इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री मोदी को कथित तौर पर 'वायरस, जिसे तत्काल एंटीडॉट की जरूरत है' कहने वाले शख्स को अंतरिम राहत दी

Update: 2023-06-19 07:23 GMT

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मोहम्‍मद फरहान नामक एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक वीडियो पोस्ट करने के मामले में अंत‌रिम राहत प्रदान की है। व‌ीडियो में उसने प्रधानमंत्री मोदी को 'एक वायरस, जिसे एक तत्काल एंटीडॉट की आवश्यकता है' कहा था।

जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस नंद प्रभा शुक्ला की पीठ ने आरोपी की की ओर से दायर रिट याचिका पर यह आदेश दिया। याचिका में उसने अपने खिलाफ आईपीसी की धारा 504 और आईटी अधिनियम की धारा 66 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

प्रथम दृष्टया यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता-आरोपी की ओर से कहे गए शब्द आईपीसी की धारा 504 के दायरे में नहीं आते हैं, कोर्ट ने कहा, इसलिए उन्हें अगली लिस्टिंग तक या सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत पुलिस रिपोर्ट जमा करने तक, इनमें से जो भी पहले हो, गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया जाता है।

एफआईआर में आरोप, जिसकी एक प्रति LiveLaw ने प्राप्त की है, इस आशय का था कि आरोपी ने वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी में कहा है कि वह देश के लिए वायरस हैं और समय रहते इसका इलाज बहुत जरूरी है, नहीं तो यह वायरस पूरे देश को खा जाएगा।

हाईकोर्ट के समक्ष आरोपी की ओर से पेश वकील ऐश्वर्य प्रताप सिंह ने तर्क दिया कि शब्दों को किसी भी मामले में अपमानजनक या अशोभनीय या ऐसा नहीं कहा जा सकता है, जो आईपीसी की धारा 504 के दायरे में आता है।

यह तर्क दिया गया था कि यह प्रावधान तब आकर्षित होता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति का, इरादतन या यह जानते हुए अपमान करता है कि अपमान अपमानित हुए व्यक्ति से शांति भंग करवाएगा या अपराध करवाएगा।

यह प्रस्तुत किया गया कि टिप्पणी किसी भी मामले में एक राजनीतिक टिप्पणी थी और प्रधानमंत्री को सार्वजनिक शांति भंग करने या किसी अपराध करने के लिए उकसाने के लिए नहीं की गई थी।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा कि याचिकाकर्ता ने एफआईआर में आरोपों से इनकार नहीं किया है कि वह एक राजनीतिक दल के प्रवक्ता हैं और एक राजनीतिक बयान दे रहे थे, जिसे वायरल कर दिया गया है।

इसके बाद यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता की ओर से कहे गए शब्दों को रिट याचिका में स्वीकार किया गया है और चूंकि, यह एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करता है, इसलिए याचिका को खारिज कर दिया जाए।

हालांकि, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता की ओर से कहे गए शब्द आईपीसी की धारा 504 के दायरे में नहीं आते हैं, अदालत ने कहा कि इस मामले पर विचार करने और अभियुक्तों को सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।

इसके साथ, अदालत ने प्रतिवादियों को तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने और उसके बाद दो सप्ताह में याचिकाकर्ता को प्रत्युत्तर हलफनामा दायर करने की स्वतंत्रता दी।

केस टाइटलः मो फरहान बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 5740 of 2023]

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