जिसमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3, 4 और 5 और 20 हफ्ते की वैधानिक अवधि के बाद भी प्रेग्नेंसी के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति कैसे दी जा सकती है?,इस बात पर विचार किया गया था। डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया था कि जहाँ गर्भावस्था की निरंतरता माँ की शारीरिक या मानसिक सेहत को गंभीर चोट पहुँचाती हो, वो ऐसी माँ की गोपनीयता,प्रजनन विकल्प चुनने, शारीरिक पवित्रता और उसकी गरिमा के मौलिक अधिकार का गंभीर अपमान होगा। यह विशेष रूप से तब जरूर होगा जब गर्भवती मां को गर्भावस्था जारी रखने के लिए इसलिए मजबूर किया जाता है क्योंकि गर्भावस्था 20 सप्ताह से ज्यादा की हो गई है।
उद्धृत निर्णय के अलावा, न्यायालय ने धारा 3 के स्पष्टीकरण 1 का उल्लेख किया जो निर्दिष्ट करता है कि यदि गर्भावस्था महिला के साथ किए गए बलात्कार के कारण होती है, तो यह माना जाएगा कि गर्भावस्था के कारण होने वाली पीड़ा महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चोट का गठन करेगी। व्याख्या में ''अनुमानित किया जाएगा'' शब्द का उपयोग किया गया है।
इस आलोक में, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि गंभीर चोट से पहुंची पीड़ा ''स्पष्ट रूप से विद्यमान'' है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि गर्भावस्था को जारी रखने से पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंच रही है। कोर्ट ने कहा कि,''इसके अलावा, जाहिर है, 16 साल की उम्र को देखते हुए, उसके जीवन के लिए एक अंतर्निहित जोखिम भी है।''
टर्मिनेशन करने का आदेश देते हुए, अदालत ने अतिरिक्त रूप से निर्देश दिया कि भ्रूण के टिशू को डीएनए पहचान और इस मामले में चल रही आपराधिक जांच के उद्देश्यों के लिए के लिए एकत्र करके रखा जाए।
बच्चे के जीवित पैदा होने की स्थिति में, यदि नाबालिग के माता-पिता बच्चे की देखभाल करने के इच्छुक नहीं हैं या उसकी देखभाल करने में असमर्थ हैं, तो राज्य को उसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।
संबंधित चिकित्सक को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे के जीवित होने की स्थिति में, बच्चे के जीवन को बचाने के लिए आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
इन शर्तों पर याचिका को अनुमति दे दी गई।
केस का शीर्षकः एक्स बनाम महाराष्ट्र राज्य
प्रतिनिधित्वः याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट रुचिता पडवाल व एडवोकेट अदिति सक्सेना। प्रतिवादी/राज्य के लिए सरकारी वकील पी.एच. कंथारिया
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