इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जितेंद्र त्यागी ऊर्फ सैयर वसीम रिजवी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया, ड्राइवर की पत्नी से रेप का आरोप
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ सैयद वसीम रिजवी के खिलाफ उन्हीं के पूर्व ड्राइवर की पत्नी की ओर से 2021 में दर्ज कराए गए बलात्कार के मामले में अग्रिम जमानत नामंजूर कर दी है।
जस्टिस मोहम्मद फैज़ आलम खान की खंडपीठ ने यह देखते हुए कि पिछले महीने लखनऊ के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने त्यागी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था, गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं पाया।
उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने त्यागी के प्रभाव के बारे में शिकायतकर्ता/पीड़ित की ओर से जताई गई आशंका को भी ध्यान में रखा, जिसके कारण उन्हें ट्रेस नहीं किया जा सका और उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया, जिससे जांच में देरी हुई।
यह देखते हुए कि मजिस्ट्रेट द्वारा पारित विभिन्न आदेशों के बावजूद, जांच अधिकारी ने मामले में जांच पूरी नहीं की है, खंडपीठ ने कहा कि जांच अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बिना किसी देरी के जांच पूरी करे और धारा 173( 2) सीआरपीसी के तहत एक रिपोर्ट जल्द से जल्द पेश करे।
मामला
त्यागी के खिलाफ मामला यह है कि उन्होंने अपने पूर्व ड्राइवर की पत्नी के साथ 2021 में दुष्कर्म किया था। त्यागी के खिलाफ मामले में धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दायर कर एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि त्यागी, जिनके साथ पीड़िता का पति ड्राइवर के तौर पर काम करता था, उन्होंने पीड़िता के बच्चों को जान से मारने की धमकी देकर उसके साथ दुष्कर्म किया।
आरोपों में यह भी कहा गया कि आवेदक पीड़िता के पति को लखनऊ के बाहर भेजने के बाद उसके साथ बलात्कार करता थी। वह चुप रहती थी क्योंकि उसे धमकी दी जाती थी, और डराया जाता था।
यह भी आरोप है कि 11 जून, 2021 को जब शिकायतकर्ता ने त्यागी के कुकर्मों के बारे में अपने पति को बताया तो उसने त्यागी से संपर्क किया, जहां त्यागी ने उसे धमकी दी। जिसके बाद शिकायतकर्ता के पति ने त्यागी की ओर से दिए गए घर को छोड़ दिया।
दूसरी ओर, मौजूदा मामले में गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करते हुए, त्यागी ने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि उनकी विचारधारा और सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा दायर याचिकाओं के कारण कुछ कट्टरपंथी उनके खिलाफ हैं और उनके खिलाफ रेप का झूठा मामला दर्ज करने में उनकी भूमिका थी।
उनकी ओर से यह भी तर्क दिया गया कि उन्हें सरकार की ओर से वाई-प्लस सुरक्षा कवर प्रदान किया गया है, जिसमें 16 पुलिस कर्मी हमेशा उनके साथ तैनात रहते हैं और इस तरह उनके लिए शिकायतकर्ता/पीड़ित का बलात्कार करना असंभव है।
उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि वह एक सम्मानित नागरिक हैं और शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में बहुत उच्च पद पर थे, और इस मामले में उनकी गिरफ्तारी से उन्हें बदनाम किया जाएगा और उनकी स्वतंत्रता को भी चोट पहुंचेगी।
निष्कर्ष
शुरुआत में, अदालत ने मामले की केस डायरी का अवलोकन किया और पाया कि शिकायतकर्ता के पति और शिकायतकर्ता द्वारा कई हलफनामे दिए गए थे, जिसमें कहा गया था कि उस पर मामला वापस लेने के लिए दबाव डाला जा रहा है और शिकायतकर्ता/पीड़ित ने अपेन जीवन के लिए खतरा भी बताया है।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता/पीड़ित की ओर से दायर विभिन्न आवेदनों पर, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, लखनऊ ने कम से कम 7 आदेश पारित किए, जिसमें जांच अधिकारी को निष्पक्ष तरीके से और तेजी से जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया।
पीठ ने आगे कहा कि जांच के दरमियान, जांच अधिकारी ने कुछ गवाहों के बयान दर्ज किए थे जिन्होंने कहा था कि उन्होंने आवेदक को कई मौकों पर अपने पति की अनुपस्थिति में शिकायतकर्ता के क्वार्टर की ओर जाते हुए देखा है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि 20.12.2022 को जांच अधिकारी ने पहली बार आवेदक के ठिकाने को ट्रेस करना शुरू किया और उसके बाद कई बार आवेदक को ट्रेस किया गया लेकिन उसका पता नहीं चल सका।
यह देखते हुए कि त्यागी को अग्रिम जमानत का लाभ देने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं था, अदालत ने उसकी याचिका को यह निर्देश देकर खारिज कर दिया कि उसके आदेश की एक प्रति पुलिस आयुक्त, लखनऊ के माध्यम से संबंधित जांच अधिकारी को आवश्यक कार्रवाई के लिए को तुरंत भेजी जाए।
केस टाइटलः जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ सैयद वसीम रिजवी बनाम द स्टेट ऑफ यूपी, अतिरिक्त मुख्य सचिव, गृह विभाग लखनऊ के माध्यम से, और 2 अन्य [CRIMINAL MISC ANTICIPATORY BAIL APPLICATION U/S 438 CR.P.C. No. - 302 of 2023]
केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 66