‌‌दिल्‍ली बार काउंसिल ने वकीलों के खिलाफ लंबित शिकायतों का विवरण मांगने के सिंगल जज के आदेश को चुनौती दी, हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

Update: 2023-03-22 08:46 GMT

दिल्‍ली बार काउंसिल (बीसीडी) ने ‌दिल्ली हाईकोर्ट के सिंगल जज बेंच के एक आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि स्टेट बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) अनुशासनात्मक कार्यवाही से संबंधित अपने दैनिक मामलों के लिए रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं हैं।‌

उल्लेखनीय है कि जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने पिछले महीने बीसीडी को वकीलों के खिलाफ लंबित संभी शिकायतों का विवरण रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया था। मांगी गई जानकारी में शिकायत दर्ज करने की तारीख और पहली नोटिस जारी करने की तारीख भी शामिल है।

इस आदेश के खिलाफ बीसीडी ने अपील दायर की है।

चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सचिन दत्ता की खंडपीठ ने आज अपील पर नोटिस जारी किया और इसे 17 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। बीसीडी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता और एडवोकेट केसी मित्तल, एडवोकेट अजय कुमार अग्रवाल और एडवोकेट सचिन जैन ने किया।

अपील में कहा गया,

“… आक्षेपित आदेश में विद्वान सिंगल जज की ओर से किया गया अवलोकन ‌दिल्ली बार काउंसिल और उसके सदस्यों के कामकाज पर संदेह करने का प्रभाव रखता है, जिससे न केवल निकाय की गरिमा कम हुई है, बल्कि दिल्ली बार काउंसिल के पूरे कामकाज को बेमानी बना दिया है।"

बीसीडी ने प्रस्तुत किया है कि विवादित आदेश एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की योजना के अनुरूप नहीं है, जिसमें कहा गया है कि स्टेट बार काउंसिल, बीसीआई अनुशासनात्मक कार्यवाही से संबंधित मामलों के लिए रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी नहीं है।

याचिका में कहा गया है,

"माननीय सुप्रीम कोर्ट को छोड़कर, हाईकोर्ट या किसी अन्य कोर्ट द्वारा रिट क्षेत्राधिकार के माध्यम से हस्तक्षेप का कोई प्रावधान नहीं है।"

एडवोकेट्स एक्ट की विधायी योजना का उल्लेख करते हुए, याचिका में कहा गया है कि यह केवल उन मामलों के ‌लिए है, जहां बार काउंसिल का पूरा सदन दोषी वकील के जवाब या स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है। ऐसी स्थिति मे शिकायत को आगे की कार्रवाई के लिए अनुशासन समिति को संदर्भित किया जाता है।

आक्षेपित आदेश में जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा था कि बार काउंसिल को बार-बार शिकायत करने के कारण वकीलों को "उत्पीड़न और हताशा में डाला जा रहा है", जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। जब तक कदाचार का कोई गंभीर मामला नहीं बनता है, तब तक इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है।

वह चार वकीलों की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें बीसीडी द्वारा 13 फरवरी को जारी नोटिस को चुनौती दी गई थी। नोटिस में उन्हें 24 फरवरी को बार काउंसिल के कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया था। बीसीडी ने 13 जनवरी को दायर एक शिकायत का संज्ञान लेने के बाद नोटिस भेजे थे।

बीसीडी की अपील में चारों वकील प्रतिवादी हैं।

केस टाइटल: काउंसिल ऑफ दिल्ली बनाम एमएस मालविका चौधरी व अन्य


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