इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम को चुनाव ड्यूटी के दौरान एक शिक्षक की COVID-19 मौत के मामले में मुआवजे का फैसला करने का निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जिला मजिस्ट्रेट, जौनपुर को पिछले साल उत्तर प्रदेश पंचायत चुनावों के दौरान COVID-19 के कारण एक शिक्षक की मौत के मामले में किए गए मुआवजे के दावे की जांच करने और एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विक्रम डी. चौहान की पीठ आर्यन श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। आर्यन की मां को यूपी पंचायत चुनावों में चुनाव ड्यूटी दी गई थी। ड्यूटी के दौरान COVID-19 से संक्रमित होने के कारण बाद उनकी मृत्यु हो गई।
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि सरकारी आदेश दिनांक एक जून, 2021 के अनुसार मुआवजे के भुगतान का दावा दूसरे प्रतिवादी के समक्ष किया गया था। हालांकि, इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। इसलिए, उसने हाईकोर्ट में वर्तमान रिट याचिका दायर की।
अदालत ने याचिका का निपटारा करते हुए आदेश दिया,
"मामले के तथ्यों में जिला मजिस्ट्रेट, जौनपुर को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया जाता है कि मुआवजे के भुगतान के लिए याचिकाकर्ता के दावे की जांच पूर्वोक्त सरकारी आदेश के अनुसार, एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करके आदेश की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर की जाती है।"
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह यूपी पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले शिक्षकों के परिवार को मुआवजा प्रदान करने के लिए अपनी नीति पर फिर से विचार करे।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विक्रम डी. चौहान की खंडपीठ का प्रथम दृष्टया विचार था कि उत्तर प्रदेश सरकार की मुआवजा नीति के खंड 12 में निहित COVID-19 के 30 दिनों के भीतर मृत्यु का प्रतिबंध वर्गीकरण तर्कसंगत पर आधारित नहीं है।
यूपी सरकार के आदेश के अनुसार, COVID-19 के कारण मरने वाले 2,000 से अधिक राज्य सरकार के कर्मचारियों के परिवारों को 30 लाख रुपये का वितरण किया जाना है।
गौरतलब है कि मई, 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य को यूपी पंचायत चुनाव के दौरान COVID-19 के कारण मरने वाले मतदान अधिकारियों के परिवारों को अनुग्रह राशि के रूप में कम से कम एक करोड़ रूपये देने चाहिए।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की एक खंडपीठ ने कहा,
"ऐसा नहीं है कि किसी ने चुनाव के दौरान स्वेच्छा से अपनी सेवाएं दी हो, लेकिन चुनाव के दौरान अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए यह सब अनिवार्य बना दिया, भले ही उन्होंने अपनी अनिच्छा दिखाई हो।"
केस टाइटल - आर्यन श्रीवास्तव बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और तीन अन्य
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