हत्या का प्रयास नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता के अंडकोष को दबाने के दोषी व्यक्ति की सजा कम की

Update: 2023-06-26 14:51 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के प्रयास के आरोप में एक आरोपी को दी गई सजा को संशोधित किया और उसे झगड़े के दौरान शिकायतकर्ता के अंडकोष को दबाने के लिए आईपीसी की धारा 325 के तहत गंभीर चोट के लिए सजा को कम कर दिया।

जस्टिस के नटराजन की एकल न्यायाधीश पीठ ने दोषी परमेश्वरप्पा द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसे आईपीसी की धारा 307 के तहत दंडनीय अपराध के लिए सात साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट ने दोषी की सजा संशोधित करते हुए उसे आईपीसी की धारा 325 के तहत तीन साल की कैद की सजा सुनाई।

पीठ ने कहा,

''मौके पर आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच झगड़ा हुआ था। उस झगड़े के दौरान आरोपी ने अंडकोष को दबा दिया, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी हत्या के इरादे से आया था या तैयारी के साथ आया था। यदि उसने हत्या की तैयारी की होती या हत्या करने का प्रयास किया तो वह हत्या करने के लिए अपने साथ कुछ घातक हथियार ला सकता था।"

शिकायतकर्ता के अनुसार, 15.03.2010 को आरोपी उसे घूर रहा था और रात में आरोपी हत्या करने के इरादे से आया और उसके साथ झगड़ा किया, उसे गंदी भाषा में गालियां दीं और उसके अंडकोष को दबा दिया और शरीर के नाजुक।हिस्से में अंदरूनी चोटें पहुंचाईं।

ट्रायल के दौरान अभियोजन पक्ष ने 10 गवाहों से पूछताछ की और जिसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया।

अपील में आरोपियों ने दलील दी कि कथित चश्मदीद गवाहों ने घटना नहीं देखी थी और वे पीड़ित के गिरने के बाद आए थे, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वे चश्मदीद गवाह हैं। आगे यह भी तर्क दिया गया कि डॉक्टरों ने शिकायतकर्ता को लगी चोट के बारे में कुछ भी नहीं बताया कि इससे उसकी जान को खतरा हो सकता था।

गवाहों के साक्ष्य और ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए तर्क पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, “अभियोजन पक्ष के गवाह ,1 (शिकायतकर्ता) के अंडकोष को जो चोट लगी है, वह निश्चित रूप से शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और सामान्य दृष्टिकोण से यदि अंडकोष में कोई चोट लगी है, यदि उसने इलाज नहीं करवाया होता तो इससे मृत्यु हो जाती, इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्ता को निजी अंग को चोट पहुंचाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, जिससे मृत्यु हो सकती है।

कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी पूर्व-योजना के तहत हत्या के इरादे से कोई घातक हथियार लाया था। इसमें कहा गया है कि अंडकोष शरीर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो मौत का कारण बन सकता है और चूंकि शिकायतकर्ता को सर्जरी करानी पड़ी और अंडकोष निकालने पड़े इसलिए अदालत ने गंभीर चोट के लिए आदेश पारित किया।

बेंच ने कहा,

"यह वह मामला है जो स्पष्ट रूप से किसी भी घातक हथियार का उपयोग किए बिना झगड़े के दौरान आरोपी द्वारा पहुंचाई गई गंभीर चोट की श्रेणी में आता है। इसलिए, मेरा मानना ​​है कि आईपीसी की धारा 307 के तहत दंडनीय अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने की सजा सही नहीं है और आरोपी द्वारा किया गया अपराध स्पष्ट रूप से आईपीसी की धारा 325 के अंतर्गत आता है।"

इसके बाद कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।

केस टाइटल: परमेश्वरप्पा और राज्य

केस नंबर: आपराधिक अपील नंबर. 242/2012

आदेश की तिथि: 01-06-2023

अपीयरेंस: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट राजेंद्र एस अंकलकोटी।

प्रतिवादी की ओर से एचसीजीपी रश्मी जाधव।

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