एएसजे ने एक अभियुक्त को अग्रिम जमानत दे दी, जबकि इसी मामले में अन्य को राहत देने से इनकार कर दियाः पटना हाईकोर्ट ने प्रशासनिक पक्ष से जांच के लिए कहा

Update: 2021-02-07 04:00 GMT

पटना हाईकोर्ट ने पिछले दिनों एक ही मामले में परस्पर विरोधी आदेश पारित करने के लिए पटना सिटी उप-डिवीजन के एएसजे-I के खिलाफ एक प्रशासनिक जांच का आह्वान किया है। एएसजे ने हत्या के एक मामले में एक आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी परंतु इसी मामले में दूसरे आरोपी को राहत देने से इनकार कर दिया था,जबकि दोनों आरोपियों पर एक समान आरोप लगाए गए थे।

न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार की खंडपीठ सू मोटो क्रिमनल रिविजन मामले की सुनवाई कर रही थी। इस मामले में पटना सिटी के एडीशनल सेशन जज-I द्वारा पारित 23 दिसंबर, 2019 के आदेश की शुद्धता और न्यायिक औचित्य पर सवाल उठाया गया था। जो ए.बी.पी नंबर 9658/2019 में पारित किया गया था।

संक्षेप में मामला

सू-मोटो क्रिमनल रिविजन की शुरुआत करते हुए, बेंच ने देखा था कि पुतुर पासवान व ब्रिंद पासवान के खिलाफ लगाए गए आरोप एक जैसे ही हैं। दोनों ने ही कट्टा और लोहे की राॅड का उपयोग किया था और मामले के शिकायतकर्ता सहित तीन लोगों के सिर पर व शरीर के अन्य हिस्सों पर हमला किया था। जबकि पीठासीन अधिकारी ने पुतुर पासवान को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था और ब्रिंद पासवान को अग्रिम जमानत दे दी। इस हमले में शिकायतकर्ता की मां की चोट लगने के कारण मौत हो गई थी।

मामले की सुनवाई करने वाले पीठासीन न्यायाधीश ने विपरीत पक्षकार-ब्रिंद पासवान की अग्रिम जमानत के लिए प्रार्थना पर विचार किया था और 23 दिसंबर 2019 को अग्रिम जमानत के लिए उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया था, जबकि इसी पीठासीन अधिकारी ने 11 नवंबर 2019 को पुतुर पासवान को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था।

जब इस मामले में एक रिपोर्ट मंगवाई गई, तो जिला न्यायाधीश, पटना (10 सितंबर 2020 को भेजे गए पत्र के जरिए) ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया था कि पीठासीन न्यायाधीश द्वारा ब्रिंद पासवान और पुतुर पासवान की अग्रिम जमानत से संबंधित मामलों में दिए गए आदेश असंगत प्रकृति के थे।

अदालत की टिप्पणियां

कोर्ट ने मामले के तथ्यों और ब्रिंद पासवान (जिसे अग्रिम जमानत दी गई थी) और पुतुर पासवान (जिसे अग्रिम जमानत नहीं दी गई थी) की कथित भूमिकाओं का विश्लेषण किया और पाया कि,

''विपरीत पक्षकार-ब्रिंद पासवान को अग्रिम जमानत देने के दौरान, एएसजे ने इस बात पर विचार नहीं किया कि ब्रिंद पासवान का मामला पुतुर पासवान से अलग कैसे था,जबकि उसे पहले ही अग्रिम जमानत देने से इनकार किया जा चुका था।''

न्यायालय ने आगे कहा,

''निचली अदालत ने इस बात पर विचार नहीं किया वह पहले खुद ही मामले के सह-अभियुक्त पुतुर पासवान को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर चुकी है, जबकि पुतुर पासवान और ब्रिंद पासवान के खिलाफ लगाए गए आरोप समान थे। परंतु पुतुर को अग्रिम जमानत देने इनकार करने के कुछ दिन बाद ही ब्रिंद को अग्रिम जमानत दे दी गई।''

इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि लागू किया गया आदेश न्यायिक मन के गैर-आवेदन से ग्रस्त है, रिकॉर्ड की त्रुटि का परिणाम है और रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर ठीक से विचार नहीं किया गया है यानी ब्रिंद पासवान द्वारा किए गए गंभीर अपराध पर विचार न करना।

इसलिए, लगाया गया आदेश कानून की नजर में उचित नहीं है। ऐसे में उसे रद्द करते हुए रिविजन एप्लीकेशन को स्वीकार किया जा रहा है।

वहीं विपरीत पक्षकार-ब्रिंद पासवान को निर्देश दिया जा रहा है कि वह चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करें और नियमित जमानत के लिए आवेदन दायर करें।

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,

''चूंकि इस न्यायिक अधिकारी ने रिकॉर्ड पर आई सामग्री के खिलाफ एक ही मामले में परस्पर विरोधी आदेश पारित किए हैं, इसलिए न्यायिक अधिकारी के न्यायिक दृष्टिकोण में दर्शाए गए आचरण और निष्पक्षता की प्रशासनिक पक्ष में जांच की आवश्यकता हो सकती है।''

इसलिए, न्यायालय ने निर्देश दिया है कि आदेश की काॅपी और इस क्रिमनल रिविजन एप्लीकेशन के न्यायिक रिकॉर्ड के साथ-साथ Cr.Misc. No. 1095 of 2020 को भी मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाए ताकि वह जरूरी कदम उठा सकें।

केस का शीर्षक - बिहार राज्य बनाम ब्रिंद पासवान

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