सुप्रीम कोर्ट का ट्रिपल तलाक का फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने तलाक के लिए पति के 2016 के मुकदमे को खारिज कर दिया

Update: 2023-01-11 14:34 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य में तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के 2017 के फैसले का संचालन पूर्वव्यापी प्रकृति का है। कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की साथ तीन तलाक पर पति की ओर से तलाक के हुक्मनामे की घोषणा के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया; साथ ही ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट याचिकाकर्ता-पत्नी की ओर से प्रिंसिपल जूनियर सिविल जज, चिलकालुरिपेट के आदेश के खिलाफ दायर सिविल रीविजन पीटिशन पर सुनवाई कर रहा था।

निचली अदालत ने तीन तलाक पर तलाक का हुक्मनामा प्राप्त करने के लिए प्रतिवादी-पति की ओर से दया याचिका को खारिज करने के लिए पत्नी की ओर से दायर आवेदन को रद्द कर दिया था।

यह कहते हुए कि शायरा बानो का संचालन पूर्वव्यापी होगा और पति के मुकदमे के लंबित रहने के दरमियान सुप्रीम कोर्ट की घोषणा के आलोक में उसकी याचिका अब वर्जित है, ज‌स्टिस वीआरके कृपा सागर ने कहा,

"कानून की ऐसी घोषणा पूर्वव्यापी प्रकृति की है, वर्तमान मामले में वादी पर लागू होती है, जहां पति की ओर से तीन तलाक का दावा आठ अप्रैल, 2016 को किया गया था। ऐसे में इस प्रकार के वादी को ट्रायल की प्रक्रिया से गुजरने की इजाजत देना गलत है। जब तक इस प्रकार के वाद पर निर्णय नहीं दिया जाता, तब तक न्यायालय के लिए उपलब्ध कानून यह होगा कि तीन तलाक नहीं है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट का यह मानना कि शायरा बानो पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं है, गलत है।"

अदालत ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से घोषित कानून, कानून है और यह सभी न्यायालयों के लिए बाध्यकारी है।

कोर्ट ने कहा, "तीन तलाक कानून के खिलाफ है और इसे असंवैधानिक माना जाता है। व्यक्तिगत कानूनों को लागू करने के वैधानिक आधार को, जिसक तहत तीन तलाक को अनुमति दी गई है, को असंवैधानिक ठहराया गया है।"

मामला

मामले में दंपति ने 1999 में शादी की थी। आठ अप्रैल, 2016 को प्रतिवादी-पति ने तीन तलाक दिया था और याचिकाकर्ता-पत्नी को उसी दिया एक पत्र के माध्यम से सूचित किया। वह पत्र पत्नी को 18 अप्रैल 2016 को दिया गया था।

इद्दत की रकम के रूप में 9,000 रुपये भी पत्नी को भी भेजे गए थे। अंजुमन कमेटी को भी तलाक के बारे में सूचित किया गया था।

जिसके बाद प्रतिवादी-पति ने एक वाद दायर किया, जिसमें विवाह के विघटन की घोषणा की डिक्री के लिए प्रार्थना की गई थी। पत्नी ने मुस्लिम कानून के अनुसार तलाक को अवैध कहा और उसकी शुद्धता पर सवाल उठाते हुए अपना लिखित बयान दर्ज कराया।

मुकदमे के लंबित रहने के दरमियान पत्नी ने आदेश 7, नियम 11 सहपठित सीपीसी की धारा 151 तहत एक वादकालीन आवेदन दायर किया, जिसमें शायरा बानो में सुप्रीम कोर्ट के फैसले, जिसके तहत तलाक-ए-बिद्दत और मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 को तीन तलाक द्वारा विवाह विच्छेद की हद तक असंवैधानिक घोषित किया गया था, का हवाला देते हुए पति की याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की गई थी।

ट्रायल कोर्ट ने हालांकि, पत्नी की ओर से दायर वादकालीन आवेदन को खारिज कर दिया और कहा कि कथित तलाक आठ अप्रैल, 2016 को सुनाया गया था, जिसके बाद पति द्वारा चार नंवबर, 2016 को डिक्री के लिए प्रार्थना करते हुए मुकदमा दायर किया गया था। कोर्ट ने कहा कि शायरा बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 22 अगस्त 2017 को आया, तब तक पति का मुकदमा एक साल से लंबित था।

ट्रायल कोर्ट ने तदनुसार मुकदमे को आगे बढ़ाया और कहा कि चूंकि पति के वाद में मुकदमा दायर किए जाने के समय तक कार्रवाई के कारण का खुलासा हो चुका था, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता था कि वाद सीपीसी के आदेश 7 नियम 11(डी) के अनुसार "किसी भी कानून द्वारा वर्जित" था।

हाईकोर्ट ने पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के संचालन के विपरीत प्रभाव के किसी संकेत के अभाव में पूर्वव्यापी प्रभाव होगा।

कोर्ट ने कहा,

“पीवी जॉर्ज बनाम केरल राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कानून का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा, जब तक कि निर्णय में इसके विपरीत संकेत न दिया गया हो। शायरा बानो के मामले के अवलोकन से पता चलता है कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि इसमें निर्धारित सिद्धांत भविष्य में काम करेंगे। इसलिए, पीवी जॉर्ज के मामले में तय सिद्धांत के अनुसार, शायरा बानो के मामले में अनुपात को एक ऐसे अनुपात के रूप में समझा जाना चाहिए, जो प्रकृति में पूर्वव्यापी है।

तदनुसार, अदालत ने सीपीसी के आदेश 7, नियम 11 के संदर्भ में पति की याचिका को खारिज करने का आदेश दिया। न्यायालय ने सिविल जज द्वारा पारित आक्षेपित आदेश को भी रद्द कर दिया।

अदालत ने मिर्जा फहीम बेग बनाम कहकशा अंजुम, 2018, प्रथम अपील संख्या 322 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले और शौकत हुसैन बनाम नाजिया जिलानी, 2019 एससीसी ऑनलाइन जम्मू-कश्मीर 892 में जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया।

केस टाइटल: शेख जरीना बनाम शेख दरियावली

साइटेशन: Civil Revision Petition No. 2477 of 2019

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