इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'फर्जी' मदरसों की एसआईटी जांच के खिलाफ याचिका खारिज की, यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट के तहत राज्य की शक्ति को बरकरार रखा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 के तहत राज्य सरकार को दी गई शक्तियों के आधार पर आज़मगढ़ के कई मदरसों की एसआईटी जांच को बरकरार रखा है। कोर्ट ने माना कि अधिनियम, 2004 की धारा 13 के तहत, राज्य को कुछ परिस्थितियों में बोर्ड के संदर्भ के बिना अधिनियम के अनुरूप तत्काल कार्रवाई करने का अधिकार है। इसमें कहा गया है कि किसी भी समय सत्यापन के लिए दस्तावेज पेश करने के लिए मदरसों के प्रमुख या उसके अधिकारियों को बुलाना राज्य की वैधानिक शक्तियों के अंतर्गत है। ऐसे मामलों में जहां क़ानून राज्य को निरीक्षण करने का अधिकार देता है, कोर्ट ने कहा, "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत कमजोर हो सकते हैं"।
जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र ने कहा कि,
“प्रदत्त शक्ति का प्रयोग प्राकृतिक न्याय के किसी भी सिद्धांत के अनुसार किया जाना चाहिए या नहीं किया जाना चाहिए, यह शक्ति प्रदान करने वाले प्रावधान के स्पष्ट शब्दों, प्रदत्त शक्ति की प्रकृति, जिस उद्देश्य के लिए इसे प्रदान किया गया है और उस शक्ति के प्रयोग का प्रभाव, पर निर्भर करता है। ”
पृष्ठभूमि
मदरसों के खिलाफ विभिन्न शिकायतों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था। एसआईटी की रिपोर्ट को राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी के सामने रखा गया।
उस बैठक की कार्यवाही में याचिकाकर्ता-मदरसों सहित विभिन्न मदरसों के खिलाफ की जाने वाली प्रस्तावित विभिन्न कार्रवाइयों का खुलासा किया गया, जिसमें मदरसा पदाधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज करना भी शामिल है।
याचिकाकर्ता-मदरसों ने दावा किया कि उन्हें एसआईटी द्वारा की गई जांच में भाग लेने का कभी कोई अवसर नहीं दिया गया या मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा प्रस्ताव पारित करने से पहले उन्हें सुनवाई का कोई अवसर दिया गया। पूरी कार्यवाही पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था।
राज्य के वकील ने कहा कि लगभग 313 मदरसों में जांच की गई और प्रारंभिक जांच के दौरान विभिन्न अनुचित गतिविधियां और विसंगतियां पाई गईं। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने जांच कार्यवाही में भाग लिया लेकिन मैनेजर ने जरूरी रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराए। न ही पोर्टल जांच और स्थल निरीक्षण के दौरान विवरण अपलोड पाया गया। कुल मिलाकर स्थिति से पता चला कि मदरसा मौजूद ही नहीं है।
यह दिखाने के लिए कि राज्य सरकार के पास विवादित कार्रवाई करने की शक्ति है, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की धारा 13 पर भरोसा किया गया। समय से पहले होने के कारण रिट याचिका की विचारणीयता के संबंध में आपत्ति भी उठाई गई क्योंकि याचिकाकर्ता-मदरसों की मान्यता वापस नहीं ली गई थी, न ही उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी। इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि एसआईटी की रिपोर्ट रिट क्षेत्राधिकार में रद्द नहीं किया जा सकता।
फैसला
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी मदरसे को अस्थायी या स्थायी रूप से बंद करने मात्र से बोर्ड द्वारा उसे दी गई मान्यता खत्म नहीं हो जाती।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 की धारा 10(2)(iv) और 10(2)(v) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि बोर्ड के पास मान्यता देने या अस्वीकार करने और उसे वापस लेने की शक्ति है। अधिनियम, 2004 के तहत, बोर्ड को संस्थानों के प्रमुखों से रिपोर्ट मांगने, अपेक्षित निरीक्षण करने और बोर्ड के नियमों, विनियमों, निर्णयों, या निर्देशों को लागू करने के लिए उपयुक्त कार्रवाई करने का अधिकार है।
अधिनियम की धारा 13 के संबंध में, जस्टिस शैलेन्द्र ने कहा कि राज्य सरकार को अपनी मर्जी से या किसी विशेष विषय पर बोर्ड द्वारा दिए गए संदर्भ पर किसी भी मामले के संबंध में बोर्ड को निर्देश जारी करने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा,
"उपरोक्त के मद्देनजर, न तो बोर्ड और न ही राज्य सरकार शक्तिहीन है और न ही कार्यहीन है, यदि किसी भी तरह से कोई अवैधता, अनियमितता, दोष, शरारत, गलत बयानी आदि उनके संज्ञान में आती है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि या तो किसी मदरसे को गलत तरीके से मान्यता दी गई है, या यदि सही भी दी गई है, तो मान्यता की शर्तों का उल्लंघन किया जा रहा है या बोर्ड की राय में या राज्य सरकार की राय में यह उचित नहीं है कि मान्यता अनिश्चित काल तक जारी रखी जाए।
न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 10 और 13 के आलोक में, बोर्ड और राज्य सरकार को संस्थानों के प्रमुखों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने या दस्तावेज पेश करने के लिए बुलाकर कार्रवाई करने का अधिकार है। मदरसों के प्रमुख को बुलाने में राज्य की ऐसी कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होगी। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि राज्य के पास कथित 'फर्जी' मदरसों की जांच के लिए विशेष जांच दल स्थापित करने की शक्ति है।
इस प्रकार, रिट याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि अधिनियम, 2004 की धारा 10(2)(vi) ऐसे संस्थानों के प्रमुखों को सक्षम प्राधिकारी के समक्ष शिकायतें उठाने का पर्याप्त अवसर प्रदान करती है।
केस टाइटल: अंजुमन सिद्दिकिया जामिया नूरुल ओलूम और 4 अन्य बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य, और सी/एम मदरसा इस्लामिया और 12 अन्य बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य