शराबबंदी लागू करने में सरकार की विफलता के कारण बिहार के नागरिकों की जान जोखिम में: पटना हाईकोर्ट ने चीफ जस्टिस से मामले का संज्ञान लेने का अनुरोध किया
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बिहार राज्य प्राधिकरण राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू करने में विफल रहे हैं और प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने में राज्य की विफलता के कारण बिहार के नागरिकों के जीवन को जोखिम में डाला दिया है।
जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की पीठ ने हाईकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि उसका आदेश और उसमें दी गई टिप्पणियों को चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए ताकि वह व्यापक जनहित के लिए जनहित याचिका स्थापित करने के लिए न्यायिक पक्ष में इस मुद्दे का संज्ञान ले सकें।
पीठ नीरज सिंह नामक एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर विचार कर रही थी (जो पिछले साल नवंबर से शराबबंदी से संबंधित मामले में जेल में है और अब उसकी जमानत याचिका की अनुमति दी गई है)। सुनवाई के दरमियान कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की सचेत निष्क्रियता के कारण शराब के निर्माण और तस्करी में हो रही वृद्धि से कोर्ट अवगत है।
#BiharLiquorBan
— Live Law (@LiveLawIndia) October 18, 2022
The #PatnaHighCourt recently observed that the Bihar State authorities have failed to implement complete liquor prohibition in the State. It also said that the lives of Bihar citizens are risked due to the state's failure to effectively implement the ban. pic.twitter.com/WUtVTU4bIK
अदालत ने अपने समक्ष रखे गए पुलिस रिकॉर्ड को भी ध्यान में रखा, जिसमें कहा गया था कि पिछले साल अक्टूबर तक बिहार निषेध और उत्पाद अधिनियम के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए थे और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गई थीं। कोर्ट ने कहा कि बिहार सरकार के अधिकारी भी मानते हैं कि बड़ी संख्या में शराब पीने वालों की गिरफ्तारी के कारण राज्य की जेलों में भीड़भाड़ हो रही है।
कोर्ट ने कहा,
"निषेध के कारण सस्ती शराब और नशीली दवाओं की खपत ने न केवल अवैध शराब की समानांतर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, बल्कि शराब से संबंधित समस्या भी बढ़ी है। यह पाया गया है कि मामूली मजदूरों को बड़े पैमाने पर जुर्माना लगाया गया है, जिसे वह दे नहीं सकते और उन्हें कर्ज लेना पड़ा, जिसके उन्हें मौत की ओर धकेल दिया है। यह दर्ज किया गया है कि 18 से 35 वर्ष के आयु वर्ग के अधिकांश नागरिक शराब के आदी हैं। यह आयु वर्ग सबसे अधिक उत्पादक आयु वर्ग है...। शायद, राज्य ने ऐसे दुरुपयोग के खतरे से निपटने के लिए कोई निवारक उपाय नहीं किया है।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि शराब पर प्रतिबंध के बाद, कई लोगों ने विकल्प की तलाश शुरू कर दी और इसलिए, सतर्कता की कमी के बीच राज्य में नशीली दवाओं ने आसानी से प्रवेश किया है।
"आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से पहले, ड्रग्स से संबंधित शायद ही कोई मामला था, लेकिन 2015 के बाद, यह खतरनाक रूप से बढ़ गया है। इससे भी अधिक चिंताजनक प्रवृत्ति यह है कि अधिकांश नशेड़ी 10 साल से 25 साल की उम्र के हैं। आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी के बाद गांजा चरस/भांग की लत में तेजी आई है। राज्य पूरे बिहार में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने में विफल रहा है।'
कोर्ट ने यह भी कहा कि शराब बंदी के बाद, राज्य में हर दिन बड़ी संख्या में जहरीली शराब की घटनाएं हो रही हैं। कोर्ट ने कहा, "न केवल नकली शराब बल्कि बड़े पैमाने पर अवैध दवाओं के सेवन से भी लोगों की जान को बहुत खतरा है।"
केस टाइटलः नीरज सिंह बनाम बिहार राज्य