'ऐसा लगता है कि गिरफ्तारी एक संदेश भेजने के लिए की गई हैं': एंटी-सीएए प्रदर्शन के मामले में संयुक्त राष्ट्र अधिकार विशेषज्ञों ने कहा
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने शुक्रवार को भारत से कहा है कि उन मानवाधिकार रक्षकों को तुरंत रिहा किया जाए, जिनको राष्ट्र के नागरिकता कानूनों में बदलाव के खिलाफ विरोध करने के मामले में गिरफ्तार किया गया है।
विशेषज्ञों ने कहा कि-
''इन मानवाधिकार रक्षकों में से कई छात्र हैं। ऐसा लग रहा है कि इनको केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया है हैं क्योंकि उन्होंने सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) के खिलाफ निंदा और विरोध करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया है। वहीं इनकी गिरफ्तारी स्पष्ट रूप से डिजाइन की गई है ताकि भारत के जीवंत नागरिक समाज में यह संदेश दिया जा सकें कि सरकार की नीतियों की आलोचना बर्दाश्त नहीं की जाएगी।''
उन्होंने विशेष रूप से मीरन हैदर, गुलफिशा फातिमा, सफूरा जरगर, आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता, नताशा नरवाल, खालिद सैफी, शिफा उर रहमान, डॉ कफील खान, शरजील इमाम और अखिल गोगोई की गिरफ्तारी का हवाला दिया है।
उन्होंने पाया है कि विभिन्न मामलों में से सबसे खतरनाक मामला एक गर्भवती दिल्ली की छात्रा सफूरा जरगर का है,जो उनकी चिंता का कारण बना है। जिसे दो महीने से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया था और इस दौरान कथित तौर पर उसे एकान्त कारावास के समान ही रखा गया था। जिसको अंततः मानवीय आधार पर 23 जून 2020 को गर्भावस्था के छठे महीने के दौरान जमानत दे दी गई थी।
यह भी कहा गया है कि कई गिरफ्तारियां केवल नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के खिलाफ दिए गए भाषणों के आधार पर की गई थी।
उन्होंने कहा कि
" अधिकारियों को तुरंत उन सभी मानवाधिकार रक्षकों को रिहा करना चाहिए ,जिनको वर्तमान में पर्याप्त सबूतों के बिना ही प्री-ट्राइल हिरासत रखा गया है। जबकि उन्हें केवल सीएए के भेदभावपूर्ण स्वभाव की आलोचना करते हुए दिए गए भाषणों के आधार पर हिरासत में लिया गया है।''
विशेषज्ञों ने विरोध प्रदर्शनों के मामले में अधिकारियों द्वारा अपनाई गई भेदभावपूर्ण कार्रवाई पर भी अपनी चिंता जताई है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने उन आरोपों की समान रूप से जांच नहीं की है,जिसमें सीएए के समर्थकों पर नफरत और हिंसा के लिए उकसाने के आरोप लगाए गए थे। जिनमें से कुछ ने ऐसी रैलियों में ''देशद्रोहियों को गोली मारने'' के नारे भी लगाए थे।
विशेषज्ञों ने अपनी चिंता को जताते हुए यह भी कहा है कि अधिकारी आतंकवाद या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत भी मामला बना रहे हैं और प्रक्रियात्मक पुलिस शक्तियों का उपयोग कर रहे हैं ताकि प्रदर्शनकारियों को जमानत न मिल पाए और ऐसे आरोपों के तहत मामला बना रहे हैं,जिनमें उनको ज्यादा से ज्यादा सजा मिल सकें।
विशेषज्ञों ने कहा कि-
''हालांकि COVID19 महामारी के कारण मार्च में प्रदर्शन समाप्त हो गए थे और भारत के सुप्रीम कोर्ट ने महामारी से संबंधित स्वास्थ्य चिंताओं के कारण हाल ही में जेलों में भीड़ को कम करने का आदेश भी जारी किया था। उसके बाद भी प्रदर्शन के नेताओं को हिरासत में लिया जा रहा है। वहीं भारतीय जेलों में वायरस के फैलने की सूचना भी मिली है। ऐसे में इन सभी की तत्काल रिहाई और भी जरूरी हो गई है।''
वे इस मामले में सरकार के संपर्क में हैं।
इन विशेषज्ञों में शामिल हैं-मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति की स्पेशल रैपोर्टर्र या विशेष प्रतिवेदक सुश्री मैरी लॉलर, सुश्री लीघ टोमेय (चेयर-रैपोर्टर्र), सुश्री एलिना स्टीनरटे (वाइस-चेयर), श्री जोस ग्वेरा बरमूडेज, मिस्टर सेयोंग-फिल होंग, मिस्टर सेतोंडजी अदजोवी (वर्किंग ग्रुप ऑफ आर्बिटिव डिटेंशन),श्री डेविड केई (विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण के मामलों के विशेष प्रतिवेदक), श्री क्लेमेंट नयालेटसोसी वाउले (स्पेशल रैपोर्टर्र ऑन दा राईट टू पीसफुल एसेंबली एंड ऑफ एसोसिएशन ),श्री फर्नांड डे वर्नेस(अल्पसंख्यक मुद्दों के विशेष प्रतिवदेक), सुश्री ई तेंदेई अचियम (जातिवाद के समकालीन रूप के मामलों की विशेष प्रतिवेदक), श्री अहमद शाहीद (धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के मामलों की विशेष प्रतिवेदक ), सुश्री फियोन्नयूला डी एन आइलिन (आतंकवाद का मुकाबला करते हुए मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का प्रचार और संरक्षण करने के मामलों की विशेष प्रतिवेदक ), श्री निल्स मेल्जर (यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या सजा के मामलों की विशेष प्रतिवेदक )