इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दलित भाइयों के खिलाफ यूपी पुलिस द्वारा दर्ज कथित 'फर्जी' मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में सीबीआई को दो व्यक्तियों/आरोपियों के खिलाफ अपहरण के एक मामले की जांच करने का निर्देश दिया। उन्होंने आरोप आरोप लगाया है कि उन्हें उत्तर प्रदेश के 35 पुलिस कर्मियों के इशारे पर झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है।
जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वैज मियां की पीठ ने दलित याचिकाकर्ताओं द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कथित 'फर्जी' अपहरण मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करने वाली एक रिट याचिका पर यह आदेश दिया।
याचिकाकर्ताओं का प्राथमिक निवेदन था कि मथुरा जिले के पुलिस अधिकारियों ने याचिकाकर्ताओं या उनके भाई के खिलाफ बड़ी संख्या में धोखाधड़ी और झूठे मामले दर्ज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ताकि पहले के मामलों में समझौता करने के लिए उन पर दबाव डाला जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान एफआईआर (अपहरण का मामला) सिर्फ याचिकाकर्ताओं पर जांच रिपोर्ट के लिए दबाव ना बनाने के लिए दर्ज किया गया था, जिसमें 35 पुलिस अधिकारियों को प्रथम दृष्टया झूठे मामले दर्ज करने और याचिकाकर्ताओं और उनके भाई पुनीत कुमार के खिलाफ झूठे आपराधिक मामलों का मंच प्रबंधन करने का दोषी पाया गया है।
मामला
प्रेम सिंह नाम के एक व्यक्ति ने एक अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर 4 अक्टूबर 2013 को पुनीत कुमार को मारने का प्रयास किया। पुनीत की मां माया देवी ने इस घटना के बारे में पुलिस से शिकायत की, हालांकि, पुलिस अधिकारियों ने एफआइआर दर्ज करने के बजाय पुनीत के भाई सुमित कुमार (याचिकाकर्ता संख्या 1) के खिलाफ धारा 151, 107, 116 सीआरपीसी के तहत झूठा मामला दर्ज किया।
इसके बाद याचिकाकर्ता की मां माया देवी ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत आवेदन दिया, जिसके आधार पर मामला दर्ज किया गया।
इससे क्षुब्ध होकर पुलिस अधिकारियों ने आरोपितों की मिलीभगत से याचिकाकर्ताओं, उनके भाई और उनकी मां के खिलाफ धारा 323, 504, 506, 452, 354 आईपीसी के तहत एक और एफआईआर दर्ज की। इसके बाद याचिकाकर्ताओं की मां ने झूठे मामले दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों के आचरण से व्यथित होकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली से संपर्क किया और आयोग के निर्देश पर अगस्त 2016 में सुरेंद्र सिंह यादव, स्टेशन हाउस ऑफिसर, पुलिस स्टेशन हाईवे, मथुरा और सब-इंस्पेक्टर नेत्रपाल सिंह के खिलाफ धारा 166-ए के तहत मामला दर्ज किया गया।
जनवरी 2018 में याचिकाकर्ताओं के भाई पुनीत कुमार को एक ऑटो ड्राइवर के साथ, स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने हिरासत में ले लिया और धारा 4/25 आर्म्स एक्ट और आईपीसी की कुछ अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से संपर्क किया, जिन्होंने 03 अगस्त, 2020 को विशेष जांच प्रकोष्ठ को 10.01.2018 की घटना के संबंध में पुलिस कर्मियों की संलिप्तता के संबंध में जांच करने का निर्देश दिया। घटना के तहत याचिकाकर्ताओं के भाई पुनीत कुमार को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और बाद में झूठे मामलों में फंसाया गया था।
प्रेम सिंह, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (विशेष जांच), मुख्यालय लखनऊ ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें पुनीत कुमार को अवैध रूप से हिरासत में लेने और उन्हें झूठे मामले में फंसाने में शामिल पुलिस कर्मियों का पता लगाया गया।
हालांकि, जब इस रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो याचिकाकर्ताओं के भाई ने फिर से एससी आयोग का दरवाजा खटखटाया, परिणामस्वरूप, एससी आयोग ने पुलिस महानिदेशक, यूपी से जानकारी मांगी।
इसके तुरंत बाद, याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि आक्षेपित एफआईआर धारा 363, 366 आईपीसी के तहत अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ शिकायतकर्ता के कहने पर दर्ज किया गया था, और जांच के दौरान, यह आरोप लगाया गया है कि पीड़िता द्वारा सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए एक बयान पर याचिकाकर्ताओं का नाम अपराध करने में सामने आया।
इसलिए, याचिकाकर्ताओं ने मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए अदालत का रुख किया।
मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने पाया कि चूंकि एससी आयोग के निर्देशों के अनुसार कोई कार्रवाई नहीं की गई थी और राज्य के वकील भी यह निर्दिष्ट करने में विफल रहे कि क्या अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई थी, इसलिए जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने का फैसला किया। मामले को आगे की सुनवाई के लिए 9 नवंबर को पोस्ट किया गया है।
केस टाइटल- सुमित कुमार और अन्य बनाम यूपी और 2 अन्य