बांग्लादेशियों को अवैध तरीके से भारत लाता था BJP कार्यकर्ता, हाईकोर्ट से मिली जमानत
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) युवा मोर्चा के पदाधिकारी को समानता के आधार पर ज़मानत दी। उस पर उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) द्वारा दर्ज 2023 के मामले में जाली पहचान दस्तावेज़ बनाने और बांग्लादेशियों को अवैध रूप से सीमा पार कराने में कथित संलिप्तता का आरोप है।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस अबधेश कुमार चौधरी की खंडपीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(4) के तहत बिक्रम रॉय द्वारा दायर अपील स्वीकार की।
रॉय ने स्पेशल कोर्ट, NIA, लखनऊ द्वारा जुलाई, 2024 और फरवरी, 2025 में पारित आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उनकी ज़मानत खारिज कर दी गई।
कोर्ट ने उल्लेख किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 120-बी, 419, 420, 467, 468, 471 और 370 [NIA अनुसूचित अपराध] तथा विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 14सी के तहत दर्ज इसी मामले में कई सह-आरोपियों को हाईकोर्ट की समन्वय पीठ द्वारा पहले ही जमानत दी गई।
वकील अरुण सिन्हा की ओर से वकील ताहा चिश्ती ने दलील दी कि पिछले महीने सह-अभियुक्त आदिल-उर-रहमान की अपील और ज़मानत मंजूर करते हुए हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि कई सह-अभियुक्तों [अबू सालेह मंडल, अब्दुल अवल, अब्दुल्ला गाज़ी और कफ़ीलुद्दीन] को जून 2025 में ही ज़मानत पर रिहा कर दिया गया।
बता दें, उस मामले में एक खंडपीठ ने कहा था कि हालांकि FIR में आरोप लगाया गया कि अभियुक्त रोहिंग्याओं से अवैध धन लेकर उन्हें भारत में बसाने में मदद कर रहे थे। इस धन का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कर रहे थे लेकिन दायर आरोप-पत्रों में NIA Act के तहत निर्धारित कोई भी अपराध शामिल नहीं था और अभियुक्त पहले ही लगभग दो साल हिरासत में बिता चुके थे।
हाईकोर्ट ने अपने पहले के आदेश में टिप्पणी की थी कि विदेशी अधिनियम के तहत अपराधों में पाँच साल तक की सज़ा का प्रावधान है। ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह पता चले कि अगर अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा किया जाता है तो इससे मुकदमे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
रॉय के वकील ने सह-अभियुक्त शेख नजीबुल हक को ज़मानत देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पिछले महीने के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि वह लगभग दो वर्षों से हिरासत में है। अभियोजन पक्ष द्वारा 100 से अधिक गवाहों से पूछताछ करने का प्रस्ताव होने के कारण मुकदमे में उचित समय लगने की संभावना है।
यह भी तर्क दिया गया कि रॉय केवल एक रिक्शा चालक था, जिस पर बांग्लादेश की सीमा से कुछ अनधिकृत व्यक्तियों को पश्चिम बंगाल लाने का आरोप है और उसका कोई पूर्व आपराधिक इतिहास नहीं है।
रॉय के वकील की दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने अन्य अभियुक्तों के साथ समानता के आधार पर उसे ज़मानत दी।
Case title - Bikram Roy vs. State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Home Lko. And Another