इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैर सरकारी संगठनों द्वारा मवेशियों की अवैध जब्ती और कदाचार का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 का सख्ती से अनुपालन करने की मांग वाली जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता ने आगे प्रार्थना की कि जानवरों को जब्त करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएं और निजी एनजीओ को संबंधित मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना ऐसे जानवरों को रखने से प्रतिबंधित किया जाए।
याचिकाकर्ता संगठन का दावा है कि वह मवेशियों और अन्य जानवरों सहित जानवरों की देखभाल में शामिल लोगों को सहायता प्रदान करने में शामिल है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कई रजिस्टर्ड और अनरजिस्टर्ड एनजीओ और अन्य संस्थानों द्वारा विभिन्न अनैतिक गतिविधियां की जा रही हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जानवरों को इलाज और देखभाल मुहैया कराने के नाम पर एनजीओ उन्हें हिरासत में लेते हैं और आर्थिक लाभ के लिए अवैध गतिविधियां संचालित करते हैं।
याचिका में यह तर्क दिया गया है कि अधिनियम की धारा 35 में प्रावधान है कि राज्य सरकार आदेश द्वारा क्रूरता का सामना करने वाले जानवरों के लिए शिशुगृहों की नियुक्ति कर सकती है। आरोप लगाया गया कि ओवरलोड वाहन में ले जाए जाने पर पशुओं को जब्त करने का प्रावधान कानून में नहीं है और पुलिस की ऐसी कार्रवाई गैरकानूनी है। अंत में ऐसा कहा जाता है कि जब्त किए गए जानवरों की कस्टडी बिना किसी पूर्व या उचित प्राधिकरण के संगठनों को दे दी जाती है।
याचिका में यह दलील दी गई है कि जानवरों की कस्टडी लेने वाले संगठनों को उचित सरकारी अधिकारियों द्वारा विनियमित किया जाना चाहिए ताकि यह जांचा जा सके कि ऐसे संस्थान पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में निर्धारित मानकों का पालन कर रहे हैं या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता संगठन केवल मवेशियों या कुत्तों जैसे अन्य जानवरों के लिए भी काम कर रहा है। इस पर याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि संगठन मवेशियों के साथ-साथ अन्य जानवरों के लाभ के लिए काम कर रहा है।
मुख्य न्यायाधीश दिवाकर ने याचिकाकर्ता के वकील को दक्षिण अफ्रीका के मसाई मारा में जानवरों की देखभाल और उनके अस्पतालों के लिए अपनाई गई प्रणालियों पर गौर करने का सुझाव दिया। राज्य के वकीलों से मुख्य न्यायाधीश दिवाकर ने कहा,
“यह प्रतिकूल मुकदमा नहीं है। इन याचिकाओं का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। कारण को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।”
मामले को 24 नवंबर को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल : कमल राज भेड़ बकरी कल्याण एसोसिएशन बनाम भारत संघ और 5 अन्य