इलाहाबाद हाईकोर्ट ने COVID-19 से जान गंवाने वाले न्यायमूर्ति वी. के. श्रीवास्तव के उपचार संबंधित जांच के लिए समिति का गठन किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (11 मई) को दिवंगत न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव को दिए गए उपचार संबंधित जांच के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी का गठन किया। न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पिछले महीने COVID-19 से मौत हो गई थी। यह कमेटी हाईकोर्ट को अगले दो सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौपेंगी।
इससे पहले, 4 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायमूर्ति वी. के. श्रीवास्तव का उपचार करने वाले राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों से जवाब मांगा था।
11 मई को जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने राज्य सरकार द्वारा दायर रिपोर्ट का उल्लेख किया और कहा कि न्यायमूर्ति श्रीवास्तव को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, क्योंकि वह पिछले पांच दिनों से बुखार से पीड़ित थे और उसके बाद उनका निधन हो गया।
अदालत ने आगे उल्लेख किया कि दस्तावेजों से पता चलता है कि उन्हें जीवनरक्षक दवा रेमडेसिवीर देने की सलाह दी गई थी।
हालांकि, अदालत ने टिप्पणी की,
"रिपोर्ट यह नहीं बताती है कि वास्तव में उन्हें पहले दिन और बाद के दो दिनों में रेमडेसिवीर दी गई थी या नहीं। रिपोर्ट से पता चलता है कि 24 अप्रैल, 2021 की शाम 7:20 बजे तक उन्हें कोई कठिनाई नहीं थी और इसके बाद उनकी स्थिति बिगड़ने लगी थी।"
कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू द्वारा प्रस्तुत किए गए जवाब को भी ध्यान में रखा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, लखनऊ में कोई भी पल्मोनोलॉजिस्ट तैनात नहीं था, जहां जस्टिस श्रीवास्तव का इलाज चल रहा था।
इस पर कोर्ट ने कहा,
"एंटीवायरल ड्रग रेमडेसिवीर ने COVID-19 के खिलाफ काफी काम किया है, लेकिन अदालत ने जो मुद्दा उठाया वह यह था कि क्या रेमडेसिवीर की आवश्यकता का आकलन करने के लिए पल्मोनोलॉजिस्ट की कोई सलाह और उपस्थिति के अभाव में दिवंगत न्यायमूर्ति वीके श्रीवास्तव को रेमडेसिवीर की पूरी खुराक दी गई थी?"
अदालत ने आगे कहा कि यह भी जाना जाना चाहिए कि क्या चिकित्सा फ़ाइल में उस प्रभाव पर ध्यान दिए बिना इंजेक्शन दिया गया था।
प्रथम दृष्टया, न्यायालय की राय थी कि चूंकि रिकॉर्ड मामले में एक पूर्ण मार्गदर्शक नहीं है और राज्य सरकार की रिपोर्ट के पृष्ठ संख्या- 92 में कुछ अंतर पड़ने के अलावा लगता है कि मामला बहुत सुपाठ्य नहीं है। इसलिए सरकार द्वारा गठित समिति द्वारा मामले की जांच की जानी चाहिए।
इस अवलोकन के जवाब में अतिरिक्त महाधिवक्ता एडवोकेट वी. राजू ने कहा कि राज्य को दिवंगत न्यायमूर्ति वी.के. श्रीवास्तव की उपचार की जांक करने के लिए समिति बनाने में कोई आपत्ति नहीं है।
तदनुसार, न्यायालय ने राज्य सरकार को एक समिति (3 दिनों के भीतर गठित करने के लिए) का गठन करने का निर्देश दिया, जो इस प्रकार होगी:
1. एसजीपीजीआई, लखनऊ के एक वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट के साथ इसके संयोजक के रूप में एक सचिव स्तर के अधिकारी
2. अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष समिति द्वारा इसके सदस्यों के रूप में नामित किए जाने वाले एक वरिष्ठ अधिवक्ता।
3. लखनऊ बेंच के सीनियर रजिस्ट्रार को निर्देश दिया गया है कि वह सरकार, SGPGI, लखनऊ और अवध बार एसोसिएशन के साथ समन्वय स्थापित कर लेटर बनाने के लिए कमेटी का गठन करें और दो सप्ताह के भीतर इस न्यायालय को रिपोर्ट सौंपेंगे।
केस टाइटल: क्वारंटाइन सेंटरों पर अमानवीय स्थिति...
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