इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधानसभा कर्मचारी भर्ती में 'अनियमितताओं' के आरोपों की सीबीआई जांच कराने के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को यूपी विधान परिषद की ओर से दायर एक पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसे पिछले महीने पारित हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर किया गया था। हाईकोर्ट ने आदेश में सीबीआई को उत्तर प्रदेश विधानसभा और परिषद के सचिवालय के लिए कर्मचारियों की भर्ती में 'अनियमितताओं' की प्रारंभिक जांच का निर्देश दिया था।
जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया कथित अनियमितताओं से संकेत मिलता है कि यह किसी भर्ती घोटाले से कम नहीं है, जिसमें सैकड़ों भर्तियां अवैध तरीके से एक बाहरी एजेंसी द्वारा की गईं, जिसकी साख कमजोर थी।
हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि अपने आदेश में आरोपों का वर्णन करना आवश्यक नहीं है, और न ही जांच को सीबीआई को भेजे जाने को उचित ठहराने वाली सामग्रियों के अस्तित्व के संबंध में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना उचित है, जबकि न्यायालय ने एक स्वतंत्र जांच एजेंसी से केवल प्रारंभिक रिपोर्ट की मांग की है।
कोर्ट ने कहा,
"जब तक तथ्यों को उक्त एजेंसी द्वारा सत्यापित नहीं किया जाता है, तब तक हम प्रतिष्ठान के लिए कोई शर्मिंदगी पैदा नहीं करना चाहते हैं या किसी उच्च स्तरीय व्यक्ति की छवि को धूमिल नहीं करना चाहते हैं। यह तभी होगा जब, हम मामले में अंतिम आदेश पारित करेंगे, इस मामले में हमने जो रास्ता अपनाया है उसके कारण का हम पता लगाएंगे।''
न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दरमियान ये टिप्पणियां कीं।
याचिका को इस आधार पर दायर किया गया था कि 18 सितंबर के हाईकोर्ट के आदेश में आपराधिकता का कोई निष्कर्ष शामिल नहीं था और इस प्रकार किसी भी आपराधिकता की नामौजूदगी में आक्षेपित आदेश पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि आवेदकों/पुनर्विचार याचिकाकर्ताओं ने किसी भी पुनर्विचार आवेदन के सुनवाई योग्य होने के लिए "स्पष्ट त्रुटि" का मूल आधार नहीं बनाया है और इस प्रकार, आवेदन में योग्यता का अभाव है और यह खारिज किए जाने योग्य है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि उसके आदेश में विस्तृत तर्क और निष्कर्ष जानबूझकर शामिल नहीं किए गए थे।
कोर्ट ने कहा,
"...हमने जानबूझकर आपराधिकता के पहलू पर ध्यान नहीं देने का फैसला किया है क्योंकि इससे प्रारंभिक जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिसका एजेंसी को शामिल करने से लेकर भर्ती परीक्षा के तरीके तक पूरी भर्ती प्रक्रिया पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।”
न्यायालय ने आदेश में यह भी कहा कि विशेष अपील और रिट याचिका में लगाए गए आरोपों से संबंधित विशिष्ट उदाहरण गंभीर थे। इसमें यह भी कहा गया है कि अपने पसंदीदा व्यक्तियों के लिए नियुक्तियां हासिल करने में अधिकारियों की ओर से गंभीर भाई-भतीजावाद और मिलीभगत के कई आरोप लगाए गए हैं, जो सही पाए जाने पर न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करते हैं, बल्कि भर्ती प्रक्रिया में शामिल वरिष्ठ अधिकारियों को दंडात्मक परिणामों के लिए बेनकाब करें।
इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- विधान परिषद लखनऊ, प्रधान सचिव के माध्यम से और 2 अन्य बनाम सुशील कुमार और 11 अन्य, संबंधित मामले के साथ 2023 लाइव लॉ (एबी) 360
केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 360