ब्लैकलिस्टिंग | कानून का शासन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ पारित ब्लैकलिस्टिंग ऑर्डर और माइनिंग लीज़ को रद्द करने के आदेश को रद्द करते हुए हाल ही में कहा कि एक सभ्य समाज में, कानून का शासन बनाए रखने के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।
यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता को आक्षेपित आदेश पारित करने से पहले नहीं सुना गया था, अदालत ने उसे पट्टे पर दी गई भूमि पर काम करने की अनुमति देने के निर्देश पारित किए।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस शेखर बी सराफ की खंडपीठ ने कहा कि,
"यह कुछ लोगों को लग सकता है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन एक बोझिल प्रक्रिया है, लेकिन हम पाते हैं कि सभ्य समाज में यदि कानून का शासन होना है तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए।"
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता को खनन और पत्थर तोड़ने के लिए 10 साल का पट्टा दिया गया था। पट्टे का संचालन करते समय, यह आरोप लगाते हुए एक नोटिस दिया गया था कि उत्तर प्रदेश लघु खनिज (रियायत) नियम, 2021 के नियम 3 और 58 का उल्लंघन करते हुए पट्टे के क्षेत्र के बाहर अवैध खनन किया गया था। इस नोटिस में याचिकाकर्ता के खिलाफ 1,70,06,000/- का जुर्माना लगाया गया था।
जिसके बाद याचिकाकर्ता ने व्यथित होकर रिट याचिका दायर की थी, जिसमें अदालत ने शुरू में निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता नोटिस का जवाब दाखिल करे। हालांकि, इसके बाद, आक्षेपित आदेश के आधार पर, याचिकाकर्ता को 2 साल के लिए ब्लैक दिया गया और उसका पट्टा रद्द कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क देने के लिए कि लिए कि चूंकि याचिकाकर्ता का पक्ष नहीं सुना गया था, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन नहीं हुआ था, जो कि लागू आदेश को रद्द करने के लिए पर्याप्त था, द बोर्ड ऑफ हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एजुकेशन, यूपी और अन्य बनाम कुमारी चित्रा श्रीवास्तव और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया।
अदालत ने सोनभद्र के जिला मजिस्ट्रेट को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा कि रद्द करने और काली सूची में डालने का आदेश जल्दबाजी में क्यों पारित किया गया।
जिलाधिकारी ने अपने शपथ पत्र के माध्यम से कहा कि हाईकोर्ट का आदेश उनके समक्ष नहीं रखा गया। इसके अलावा, यह दावा किया गया कि याचिकाकर्ता एक पुराना अतिक्रमणकारी था, और इस प्रकार रद्दी और काली सूची में डालने का आदेश उचित था।
कुमारी चित्रा श्रीवास्तव मामले में फैसले को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने माना कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन पट्टा रद्द करने और काली सूची में डालने के आदेश को रद्द करने के लिए पर्याप्त कारण था।
यह नोट किया गया कि याचिकाकर्ता को जवाब दाखिल करने का निर्देश देने वाला अदालत का आदेश स्थायी वकील की उपस्थिति में पारित किया गया था। इस प्रकार जिलाधिकारी ने न्यायालय के आदेश की अवहेलना की है।
उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर, अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से उसकी जमीन पर काम करने की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ता को एक सप्ताह के भीतर नया जवाब दाखिल करने के निर्देश भी जारी किया जिस पर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा व्यक्तिगत सुनवाई के बाद फैसला सुनाया जाएगा।
केस टाइटल: मां विंध्य स्टोन क्रशर कंपनी बनाम यूपी राज्य और न्य WRIT-C No 25003/2023