वकीलों के विरोध के बाद पुलिस अधिकारियों के साक्ष्य संबंधी अधिसूचना पर रोक, बार प्रतिनिधियों से मिलेंगे गृह मंत्री

Update: 2025-08-28 16:39 GMT

दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल (Delhi LG) द्वारा 13 अगस्त, 2025 को जारी अधिसूचना सभी हितधारकों की सुनवाई के बाद ही लागू की जाएगी। बता दें, उक्त अधिसूचना में दिल्ली के सभी पुलिस थानों को पुलिसकर्मियों के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालतों में गवाही देने के स्थान के रूप में नामित किया गया था।

दिल्ली पुलिस द्वारा जारी बयान में कहा गया कि केंद्रीय गृह मंत्री इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बार के प्रतिनिधियों से मिलेंगे।

दिल्ली पुलिस के बयान में कहा गया,

"उपरोक्त के मद्देनजर, चिंताओं को दूर करने और उनका समाधान करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि केंद्रीय गृह मंत्री बार के प्रतिनिधियों से खुले मन से इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मिलेंगे। इस बीच उक्त अधिसूचना का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन सभी हितधारकों की सुनवाई के बाद ही किया जाएगा।"

Delhi LG द्वारा जारी संबंधित अधिसूचना में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 265(3) का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी के 226 पुलिस थानों को ऐसे स्थान के रूप में "नामित" किया गया, जहां से पुलिस अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालतों में गवाही दे सकते हैं और अपने साक्ष्य प्रस्तुत कर सकते हैं।

BNSS की धारा 265(3) का दूसरा प्रावधान, राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित निर्दिष्ट स्थान पर ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाहों की जांच करने की अनुमति देता है।

इस अधिसूचना का कानूनी समुदाय ने कड़ा विरोध किया। पिछले सप्ताह, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और दिल्ली जिला न्यायालय बार एसोसिएशनों की समन्वय समिति ने Delhi LG की अधिसूचना की निंदा करते हुए प्रस्ताव जारी किए।

दिल्ली की निचली अदालतों के वकील इस अधिसूचना को वापस लेने की मांग को लेकर सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

बार निकायों का कहना है कि पुलिस अधिकारियों को पुलिस थानों से गवाही देने की अनुमति देने से निष्पक्ष सुनवाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उनका कहना है कि साक्ष्य केवल अदालत में ही दिए जाने चाहिए।

दिल्ली के सभी जिला न्यायालय बार एसोसिएशन की समन्वय समिति ने 18 अगस्त को मुख्यमंत्री और 20 अगस्त को Delhi LG को अधिसूचना के विरुद्ध ज्ञापन सौंपे।

21 अगस्त को सभी जिला न्यायालय बार एसोसिएशन की समन्वय समिति ने हड़ताल पर जाने का प्रस्ताव लिया था, जो 27 अगस्त तक जारी रहा। दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी वकीलों से कहा कि जब तक अधिसूचना वापस नहीं ले ली जाती, वे अदालत में काली पट्टी बाँधकर काम करें।

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने 27 अगस्त को अधिसूचना की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया कि इससे जांच अधिकारियों और न्यायपालिका के बीच असंतुलन की धारणा पैदा होने का खतरा है। SCAORA ने कहा कि अदालतें खुले सार्वजनिक मंच हैं, जबकि पुलिस स्टेशन प्रतिबंधित सुविधाएं हैं और ऐसे नियंत्रित वातावरण में गवाही देने से साक्ष्यों पर अनुचित प्रभाव या हेरफेर की चिंताएँ पैदा हो सकती हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिसूचना के खिलाफ जनहित याचिका को 3 सितंबर, 2025 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। वकील कपिल मदान द्वारा दायर अन्य जनहित याचिका में कहा गया कि अधिसूचना अभियोजन पक्ष के गवाहों को अपने आधिकारिक परिसर के भीतर गवाही देने की अनुमति देकर अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को प्रभावित करती है।

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