ज्ञानवापी स्वामित्व विवाद| इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई टालने की मस्जिद समिति की याचिका खारिज की, सुनवाई 4 अक्टूबर को होगी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधकारिणी कमेटी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से ज्ञानवापी-काशी काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामलों में सुनवाई टालने के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया है। आवेदन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के समक्ष लंबित है।
18 सितंबर को दायर आवेदन में प्रार्थना की गई कि सुनवाई तब तक न की जाए, जब तक जिस आवेदन पर चीफ जस्टिस ने सिंगल जज से स्वामित्व विवाद के मामलों को वापस लेने के लिए 11 अगस्त को एक प्रशासनिक आदेश पारित किया था, उस आवेदक की पहचान का खुलासा न हो जाए, और यह सत्यापित हो जाए कि क्या ऐसा व्यक्ति विपरीत पक्षों/वादी का वकील है।
आवेदन को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर की पीठ ने कहा कि आवेदक की पहचान, जिसने सिंगल जज के समक्ष रिट याचिकाओं की सुनवाई में प्रक्रियात्मक अनुचितता को उजागर किया था, महत्वपूर्ण नहीं है, और अंजुमन की ओर से मामलों की सुनवाई स्थगित करने का आवेदन "पूरी तरह से अनावश्यक" है।
उन्होंने कहा,
“किस पक्ष ने सुनवाई के संचालन में प्रक्रियात्मक अनौचित्य की ओर चीफ जस्टिस का ध्यान आकर्षित किया या किसने आवेदन दायर किया, इसका कोई महत्व नहीं है… अब जब सही तथ्यों पर ध्यान दिया गया है और चीफ जस्टिस से प्रशासनिक पक्ष पर आवश्यक आदेश प्राप्त किए गए हैं, जो न्यायालय की ओर से 28.08.2023 को दिए गए आदेश में निर्दिष्ट है, तो इस न्यायालय के लिए मामलों की सुनवाई आगे नहीं बढ़ाने का कोई कारण नहीं है।”
उल्लेखनीय है कि 11 अगस्त को चीफ जस्टिस ने न्यायिक औचित्य, न्यायिक अनुशासन और मामलों की लिस्टिंग की पारदर्शिता के हित में जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ से ज्ञानवापी स्वामित्व विवाद मामलों को वापस लेने के लिए प्रशासनिक पक्ष पर एक आदेश पारित किया था।
बाद में ये मामले चीफ जस्टिस की बेंच को सौंपे गए। यह घटनाक्रम अगस्त 2021 से मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस पाडिया की पीठ द्वारा 25 जुलाई को सुनवाई पूरी करने और मामलों में आदेश सुरक्षित रखने के तुरंत बाद आया था।
इस तरह के फैसले के पीछे का कारण चीफ जस्टिस के 28 अगस्त के आदेश में बताया गया था, जिसमें यह तर्क दिया गया था कि मामलों को सूचीबद्ध करने में प्रक्रिया का पालन न करना, निर्णय सुरक्षित रखने के लिए क्रमिक आदेश पारित करना और फिर से जज ( जस्टिस प्रकाश पाडिया) के समक्ष मामलों को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करना, जबकि उनके पास रोस्टर के मास्टर के अनुसार क्षेत्राधिकार नहीं था, जिसके कारण मामलों को वापस ले लिया गया था।
अपने 12 पेज के आदेश में, चीफ जस्टिस ने कहा था कि प्रशासनिक पक्ष पर उन्होंने यह आदेश दरअसल एक शिकायत पर दिया था, जो 27 जुलाई, 2023 को कार्यवाही के एक पक्ष के वकील ने उनसे की थी। शिकायत में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया था कि आक्षेपित मामलों की सुनवाई नियमों के अनुसार मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए कानून में निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए चल रही थी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि 28 अगस्त को जब मामला चीफ जस्टिस की बेंच के सामने सुनवाई के लिए आया तो मस्जिद कमेटी ने आपत्ति जताई कि चीफ जस्टिस को प्रशासनिक पक्ष में जस्टिस प्रकाश पाडिया की बेंच से मामले को फिर से सुनवाई के लिए, वापस नहीं लेने चाहिए थे।
इसके बाद कमेटी ने एक औपचारिक आवेदन दायर किया, जिसमें उस आवेदक की पहचान का खुलासा करने की मांग की गई जिसके आवेदन पर मामले स्थानांतरित किए गए थे।
न्यायालय ने कहा कि प्रश्नगत आवेदन का सीमित उद्देश्य यह था कि कार्यवाही में उत्पन्न प्रक्रियात्मक अनौचित्यता चीफ जस्टिस के समक्ष उजागर हो, जिसके लिए नियमों के अनुसार रिट की सुनवाई के लिए अनिवार्य प्रक्रियाओं का अनुपालन किया गया।
इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज कर दी और मामलों को चार अक्टूबर को सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।
केस टाइटलः अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, वाराणसी बनाम प्रथम एडीजे, वाराणसी और 2023 अन्य, LiveLaw (AB) 349 [MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. - 3341 of 2017]
केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 349