‘महज तकनीकी बातें पीड़िता की बेड़ियां नहीं बननी चाहिए’: उड़ीसा हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के मामलों में एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी पर संवेदनशीलता का आह्वान किया

Update: 2023-08-16 08:00 GMT

Orissa High Court 

उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि नाबालिगों से बलात्कार करने के मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने में हुई देरी के प्रभाव का निर्णय करते समय अदालतों को संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।

ऐसी पीड़िताओं की कठिनाइयों पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस संगम कुमार साहू की पीठ ने कहा,

“आजादी के सात दशक से अधिक समय के बाद भी, दुर्भाग्य से इस देश की महिलाओं और विशेष रूप से नाबालिग लड़कियों को यौन अपराध करने वाले अपराधियों की गिद्ध रूपी वासना से सच्ची आजादी नहीं मिली है। हालांकि, अपराध अपने आप में समाप्त नहीं होते हैं, बल्कि इनका न केवल पीड़िता के मानस पर, बल्कि उसकी और उसके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा पर भी तेजी से प्रभाव पड़ता है। ये कारक अक्सर असहाय पीड़ितों को आगे आने, अपराध की रिपोर्ट करने और न्याय की आशा को न्यायिक प्रणाली के हवाले करने से रोकते हैं।’’

अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जहां अपीलकर्ता-पिता पर अपनी नाबालिग बेटी के साथ बार-बार बलात्कार करने का आरोप लगा है। उक्त प्रत्यक्ष कृत्य लंबे समय तक, यानी लगभग सात महीने तक जारी रहा और पीड़िता अपीलकर्ता के साथ अपने रिश्ते की प्रकृति को देखते हुए किसी से इसकी शिकायत नहीं कर पाई।

जब अपीलकर्ता पीड़िता के साथ यह कृत्य करने से बाज नहीं आया तो उसने मामले की जानकारी अपनी मां को दी और उन्होंने एफआईआर दर्ज करवाई। जांच पूरी होने और मुकदमे के समापन पर, अदालत ने अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 354/354ए(2)/354बी/376(2)(एफ)(i)(के)(एन) के साथ-साथ पॉक्सो एक्ट की धारा 6 व 10 के तहत दोषी करार दिया।

दोषसिद्धि और सजा के आदेश से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उसकी ओर से उठाए गए विवादों में से एक एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी थी। अपीलकर्ता के वकील ने जोरदार तर्क दिया कि हमलों की श्रृंखला कथित तौर पर जुलाई 2015 के दौरान शुरू हुई थी लेकिन एफआईआर फरवरी 2016 में दर्ज करवाई गई थी।

यह प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता और उसकी मां की ओर से घटना की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस से संपर्क करने में अनुचित देरी हुई है, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला संदिग्ध हो गया। हालांकि, अदालत ने पीड़िता के सबूतों के आधार पर इस तरह के तर्क को सिरे से खारिज कर दिया, जिसकी उसकी मां ने विधिवत पुष्टि की थी।

न्यायालय ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों में, अभियोजन के मामले पर देरी के प्रभाव का निर्णय करते समय ट्रायल कोर्ट को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए क्योंकि किसी परिवार के लिए पुलिस को ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट करने से पहले समय लेना असंभव नहीं है, खासकर जब आरोपी कोई और नहीं बल्कि पीड़िता का पिता ही हो।

कोर्ट ने कहा,“उनकी मजबूरियों को अदालतों द्वारा सहानुभूतिपूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिए और न्यायिक संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपराधिक न्यायशास्त्र की मामूली तकनीकी बातें पीड़ित होने की बेड़ियां न बनें व पीड़ितों को चुपचाप अपना दर्द सहने के लिए मजबूर न करें। इसलिए, चाइल्ड रेप के मामले में एफ.आई.आर. दर्ज करने में हुई देरी को बहुत संवेदनशीलता के साथ लिया जाना चाहिए और संबंधित न्यायालयों को उन सभी कारकों पर विवेकपूर्ण ढंग से विचार करना चाहिए जिनके कारण ऐसी देरी हुई है। अन्यथा यह पीड़िता के सराहनीय/गुण-संपन्न मामले को खारिज करने के लिए उसकी चोट पर नमक छिड़कने के अलावा और कुछ नहीं है क्योंकि वह समयबद्ध तरीके से न्याय के द्वार पर दस्तक देने में विफल रही है।’’

इसलिए, सभी तथ्यों और आसपास की परिस्थितियों पर विचार करते हुए, न्यायालय की यह सुविचारित राय थी कि इस मामले में केवल एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी से न्यायालय को अभियोजन के मामले को अस्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, जो अन्यथा भरोसेमंद लगता है।

तदनुसार, पीड़िता और उसकी मां की गवाही और रिकॉर्ड पर उपलब्ध अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने अपीलकर्ता को दोषी करार देने और सजा देने के आदेश को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल-टीबी बनाम ओडिशा राज्य

केस नंबर- जेसीआरएलए नंबर-75/2019

फैसले की तारीख-2 अगस्त, 2023

अपीलकर्ता के वकील- श्री राजीब लोचन पटनायक, एमिकस क्यूरी

राज्य के लिए वकील- श्री मनोरंजन मिश्रा, अतिरिक्त स्थायी वकील

साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (ओआरआई) 85

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