'वकील के आचरण पर अनावश्यक टिप्पणी से बचें': उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश में वकील के खिलाफ की गई टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने हटाया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जजों को वकील के आचरण पर ऐसी अनावश्यक टिप्पणियों से बचना चाहिए, जिनका न्यायालय के समक्ष मौजूद विवाद के फैसले पर कोई असर ना हो। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने यह टिप्पणी, उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा एक आदेश में एक वकील के खिलाफ की गई कुछ टिप्पणियों को हटाने का निर्देश देते हुए की।
वकील ने फैसले में अपने खिलाफ की गई कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने दलील दी थी कि उनके आचरण पर केवल इसलिए प्रतिकूल टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए क्योंकि संबंधित जज को अपनी मुवक्किल की ओर से वकील द्वारा किए गए प्रयास पसंद नहीं आए।
अदालत ने अपीलकर्ता के वकील द्वारा उद्धृत विभिन्न उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा, "जबकि न्याय प्रशासन के क्षेत्र में जजों को स्वतंत्र रूप से और निडर होकर और किसी के हस्तक्षेप के बिना अपने कार्यों का निर्वहन करने की अनुमति देना मौलिक महत्व का है, जजों के लिए यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि वे संयम बरतें और वकील के आचरण पर ऐसी अनावश्यक टिप्पणी से बचें, जिसका न्यायालय के समक्ष विवाद के निर्णय पर कोई असर नहीं हो सकता है।",
पीठ ने कहा कि टिप्पणी जज की व्यक्तिगत धारणा पर आधारित प्रतीत होती है और प्रतिकूल टिप्पणियों को दर्ज करने से पहले, वकील को अपना स्पष्टीकरण देने का कोई अवसर नहीं दिया गया था।
पीठ ने कहा, "इस तरह दर्ज की गई टिप्पणियों से अपीलकर्ता की पेशेवर ईमानदारी पर आक्षेप लगाया है। वकील की इस तरह की निंदा, उसे सुनवाई का अवसर दिए बिना, ऑडी अल्टरम पार्टेम के सिद्धांतों की उपेक्षा होगी। ऐसी स्थितियों में संयम और गंभीरता की अपेक्षित मात्रा की आपत्तिजनक टिप्पणियों में कमी पाई जाती है। अपीलकर्ता के खिलाफ दर्ज की गई टिप्पणियों का आशय न केवल उसे अपने पेशेवर सहयोगियों के बीच अपमानित करेगा, बल्कि उसके पेशेवर करियर पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। यदि अदालत के फैसले में टिप्पणियों को हटाया नहीं जाता है , यह एक दाग़ होगा जिसे अपीलकर्ता को जीवन भर सहन करना होगा। उसे इस प्रकार पीड़ित होने की अनुमति देना, हमारे विचार में पूर्वाग्रही और अन्यायपूर्ण होगा"।
उन टिप्पणियों को हटाने का आदेश देते हुए, पीठ ने कहा कि अदालत के फैसले पर की गई टिप्पणियां भी अनावश्यक थीं।
केस टाइटिल: नीरज गर्ग बनाम सरिता रानी; सीए 4555 - 4559 ऑफ 2021
कोरम: जस्टिस आरएफ नरीमन और हृषिकेश रॉय
सिटेशन: एलएल 2021 एससी 338