लखीमपुर खीरी हिंसा : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष मिश्रा की ज़मानत याचिका पर निर्णय सुरक्षित रखा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। आशीष मिश्रा लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में मुख्य आरोपी है। मिश्रा 3 अक्टूबर, 2021 को हुई एक घटना के संबंध में हत्या के मुकदमे का सामना कर रहा है।
आशीष मिश्रा पर आरोप है कि घटना के दिन जब किसान प्रदर्शन कर रहे थे, तब जिस एसयूवी वाहन में वह कथित रूप से बैठा था, उससे कुचल कर चार किसानों की मौत हो गई थी।
जस्टिस कृष्ण पहल की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शुक्रवार को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस राजीव सिंह ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
मिश्रा को पहले फरवरी 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी। इसके बाद फिर से उसे हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा क्योंकि हाईकोर्ट के पहले के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2022 में रद्द कर दिया था और उसकी जमानत याचिका पर नए सिरे से विचार करने का आदेश दिया था।
बैकग्राउंड
हाईकोर्ट ने 10 फरवरी को आशीष मिश्रा को यह देखते हुए जमानत दे दी थी कि इस बात की संभावना हो सकती है कि चालक (थार के) ने खुद को बचाने के लिए वाहन को तेज करने की कोशिश की, जिसके कारण घटना हुई थी।
इसके बाद पीड़ित हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में चले गए थे। हालांकि, विशेष जांच दल की निगरानी करने वाले न्यायाधीश द्वारा इस आशय की सिफारिश के बावजूद उत्तर प्रदेश राज्य ने जमानत आदेश को चुनौती नहीं दी।
लखीमपुर खीरी मामले में आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मामले के पीड़ितों को जमानत देने से पहले उनकी सुनवाई से इनकार करने पर निराशा व्यक्त की थी।
अदालत ने केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को जमानत देने में हाईकोर्ट द्वारा दिखाई गई "फटने की जल्दी" के बारे में भी आलोचनात्मक टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई में भाग लेने के पीड़ितों के अधिकारों को स्वीकार करना चाहिए। लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के करीबी रिश्तेदारों ने हाईकोर्ट के समक्ष मिश्रा द्वारा दायर जमानत याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा कांड के चार मुख्य आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि अगर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने किसानों को खदेड़ने की धमकी देने वाला कथित बयान नहीं दिया होते तो लखीमपुर खीरी में हिंसक घटना नहीं हुई होती।
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने कहा था,
"ऊंचे पदों पर बैठे राजनीतिक व्यक्तियों को समाज में इसके नतीजों को देखते हुए एक सभ्य भाषा अपनाते हुए सार्वजनिक बयान देना चाहिए। उन्हें गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए क्योंकि उन्हें अपनी स्थिति और उच्च पद की गरिमा के अनुरूप आचरण करना आवश्यक है।"
अदालत ने यह भी पाया कि जब क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 लागू की गई तो कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन क्यों किया गया और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने वहां कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आदि के रूप में क्यों आए?
अदालत ने यह कहते हुए कि सांसदों को कानून का उल्लंघन करने वाले के रूप में नहीं देखा जा सकता। अदालत ने कहा कि इस पर विश्वास नहीं होता कि राज्य के उपमुख्यमंत्री की जानकारी में यह नहीं था कि क्षेत्र में धारा 144 सीआरपीसी के प्रावधानों को लागू किया गया है और कोई भी वहां कोई भी सभा करना निषिद्ध है।
केस टाइटल - आशीष मिश्रा @ मोनू बनाम यू.पी. राज्य
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