अग्रिम जमानत केवल इस आधार पर नहीं दी जा सकती कि अभियुक्त से हिरासत में पूछताछ आवश्यक नहीं है: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट की एक एकल पीठ ने कहा है कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न होना एक अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने का खुद में एक आधार नहीं हो सकता है।
जस्टिस समीर जे. दवे ने कहा,
"हिरासत में पूछताछ अग्रिम जमानत को अस्वीकार करने के आधारों में से एक हो सकती है। हालांकि, भले ही हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न हो, लेकिन यह अपने आप में अग्रिम जमानत देने का आधार नहीं हो सकता है।"
याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 406, 420, 409, 114 और 120 बी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था। उसने इस आधार पर अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि उनके खिलाफ आरोपों की प्रकृति ऐसी नहीं है, जिसके लिए उससे हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है और वह जांच के दौरान उपलब्ध रहेगा।
ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, जिसकी जांच चल रही है और याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है।
हाईकोर्ट ने ‘‘XXX बनाम अरुण कुमार सी.के. एवं अन्य, 2022 लाइव लॉ (एससी) 870’’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था कि अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करने वाले कोर्ट को पहली और इस सबसे महत्वपूर्ण बात पर विचार करना चाहिए कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं। इसके बाद, अपराध की प्रकृति के साथ सजा की गंभीरता को भी देखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने ‘‘प्रह्लाद सिंह भाटी बनाम एन.सी.टी. दिल्ली एवं अन्य, 2001 एआईआर एससीडब्ल्यू 1263’’ मामले में रिपोर्ट किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा है:
"यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जमानत देने के उद्देश्य से, विधायिका ने 'सबूतों' के बजाय 'विश्वास करने के लिए उचित आधार' शब्दों का इस्तेमाल किया है, जिसका अर्थ है कि जमानत याचिका से निपटने वाला कोर्ट ही संतुष्ट कर सकता है कि क्या आरोपी के खिलाफ वास्तविक मामला बनता है और अभियोजन पक्ष आरोप के समर्थन में प्रथम दृष्टया सबूत पेश करने में सक्षम है या नहीं। इस स्तर पर, उचित संदेह से परे अभियुक्तों के अपराध को स्थापित करने वाले सबूतों की अपेक्षा नहीं की जाती है।"
इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया कि अपीलकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है और यह ऐसा मामला नहीं है, जहां अग्रिम जमानत के लिए याचिकाकर्ता के पक्ष में विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
केस टाइटल: हरिसिंह अभयसिंह परमार बनाम गुजरात सरकार
कोरम: जस्टिस समीर जे दवे
एडवोकेट: श्री बी.एम. आवेदक मंगुकिया एवं सुश्री बेला ए प्रजापति (अपीलकर्ता के लिए)
श्री आर.सी. कोडेकर, एपीपी (सरकार की ओर से)
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