[पुलिस पर भीड़ के हमले] 'नागरिकों के बीच कानून की अवज्ञा करने का यह नया व्यवहार है', : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता व्यक्त की
पुलिस पर भीड़ के हमलों के बढ़ते मामलों पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (08 अक्टूबर) को पुलिस पर लाठी और लोहे की छड़ से हमला करने के आरोपी आवेदकों के खिलाफ दायर एक आरोप पत्र को खारिज करने की अनुमति देने से मना कर दिया।
दरअसल न्यायमूर्ति जे. जे. मुनीर की पीठ उन दो आवेदकों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अपने खिलाफ धारा 147, 148, 149, 323 आईपीसी के तहत दर्ज मामले को चुनौती दी थी।
न्यायालय द्वारा समझे गए मामले के तथ्य
यह आरोप लगाया गया था कि पुलिस कर्मियों द्वारा सड़क के किनारे, जाँच के उद्देश्य से दो युवकों को अपने दोपहिया वाहनों को रोकने के लिए कहा गया था। वे रुके नहीं बल्कि आगे बढ़ गए।
इससे एक दुर्घटना हुई जिसमें दोनों युवकों को चोटें आईं। उन्हें पुलिस कर्मियों द्वारा चिकित्सा देखभाल के लिए भेजा गया।
इसके तुरंत बाद, एक भीड़ इकट्ठी हुई, जिसने पुलिस के विरोध में अभद्रता की और उन्होंने सड़क को अवरुद्ध कर दिया और वाहनों की आवाजाही को रोक दिया।
जिस भीड़ का हिस्सा मौजूदा आवेदक सदस्य थे, और वे एफआईआर में नामजद थे, उन्होंने पुलिस कर्मियों पर हमला किया; उन्होंने पुलिस पर लाठी और लोहे की छड़ों से हमला किया।
मण्डली में लगभग 200-300 पुरुष शामिल थे। उन्होंने पुलिसकर्मियों पर ईंट-पत्थर भी फेंके, जिससे दो पुलिसकर्मी, कांस्टेबल विपिन कुमार और कांस्टेबल यशपाल घायल हो गए।
सामने रखे गए तर्क
आवेदकों के लिए पेश अधिवक्ता ने यह प्रस्तुत किया कि वे (आवेदक) भीड़ में से एक थे और उनके खिलाफ सभी सबूत निराधार हैं। यह प्रस्तुत किया गया कि उन्हें अपराध से जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं था।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने इस आवेदन को सुनवाई के लिए स्वीकार करने के प्रस्ताव का विरोध किया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि यह पुलिस के कर्तव्यों के निर्वहन से उन्हें बाधित करने का मामला है।
कोर्ट का अवलोकन
न्यायालय ने चार्जशीट और कागजात का अवलोकन किया, जिसके चलते आपराधिक कार्यवाही शुरू की गयी।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"पुलिस कागजात से यह प्रतीत होता है कि यह ऐसा मामला है जो नागरिकों के बीच कानून की अवज्ञा करने वाले एक नए व्यवहार को दिखाता है।"
प्रथम दृष्टया, न्यायालय का विचार था कि आवेदकों और उन सभी लोगों का कृत्य जो इस भीड़ का हिस्सा थे, एक अपराध का गठन करते हैं जो समाज में स्थापित शान्ति की जड़ों पर प्रहार करता है।
अंत में, कोर्ट ने कहा,
"बेशक, यह कहना सही नहीं है कि यह आरोप सच हैं। इसका फैसल परीक्षण (ट्रायल) में किया जाना है। लेकिन यह मांग कि आवेदक इस चार्जशीट को रद्द करने के लिए कहें, लगभग निराधार है। मामले में शामिल कोर्ट की प्रक्रिया का कोई दुरुपयोग नहीं है। तदनुसार, यह आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है।"