"असामाजिक गतिविधि": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित तौर पर बलात्कार, फेसबुक पर उस महिला की अश्लील तस्वीरें पोस्ट करने के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला के साथ बलात्कार करने और उसकी अश्लील तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट करने के आरोपी को प्रथम दृष्टया जमानत देने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की पीठ आईपीसी की धारा 376 (1), धारा 506 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67-ए के तहत मानव शर्मा की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
आरोपी की आरे से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि यह एक ऐसा मामला है जहां आवेदक और पीड़िता एक लंबे समय से रिश्ते में थे और जब वह अपनी उच्च शिक्षा के सिलसिले में रूस चली गई, तो उसने रिश्ते को अस्वीकार कर दिया।
वकील ने आगे प्रस्तुत किया कि तत्काल अभियोजन पक्ष के बीच पिछले संबंधों पर पर्दा डालने के लिए अभियोजक और उसके परिवार की ओर से एक कदम है और आवेदक ने उसे किसी भी तरह से धमकी नहीं दी है या इंटरनेट या फेसबुक पर उसकी कोई आपत्तिजनक तस्वीरें पोस्ट नहीं की हैं।
वकील द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि उसने किसी भी तरह से अभियोक्ता या उसके परिवार पर उसे विवाह के लिए मजबूर करने के लिए दबाव नहीं डाला और आईटी एक्ट की धारा 67-A और आईपीसी की धारा 376 (1), धारा 506 के तहत याचिकाकर्ता पर लगाए गए आरोप झूठे हैं।
वकील ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच लंबे संबंध को देखते हुए बलात्कार का आरोप पूरी तरह से संदर्भ से बाहर है।
दूसरी ओर, ए.जी.ए. जमानत की प्रार्थना का विरोध किया और केस डायरी में सामग्री को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसमें धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज अभियोक्ता के बयान शामिल हैं।
कोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने केस डायरी में पूरी सामग्री को देखते हुए कहा कि,
"हालांकि पक्ष एक निश्चित समय पर एक रिश्ते में थे, अभियोक्ता इससे पीछे हट गई है। लेकिन, आवेदक ने शालीनता की अनुमेय सीमा से परे और अपराध के निषिद्ध क्षेत्र में उसका पीछा किया। उसने उस लड़की की अश्लील तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट किया और उसने प्रथम दृष्टया उसे बर्बाद कर दिया है।"
अदालत ने केस डायरी को तलब किया और सबूतों पर गौर किया, विशेष रूप से यह पता लगाने के लिए कि क्या केस डायरी में अश्लील तस्वीरों की पोस्टिंग सामग्री उपलब्ध है और इसके बाद अदालत ने पाया कि प्रथम दृष्टया कुछ हद तक आरोप प्रतीत होते हैं।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि,
"एक सीडी भी है जिसमें आवेदक को अभियोक्ता को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देते हुए दिखाया गया है। वहां उसके शब्दों से उसने अभियोक्ता को बचाने की स्थिति में नहीं होने के कानून को चुनौती दी है जब तक कि वह उसका प्रस्ताव स्वीकार नहीं करती। इस तरह का आचरण और अपराध में शामिल लगभग एक असामाजिक गतिविधि और समाज के लिए खतरा है।"
कोर्ट ने इसके साथ ही इसे जमानत के लिए उपयुक्त मामला नहीं पाया और जमानत अर्जी खारिज कर दी।
केस टाइटल - मानव शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी.