अगर क़रार पर उचित स्टाम्प शुल्क नहीं चुकाया गया है तो उस पर अदालत कार्रवाई नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-02-16 03:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी क़रार में मध्यस्थता क्लाज़ पर उचित स्टाम्प का होना अनिवार्य है और अगर ऐसा नहीं है तो अदालत उस पर कार्रवाई नहीं कर सकती।

वर्तमान मामले में क़रार से जुड़े एक पक्ष ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11(6) के तहत कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की। दूसरे पक्ष ने इसका प्रतिवाद यह कहते हुए किया लीज़ का जो क़रार तैयार किया गया है।

वह उपयुक्त स्टाम्प वाले कागज पर नहीं है और कर्नाटक स्टाम्प अधिनियम, 1957 की धारा 33 के तहत इस प्रतिबंध लगा देना चाहिए और अगर उचित शुल्क और दंड का भुगतान नहीं किया गया है तो इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हालांकि हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 11(6) के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए पक्षकारों के बीच विवाद को हल करने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति कर दी।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि लीज़ क़रार को न तो पंजीकृत किया गया है और न ही उस पर कर्नाटक स्टाम्प अधिनियम, 1957 के तहत उचित स्टाम्प लगा है।

पीठ ने एसएमएस टी इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम चांदमारी टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के फैसले का हवाला देते हुए कहा,

"जब कोई लीज़ क़रार या कोई और इंस्ट्रूमेंट को मध्यस्थता क़रार के रूप में स्वीकार किया जाता है तो अदालत को सबसे पहले यह देखना होता है कि इस पर उपयुक्त स्टाम्प लगा है कि नहीं। यह पाया गया है कि अगर इस बारे में कोई आपत्ति नहीं की जाती है, तो भी यह अदालत का कर्तव्य है कि वह इस मामले पर ग़ौर करे। "

यह भी कहा गया कि अगर अदालत यह कहती है कि क़रार पर उचित स्टाम्प नहीं लगा है तो इस पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए और स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 38 के तहत इस पर कार्रवाई होनी चाहिए। यह कहा गया कि अदालत इस तरह के दस्तावेज़ या इसमें मध्यस्थता के क्लाज़ पर ग़ौर नहीं कर सकता।

हालांकि, अगर शेष स्टाम्प की राशि और इस पर लगाने वाले जुर्माने की राशि स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 35और 40 के तहत चुका दी जाती है, तो इस दस्तावेज़ पर ग़ौर किया जा सकता है। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि अदालत जिस प्रावधान पर ग़ौर नहीं कर पायी है वह कर्नाटक स्टांप अधिनियम की धारा 33 और 34 के अनुरूप है।

धारा 11 के तहत आवेदन को अस्वीकार करते हुए पीठ ने कहा,

"…दस्तावेज़ पर उचित स्टाम्प नहीं लगा था और यद्यपि रजिस्टर (न्यायिक) ने प्रतिवादी नम्बर 1 और 2 को कहा था कि वह स्टांप शुल्क और इस पर ₹1,01,56,388/­ का जुर्माना चुकाए, पर प्रतिवादियों ने ऐसा नहीं किया और उक्त लीज़ क़रार पर विश्वास करके हाईकोर्ट ने ग़लती की है।"


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