आदेश पांच, नियम 15 सीपीसी का सहारा लेने से पहले अपीलकर्ता को यह दिखाना होगा कि वह निवास पर नहीं था और किसी निश्‍चित अवधि में उसके पाए जाने की संभावना भी नहीं थी: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Update: 2023-03-01 11:16 GMT

Jammu and Kashmir and Ladakh High Court

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीपीसी के आदेश पांच नियम 15 (सम्मन जारी करना) में निहित प्रावधानों का उपयोग करने से पहले यह दिखाना होगा कि जब सम्मन दिया जा रहा था तब प्रतिवादी अपने निवास पर नहीं थी और एक उचित अवधि के भीतर उसके आवास पर पाए जाने की कोई संभावना भी नहीं थी।

जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा, यह भी दिखाया जाना चाहिए कि प्रतिवादी के पास कोई ऐसा एजेंट नहीं था, जिसे उसकी ओर से सम्‍मन को स्वीकार करने के लिए अधिकृत किया गया था।

उन्होंने कहा, जब उपरोक्त शर्तों का अनुपालन किया गया हो तभी आदेश पांच, नियम 15 का सहारा लिया जा सकता है।

हाईकोर्ट के समक्ष पेश मामले में अपीलकर्ता ने प्रधान जिला न्यायाधीश, कठुआ की ओर से पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसी न्यायालय की ओर से पारित सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश नौ नियम 13 के तहत एकतरफा फैसले और ‌डिक्री को रद्द करने के लिए उसकी ओर से दिए गए आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

प्रतिवादी ने जम्मू और कश्मीर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह को रद्द करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। अपीलकर्ता को सम्‍मन जारी किया गया और बताया गया कि सम्मन उसके पिता को तामील किया गया था।

जब अपीलकर्ता निर्धारित तिथि पर निचली अदालत के समक्ष पेश नहीं हुई तो एकपक्षीय कार्यवाही की गई और जम्मू और कश्मीर हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ii)(v) के तहत प्रतिवादी के पक्ष में एकपक्षीय निर्णय और तलाक की डिक्री पारित की गई।

उसी से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें एकपक्षीय फैसले और डिक्री को रद्द करने की मांग की गई। अपीलकर्ता ने सीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत विलंब की माफी के लिए एक और आवेदन दायर किया। दोनों को खारिज कर दिया गया।

अपीलकर्ता ने आक्षेपित आदेश को मुख्य रूप से इस आधार पर चुनौती दी कि सीपीसी के आदेश पांच नियम 15 के अनुसार सम्‍मन तामील नहीं किया गया है क्योंकि इसमें निहित शर्तें पूरी नहीं हुई हैं।

अपीलकर्ता ने कहा कि प्रतिवादी को पता था कि अपीलकर्ता अपने पिता के साथ नहीं रह रही थी, बल्कि लखनपुर में रह रही थी और इसके बावजूद उसने तलाक याचिका में अपीलकर्ता का गलत पता दिया ताकि उसके खिलाफ एकपक्षीय डिक्री प्राप्त की जा सके।

प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता को याचिका के लंबित होने के बारे में जानकारी थी और उसे उसके पिता ने सम्मन के विधिवत तामील होने की जानकारी दी थी हालांकि उसने अदालत में पेश न होने का विकल्प चुना।

दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद ज‌स्टिस धर ने आदेश नौ नियम 13 सीपीसी (एक-पक्षीय डिक्री को रद्द करना) का अवलोकन किया।

उन्होंने कहा, एक प्रतिवादी को एकपक्षीय डिक्री को रद्द कराने के लिए अदालत को संतुष्ट करना होगा कि सम्‍मन की विधिवत तामील नहीं की गई थी या कि जब मुकदमे की सुनवाई के लिए बुलाया गया तो उसे किसी पर्याप्त कारण से पेश होने से रोका गया।

इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि अपीलकर्ता पर सम्मन की तामील सीपीसी के आदेश पांच नियम 15 में निहित प्रावधानों का सहारा लेकर किया गया, पीठ ने स्पष्ट किया कि सीपीसी के आदेश पांच नियम 15 में निहित प्रावधानों का सहारा लेने से पहले, यह दिखाना होगा कि जब सम्‍मन की तामील की गई तब प्रतिवादी अपने निवास पर नहीं मौजूद नहीं था और उसके उचित समय के भीतर उसके निवास पर पाए जाने की कोई संभावना नहीं थी।

पीठ ने रिकॉर्ड की जांच के बाद पाया कि निचली अदालत ने अपीलकर्ता को वार्ड नंबर 15, पटेल नगर, कठुआ स्थित उसके पिता के घर के पते पर सम्‍मन जारी किया था और प्रोसेस सर्वर की रिपोर्ट से पता चला कि अपीलकर्ता उक्त पते पर मौजूद नहीं थी, हालांकि उसके पिता ने प्रोसेस सर्वर को बताया कि वह शहर से बाहर है, जिसके बाद उन्होंने अपने हस्ताक्षरों से सम्मन प्राप्त किया था।

कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने 28 अक्टूबर, 2017 को प्रोसेस सर्वर का स्टेटमेंट शपथ पर दर्ज किया था, जिसमें उन्होंने दो सम्‍मन पर रिपोर्ट की सत्यता की पुष्टि की। ट्रायल कोर्ट ने प्रोसेस सर्वर की रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए घोषित किया कि अपीलकर्ता को उसके पिता जरिए सम्मन की तामील की गई थी, और उसके खिलाफ एकतरफा कार्यवाही की गई थी।

यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को सम्मन तामील करने के कई प्रयास किए थे, अदालत ने रिकॉर्ड किया कि उसके पिता ने प्रोसेस सर्वर को यह बताते हुए सम्‍मन स्वीकार किया था कि वह उन्हें बता देंगे। और उन्होंने प्रोसेस सर्वर को यह भी नहीं बताया था कि अपीलकर्ता उसके साथ नहीं रहती, और न ही वह यह बताने के लिए निचली अदालत के समक्ष पेश हुआ, यह सभी तथ्य निचली अदालत के लिए यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त थे कि अपीलकर्ता अपने पिता के साथ रहती थी।

पीठ ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता ने किसी भी एजेंट को अपनी ओर से सम्‍मन की तामील स्वीकार करने का अधिकार नहीं दिया था, इसलिए सीपीसी के आदेश पांच नियम 15 में उल्लिखित शर्तें मौजूदा मामले में संतुष्ट थीं और तदनुसार, ट्रायल कोर्ट ने ठीक ही घोषित किया था कि अपीलकर्ता को सम्‍मन की तामील की गई थी।

कोर्ट ने कहा,

"एक बार जब वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुई तो ट्रायल कोर्ट के पास उसके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करने और एकतरफा फैसला और डिक्री पारित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।"

अपील को आधारहीन पाते हुए खंडपीठ ने उसे खारिज कर दिया।



केस टाइटल: डॉ किरण बाला बनाम डॉ अश्विनी कुमार सिंह जसरोटिया।

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 39

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