ऐसे एग्रीमेंट क्लॉज, जो आवासीय इकाइयों में पालतू जानवर को रखने पर रोक लगाते हैं अवैध, कानून में अप्रवर्तनीय: केरल हाईकोर्ट

Update: 2021-11-03 10:07 GMT

केरल हाईकोर्ट ने कहा है उप-कानून या एक समझौते में शामिल ऐसा क्लॉज जो किसी व्यक्ति को अपने आवासीय परिसर में पालतू जानवर रखने से रोकता हो, कानून में शून्य और अप्रवर्तनीय होगा।

जस्टिस एके जयसंकरण नांबियार और जस्टिस गोपीनाथ पी एक जनहित याचिका पर व‌िचार कर रही थी। याचिकाकर्ता जिस अपार्टमेंट में रहता था, उसके रेजिडेंट एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने उसे अपने अपार्टमेंट में पालतू जानवार को रोक दिया था, जिससे व्य‌थित होकर उसने कोर्ट में याचिका दायर की थी।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि एसोसिएशन के उप-नियमों के एक खंड का इस्तेमाल करते हुए, जो निवासियों को अपनी पसंद के पालतू जानवरों को अपार्टमेंट में रखने से रोकता है, एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने उन्हें नोटिस जारी कर उन्हें पालतू जानवर को हटाने के लिए कहा है।

कोर्ट ने याचिका को यह कहते हुए अनुमति दी, "हम इस रिट याचिका को यह घोषित करते हुए अनुमति देते हैं कि किसी भी उप-कानून या समझौते में शामिल खंड, जो किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति के कब्जे वाली आवासीय इकाई में अपनी पसंद के पालतू जानवर को रखने से पूरी तरह से प्रतिबंधित करने का प्रभाव डालते हैं, उसे शून्य और कानून में अप्रवर्तनीय माना जाना चाहिए। नतीजतन, रेजिडेंट ओनर्स एसोसिएशन और रेजिडेंट वेलफेयर्स एसोसिएशन अपने संबंधित परिसर में पालतू जानवरों को रखने या प्रवेश करने पर रोक लगाने वाले नोटिस बोर्ड और साइनपोस्ट लगाने से दूर रहेंगे।"

रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान, इसी प्रकार से पीड़ित अन्य व्यक्तियों ने अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप में खुद को शामिल किया। पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि इस घोषणा मुकदमे की कार्यवाई के रूप में देखा जाएगा और यह निर्णय भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 41 के अंतर्गत आता है।

पीठ ने कहा, "रजिस्ट्री इस फैसले की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजेगी, जो बदले में, नए पुनर्गठित राज्य पशु कल्याण बोर्ड, राज्य के प्रशासनिक विभागों और इसके कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए आवश्यक निर्देश जारी करने के लिए तत्काल कदम उठाएगी ताकि इस निर्णय में घोषित अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में नागरिकों द्वारा उनके संज्ञान में लाई गई शिकायतों पर तत्काल ध्यान दिया जा सके और समाधान किया जा सके।"

आदेश मे जानवरों के जीवन के अधिकार के पहलू को भी शामिल किया गया है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए नागराज मामले में कहा है । पीठ ने राज्य सरकार को राज्य में लोगों के बीच जानवरों के प्रति सम्मान पैदा करने के लिए फैसले में दिए गए सुझावों पर ध्यान देने का निर्देश दिया था।

यह भी सुझाव दिया गया था कि भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने 26.02.2015 के पत्र के माध्यम से इस विषय पर कुछ दिशानिर्देश जारी किए है और अपार्टमेंट में पालतू जानवरों को रखने के लिए शर्तों को निर्धारित करते समय इन दिशानिर्देशों को को अपनाया जा सकता है।

मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट केएस हरिहरपुत्रन, एसआर प्रशांत, भानु तिलक और श्रुति के पेश हुए। प्रतिवादियों की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अशोक एम चेरियन, सरकारी वकील श्याम प्रशांत, सीजीसी जयशंकर वी नायर, एमिकस क्यूरी कीर्तिवास गिरी, एडवोकेट सयूजा और केआर राजीव कृष्णन उपस्थित हुए।

केस टाइटल: पीपल फॉर एनिमल्स बनाम केरल राज्य और अन्य।

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