[भीमा कोरेगांव- एल्गर परिषद केस]: स्पेशल एनआईए कोर्ट ने फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका खारिज करने की वजह बताई

Update: 2021-03-24 06:54 GMT

मुंबई की स्पेशल एनआईए कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट दायर होने के बाद भी अगर जांच एजेंसी को आगे की जांच के लिए अनुमति दी गई है तो  एक आरोपी की जमानत याचिका  खारिज करते समय पुलिस अधिकारी की आंतरिक रिपोर्ट पर विचार किया जा सकता है ।

विशेष न्यायाधीश डीई कोथलीकर ने सोमवार को 83 वर्षीय ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी की जमानत की अर्जी को खारिज करते हुए ऐन वक्त पर सहायक पुलिस अधीक्षक एनआईए की जांच रिपोर्ट का हवाला दिया।

न्यायाधीश ने कहा कि, यदि कोर्ट केस डायरी के सबूतों को ध्यान में नहीं रखता है तो इस मामले में आगे की जांच के लिए अनुमति देने का कोई मतलब नहीं है। न्यायाधीश ने फादर स्टेन के इस विवाद को खारिज कर दिया कि जब चार्जशीट पहले ही दाखिल की गई है तो केस डायरी का उपयोग जमानत रद्द करने के लिए नहीं किया जा सकता है।

अधिकारी ने रिपोर्ट में दावा किया कि उन्होंने दस्तावेजों का विश्लेषण किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि फादर स्टेन और उनका एनजीओ बगैचा "माओवादियों के हितों में सहयोग करता था, क्योंकि उनका एनजीओ एक अन्य ट्राइबल राइट्स ऑर्गेनाइजेशन विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन (वीवीजेवीए) के साथ संबंध रखता है, जो प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का एक फ्रंट ऑर्गेनाइजेशन है।

फादर स्टेन को 8 अक्टूबर 2020 को रांची में उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। फादर स्टेन ने दावा किया था कि उन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए टारगेट किया जा रहा है। इसके अलावा फादर स्टेन ने कहा कि एनजीओ बगैचा आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित है, जिसमें माओवादियों के साथ आरोपित नाबालिगों की अवैध हिरासत के खिलाफ लड़ाई शामिल है।

विवादास्पद पत्र

कोर्ट ने फादर स्टेन के यहां से बरामद विवादास्पद पत्र और 140 ईमेल और मामले के सह-अभियुक्तों का हवाला देते हुए कहा कि उपरोक्त संचार से यह पता चलता है कि आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत हैं कि वह संगठन के उद्देश्य में गतिविधियों को आगे बढ़ाना में शामिल था।

कोर्ट ने फादर स्टेन के उन तर्कों को खारिज कर दिया, जिसमें फादर स्टेन ने ट्रायल के समय दस्तावेजों की प्रामाणिकता पर विचार नहीं करने पर सवाल उठाया।

फादर स्टेन ने साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) की धारा 85-बी का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जांच अधिकारी ने जानबूझकर जब्त इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का हैश वैल्यू नहीं दिया ताकि सबूतों के साथ छेड़छाड़ की जा सके। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष की सुनवाई योग्य साक्ष्य पर भरोसा कर रहा है।

अदालत ने शीर्ष अदालत के समक्ष ज़हूर अहमद शाह वटाली के मामले पर भरोसा जताया। इसमें यह फैसला सुनाया गया था कि ट्रायल के समय दस्तावेजों की स्वीकार्यता का सवाल उठाया जा सकता है।

फादर स्टेन स्वामी ने अपने वकील शरीफ शेख के माध्यम से दिसंबर 2020 की कारवां की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सह-आरोपी रोना विल्सन को फंसाने के लिए उनके कंप्यूटर में पत्र लिखा गया। अदालत ने कहा कि इस तरह की बाहरी सबूतों पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह मामला विचाराधीन है।

इसलिए अदालत के समक्ष रखे जाने वाले सबूतों के रूप में कोई भी टिप्पणी करना न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करना माना जाएगा। वास्तव में, इस तरह के अधिनियम को पदावनत करने की आवश्यकता है। हालांकि, अदालत ने पत्रिका के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया।

हिंदी भाषी गवाह अंग्रेजी में दिए गए भाषण को समझ सकता है।

फादर स्टेन द्वारा दिए गए भाषणों को सुनने वालों में से एक गवाह को जमानत की दलीलों के दौरान उद्धृत किया गया। आरोपी ने सवाल किया कि एक हिंदी बोलने वाला गवाह अंग्रेजी में दिए गए भाषण को कैसे समझ सकता है। इस पर कोर्ट कहा कि वक्ता द्वारा दिए गए भाषणों या किसी अन्य व्यक्तियों द्वारा दिए गए भाषण को समझ सकता है, हालांकि यह भाषाण उसी भाषा में नहीं था जिस भाषा को वह व्यक्ति जानता है।

कोर्ट ने देखा कि जैसा कि आवेदक द्वारा दिए गए भाषण से पता चलता है कि वह आरोपियों की रिहाई के संबंध में गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल था, जो माओवादी मामलों में शामिल थे।

यूएपीए अधिनियम की धारा 43D (5)

यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हैं कि आवेदक के खिलाफ यूएपीए के अध्याय IV और अध्याय VI के तहत दंडनीय अपराधों के आरोप के प्रथम दृष्टया सबूत हैं। आवेदक के खिलाफ यूएपीए की धारा 43 D (5) के तहत दर्ज मुकदमे में आवेदक को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि फादर स्टेन 2017 में एल्गर परिषद में मौजूद नहीं थे और 1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा में दर्ज एफआईआर में उनका नाम है।

आवेदक पर लगाए गए आरोपों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए यहा कहा जा सकता है वह आतंकवादी संगठन का सक्रिय सदस्य था। उपरोक्त तथ्य क आवेदक के पक्ष में झुकाव के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

कोर्ट ने फादर स्टेन के बिगड़ते स्वास्थ्य के आधार पर दायर जमानत याचिका को खारिज भी कर दिया। न्यायाधीश ने मसरूर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2009) 14 एससीसी 286 मामले का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि यदि आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोपों की गंभीरता को उचित परिप्रेक्ष्य में माना जाता है, तो इस तरह के मामले में आवेदक के हित के लिए उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार और जैसे कि वृद्धावस्था या कथित बीमारी के आधार आवेदक के रिहाई के पक्ष में फैसला नहीं जाएगा।

फादर स्टेन के खिलाफ दर्ज मामला

एनआईए ने आरोप लगाया है कि फादर स्टेन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं। सीपीएम के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने, अराजकता पैदा करने ,कैडर बनाने के लिए उन्हें किसी सहयोगी के माध्यम से धन भी प्राप्त किया था। इसके साथ ही उन्होंने सरकार को उखाड़ फेंकने और सैन्य अभियानों के साथ एक समानांतर सरकार स्थापित करने का प्रयास किया। हालांकि तथ्य यह है कि आवेदक उस आंदोलन का सदस्य है, जिसे माओवादी फ्रांट ऑर्गेनाइजेशन द्वारा घोषित किया गया था।

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