सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों से सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई करने के यूपी सरकार के नोटिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर के एक याचिकाकर्ता को सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के नोटिस से अंतरिम संरक्षण दिया है। याचिकाकर्ता को एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान यूपी सरकार द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए वसूली नोटिस दिया गया था।
न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने सरकार के वसूली नोटिस पर रोक लगा दी है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस तरह के नोटिस की वैधता को पहले ही चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि राज्य सरकार द्वारा नियोजित नियमों के कथित अभ्यास में एडीएम की ओर से नोटिस जारी किया गया था जबकि ऐसा करना डेस्टरेक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम सरकार (2009) 5 SCC 212 में पारित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
इन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि हर्जाने या जांच की देयता का अनुमान लगाने के लिए एक वर्तमान या सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के न्यायाधीश को दावा आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। ऐसा कमिश्नर हाईकोर्ट के निर्देश पर सबूत ले सकता है। एक बार देयता का आकलन करने के बाद इसे हिंसा के अपराधियों और घटना के आयोजकों द्वारा वहन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच भी एक ऐसी ही चुनौती पर सुनवाई कर रही है। वकील परवेज आरिफ टीटू द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय का उक्त आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर दिए गए डेस्टरेक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम सरकार (2009) 5 SCC 212 में पारित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका के मद्देनज़र हाईकोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख तक सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही के परिणाम के अधीन लगाए गए नोटिस पर रोक लगा दी है।
बेंच ने कहा कि
"हम इस विचार के हैं कि जिन नियमों के तहत नोटिस जारी किया गया है, उन्हें शीर्ष अदालत के समक्ष चुनौती दी गई है, इसलिए न्याय की मांग है कि जारी किए गए नोटिस के प्रभाव और संचालन को तब तक रोक दिया जाए है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट में समस्या का निर्धारण न हो जाए।"
कथित तौर पर, 19 दिसंबर, 2019 को लखनऊ और राज्य के अन्य हिस्सों में हुए विरोध प्रदर्शनों में सरकारी और निजी संपत्ति को कई नुकसान पहुंचाया गया जिसमें सरकारी बसें, मीडिया वैन, मोटर बाइक, आदि भी शामिल थी।
इसके बाद राज्य सरकार ने कथित तौर पर विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों के लिए यूपी ने Prevention of Damage to Public Property Act, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किए थे।
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का हवाला देते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इन नोटिसों को चुनौती देने वाली एक याचिका को इस सप्ताह के शुरू में खारिज कर दिया था।
मामले को 20 अप्रैल को आगे विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
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