आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने न्यायपालिका के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट की निगरानी करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2020-06-24 03:15 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र, आंध्र प्रदेश सरकार, आंध्र प्रदेश पुलिस, गूगल, ट्विटर, फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम एवं व्हाट्सऐप को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस इस हाईकोर्ट की याचिका पर जारी किया गया है ताकि सोशल मीडिया पर न्यायपालिका के ख़िलाफ़ अपमानजनक पोस्ट पर कार्रवाई की जा सके।

रजिस्ट्रार के माध्यम से दायर याचिका पर अदालत ने पुलिस को दो प्राथमिकी पर कार्रवाई करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। ये प्राथमिकी 16 और 18 अप्रैल को दायर किए गए थे, जिनमें अज्ञात लोगों पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट करने के ख़िलाफ़ शिकायत की गई थी। इन शिकायतों में हाईकोर्ट के अलग-अलग फ़ैसलों पर टिप्पणियों की बात कही गई थी…इससे पहले हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर इस तरह की टिप्पणियों के लिए 49 लोगों के ख़िलाफ़ स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्रवाई की थी।

याचिका में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी नोटिस जारी कर यह कहने का अनुरोध किया गया है कि वे ऐसे स्वनियमन के तरीक़े इजाद करें जिससे भारत में न्यायपालिका के ख़िलाफ़ अपमानजनक, लांछनयुक्त और गाली गलौज वाले कंटेंट को रोका जा सके और ऐसे सभी पोस्ट/कमेंट्स/ट्वीट्स/वीडियोज को हटाया जा सके जिसकी चर्चा एफआईआर में की गई है।

केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी कर सूचना तकनीकी अधिनियम की धारा 79(2)(c) के तहत ऐसे मध्यवर्ती दिशानिर्देश तैयार करने का अनुरोध किया गया है ताकि न्यायपालिका के लिए सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

अपशब्द वाले कंटेंट को लेकर अगर केंद्र सरकार सोशल मीडिया की बड़ी कंपनियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करने में विफल रहती है तो उसे "ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक" घोषित किए जाने की मांग भी की गई है।

मुख्य न्यायाधीश जेके माहेश्वरी और जस्टिस सी प्रवीण कुमार की पीठ ने  16 जून को प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न उनके ख़िलाफ़ रिट याचिका स्वीकार कर ली जाए। इस मामले पर अगली सुनवाई अब तीन सप्ताह बाद होगी।

पीठ ने कहा कि टिप्पणियों में जजों पर राजनीतिक होने का आरोप लगाया गया था। कुछ टिप्पणियों में गाली गलौज, डराने वाली बातें और जान की धमकियां शामिल थीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि जजों के ख़िलाफ़ यह किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा है।

अदालत ने कहा कि वीडियो/क्लिपिंग्स/पोस्ट अवमानना से भरे थे और इनमें हाईकोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की प्रतिष्ठा को नीचा दिखाने की कोशिश थी। 

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