किसी संपत्ति का हस्तांतरण सिर्फ इसलिए अवैध नहीं हो सकता, क्योंकि हस्तांतरण संपत्ति पर मुकदमा लंबित रहते किया गया, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Update: 2019-08-17 04:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिस पेंडेंस सिद्धांत का प्रभाव पक्षकारों द्वारा एक मुकदमे के संबंध में किए गए सभी हस्तातंरण को निरस्त करना नहीं है, बल्कि पक्षकारों को मुकदमे में मिलने वाली डिक्री या आदेश के अधीन जो अधिकार मिले हैं, उन पर यह लागू होता है।

इस तरह के हस्तांतरण केस के परिणाम के अधीन मान्य रहते हैं। यह टिप्पणी जस्टिस अभय मनोहर सपरे और जस्टिस दिनेश महेश्वरी की पीठ ने हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए की है। हाईकोर्ट ने दूसरी अपील पर सुनवाई के बाद निर्णय दिया था कि मुकदमे की लंबित रहने के दौरान किसी तीसरे पक्षकार को किए गए संपत्ति हस्तांतरण अवैध हैं। इस मामले में हाईकोर्ट ने माना था कि विशिष्ट प्रदर्शन या अदायगी के लिए मुकदमे के लंबित रहने के दौरान प्रतिवादियों को संपति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 52 के प्रतिबंध के तहत मुकदमे की ज़मीन को हस्तांतरित से रोक दिया गया था। इसलिए अन्य प्रतिवादियों के पक्ष में की गई बिक्री डीड को अवैध माना जाना चाहिए।

पीठ ने कहा कि मधुकर निवृत्ति जगताप बनाम प्रमिलाबाई चंदूलाल परांडेकर मामले में हाईकोर्ट ने त्रृटिपूर्वक माना कि विक्रेताओं द्वारा बाद के खरीदारों को की गई बिक्री अवैध है, हालांकि प्रारंभ से कानूनन तय है कि बाद के क्रेताओं को बेचना अवैध नहीं है। पीठ ने संपत्ति अंतरण की धारा 52 का हवाला देते हुए यह कहा।

उपरोक्त टिप्पणियों से किसी भी तरह से यह सुझाव नहीं निकलता है कि कोई लेन-देन अधिनियम की धारा 52 से टकराने के कारण अवैध या अमान्य हो जाता है, जैसा कि हाइकोर्ट ने मान लिया था।

सरविंद्र सिंह (सुपरा) के मामले पर हाईकोर्ट ने विश्वास किया। अनुवर्ती खरीददार ने भी खुद को एक प्रतिवादी के तौर पर रिकार्ड पर लेने की मांग की और इसी संदर्भ में इस कोर्ट ने संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 52 का हवाला दिया और इंगित किया कि उनके पक्ष में किया गया हस्तांतरण लिस पेंडेंसी के सिद्धांत से प्रभावित होगा। यह फैसला कोई ऐसी आज्ञा नहीं है, जिसके आधार सूट की पेंडेंसी के दौरान किए गए सभी हस्तांतरण को अवैध या अमान्य घोषित कर दिया जाए। लिस पेंडेंसी के सिद्धांत का प्रभाव मुकदमे के पक्षकारों द्वारा किए गए सभी हस्तातंरणों को निरस्त करना नहीं है, बल्कि पक्षकारों के जो अधिकार मुकदमे में मिलने वाली डिक्री या आदेश के अधीन है, उन पर यह लागू होता है।

दूसरे शब्दों में इसका प्रभाव यह है कि मुकदमे में पास की गई डिक्री या आदेश अनुवर्ती के खरीददार को भी बाध्य करती है। हालांकि हस्तांतरण मुकदमे के परिणाम के अधीन मान्य रहते हैं। 



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