गिरफ्तारी की आशंका के कारण नाबालिग द्वारा दायर अग्रिम जमानत अर्जी सुनवाई योग्य, पढ़िए हाईकोर्ट का निर्णय
राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने माना है कि अगर किसी नाबालिग को अपनी गिरफ्तारी की आशंका है तो वह सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत अर्जी दायर कर सकता है।
प्रार्थी सूरत, एक नाबालिग है। उसने हाईकोर्ट के समक्ष अपने वकील धर्मेंद्र गुज्जर के जरिए अर्जी दायर की थी, जिसमें उसने अधीनस्थ अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने गिरफ्तारी से पहले उसके द्वारा दायर अग्रिम जमानत अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि प्रार्थी नाबालिग है। ऐसे में उसकी गिरफ्तारी का सवाल ही नहीं उठता है।
प्रार्थी को आशंका है कि उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 341 व 354 के तहत दर्ज प्राथमिकी के मामले में उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। नाबालिग की तरफ से मांग की गई थी कि उसे निचली अदालत के समक्ष नए सिरे से अर्जी दायर करने की अनुमति दी जाए। साथ ही निचली अदालत को निर्देश दिया जाए कि उसकी अर्जी पर मामले के गुण के आधार पर फैसला दें।
वकील ने दलील दी थी कि एक नाबालिग की तरफ से सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर अग्रिम जमानत अर्जी कानून के प्रतिकूल होते हुए भी हाईकोर्ट या सेशन कोर्ट के समक्ष सुनवाई योग्य बनी रहती है। इस मामले में मिस्टर एक्स बनाम केरल राज्य, एलएल.आर 2018 (3) केरल 161 के केस में दिए गए फैसले पर विश्वास करते हुए उसका हवाला दिया।
जस्टिस महेंद्र माहेश्वरी ने कहा कि प्रार्थी की तरफ से सही इंगित किया गया है। एक नाबालिग की तरफ से दायर अग्रिम जमानत अर्जी की सुनवाई योग्यता के संबंध में कानून उपरोक्त फैसले में तय किया जा चुका है। उस फैसले में कहा जा चुका है कि- "चूंकि अधिनियम की धारा 10 के तहत परिभाषित है कि एक नाबालिग की आशंका कानून के विपरीत है या विरोधी है और उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, सिर्फ इस कारण से यह नहीं माना जा सकता है कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत उसकी तरफ से दायर अर्जी अनुरक्षणीय या सुनवाई योग्य नहीं है।''
इसी के साथ कोर्ट ने प्रार्थी को 15 दिन के अंदर निचली अदालत में नई अर्जी दायर करने की छूट दे दी। साथ ही निचली अदालत को निर्देश दिया है कि वह इस अर्जी पर गुण या तथ्यों के आधार पर विचार करे। कोर्ट ने पुलिस को भी निर्देश दिया है कि जब तक निचली अदालत नाबालिग की अर्जी पर अपना आदेश न दे दे,तब तक उसे गिरफ्तार न किया जाए। राजस्थान राज्य की तरफ से लोक अभियोजक पंकज अग्रवाल ने पैरवी की।