वाहन पर बीजेपी का झंडा फहराने वाले व्यक्ति से दुर्व्यहार करने के आरोप में एएमयू प्रॉक्टोरियल टीम के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इनकार किया

Update: 2020-11-23 04:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को उस याचिका को खारिज कर दिया है,जिसमें एएमयू प्रॉक्टोरियल टीम के 12 सदस्यों के खिलाफ लंबित एफआईआर और उसके फलस्वरूप शुरू हुई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में अपने वाहन पर भाजपा का झंडा फहराने वाले एक व्यक्ति से दुर्व्यहार किया था।

न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने कहा कि घटना के स्थान पर आरोपी व्यक्तियों की उपस्थिति विवादित नहीं है,इसलिए यह निर्धारित करना ट्रायल कोर्ट का कार्य है कि क्या कोई अपराध उक्त स्थान पर किया गया था?

कोर्ट ने उक्त घटना के सीसीटीवी-फुटेज पर भी गौर करने से भी इनकार कर दिया और कहा कि सबूत का मूल्यांकन सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाही के दायरे से बाहर है।

कोर्ट ने कहा कि

'' आरोपों की जांच करना इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के स्वीकृत दायरे से परे है। सूचना देने वाले से कथित तौर पर दुर्व्यवहार किया गया था और उसे ऐसे शब्द कहे गए जो वर्गों के बीच दुश्मनी, घृणा या भ्रम पैदा करने के इरादे से कहे गए थे। इसलिए इस मामले को निर्धारित करना ट्रायल कोर्ट का कार्य है,विशेष रूप से जब घटना के स्थान पर प्रत्येक आवेदक की उपस्थिति को लेकर कोई विवाद नहीं है।''

आवेदकों के खिलाफ सिविल लाइंस पुलिस, अलीगढ़ द्वारा आईपीसी की धारा 342 और 504 के तहत केस दर्ज किया गया था। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने वाहन पर बीजेपी का झंडा फहराने वाले व्यक्ति को कथित तौर पर रोका और उससे अभद्र व्यवहार किया। इसलिए, उनके खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ की अदालत में मुकदमा लंबित है।

एफआईआर में दर्ज तथ्यों के अनुसार, 22 अक्टूबर, 2019 को भाजपा विधायक ठाकुर दलवीर सिंह का ड्राइवर गुड्डू सिंह, विधायक के पोते विजय कुमार सिंह (एएमयू का एक छात्र) को लेने गया था।

यह आरोप लगाया गया है कि जैसे ही गुड्डू सिंह ने विश्वविद्यालय के गेट से प्रवेश किया, विश्वविद्यालय की प्राॅक्टोरियल फोर्स ने उन्हें जबरन रोका और भाजपा का झंडा हटाने के लिए कहा। आगे यह भी आरोप लगाया गया है कि प्रॉक्टोरियल टीम के सदस्यों ने उन्हें गाली दी और कहा कि उनके विश्वविद्यालय में बीजेपी के लिए कोई जगह नहीं है।

राज्य के वकील ने कहा कि अपराध गंभीर है और इसका कानून और व्यवस्था पर व्यापक असर पड़ सकता है।

आवेदकों के वकील स्वेताश्व अग्रवाल, ने हालांकि कहा कि उक्त प्रॉक्टोरियल टीम के छह सदस्य विश्वविद्यालय के उच्च शिक्षा प्राप्त शिक्षक थे, जिनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। इसलिए जिस तरह से उन पर आरोप लगाए गए हैं,उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, प्रॉक्टोरियल टीम के अन्य सदस्यों ने छह प्रोफेसरों की सहायता के लिए काम किया था।

उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी ने मामले में 'लापरवाही से जांच' की थी और इस घटना को आपराधिक रंग देने के लिए आरोपियों पर गलत आरोप लगाए थे। यह भी प्रस्तुत किया गया कि धारा 161 के तहत दर्ज विजय कुमार सिंह (पौत्र) का बयान भी सुना-सुनाया है और अगर इसे साक्ष्य में तब्दील किया जाता है, तो यह अप्रासंगिक होगा।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कोर्ट ने कहा कि,

''श्री अग्रवाल की तरफ से प्रस्तुत दलीलों का यह हिस्सा सही हो सकता है कि विजय कुमार सिंह का बयान सुनी-सुनाई बात पर आधारित है, लेकिन ड्राइवर का बयान भी है, और उसके बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आखिरकार, वह ड्राइवर ही था जिसे रोका गया था और झंडा हटाने के लिए कहा गया था।''

यह भी जोड़ा गया कि,

'' आरोपियों को जिम्मेदार ठहराने वाले बयानों को जांच अधिकारी द्वारा गलत तरीके से दर्ज किया किया जाना भी एक ऐसा मामला नहीं है, जिसके लिए यह न्यायालय संहिता की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करें।''

इसके बाद आवेदक के वकील ने यूनिवर्सिटी के कुछ सर्कुलर का उल्लेख किया, जो विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी राजनीतिक दल के झंडे वाली कारों/ वाहनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हैं। हालांकि उन्होंने वाहन को रोकने की घटना से इनकार नहीं किया, परंतु कहा कि किसी भी अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया था।

न्यायालय ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि यह मामला वाहन पर लगाने वाले झंडे की वैधता, या विश्वविद्यालय के उन नियमों की वैधता के बारे में नहीं है,जो यूनिवर्सिटी परिसर में प्रवेश करने वाले वाहनों पर लगाए गए राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के झंडे को प्रतिबंधित करते हैं।

न्यायमूर्ति मुनीर ने कहा, ''यह उस तरीके के बारे में है जिस तरह से ध्वज को हटाने के लिए कहा गया और प्रॉक्टोरियल टीम ने ऐसा करते समय जो शब्द कहे थे,जैसा कि दूसरे पक्ष द्वारा दावा किया गया है।''

न्यायालय ने अब संबंधित मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वह इस मामले पर विचार करें और सटीक रूप से यह निर्धारित करें कि आईपीसी की धारा 342 और 504 के अलावा, किन आरोपों के तहत आवेदकों को मुकदमे का सामना करना चाहिए।

केस का शीर्षक- प्रोफेसर बृजभूषण सिंह व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य।

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News