हाईकोर्ट के दबाव के बाद कर्नाटक सरकार ने खाली पड़े लोक अभियोजक पदों को भरने के लिए कदम उठाए
कर्नाटक सरकार ने सोमवार को हाईकोर्ट को सूचित किया कि राज्य भर की अदालतों में खाली पदों पर लोक अभियोजकों की नियुक्ति में पर्याप्त अनुपालन किया गया है। हालांकि, कुछ खाली पदों को भरा जाना बाकी है क्योंकि उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिले हैं।
चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस सचिन शंकर मखदूम ने अपने आदेश में कहा,
"अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ताओं ने निर्देश के आधार पर प्रस्तुत किया कि पर्याप्त अनुपालन किया गया है। 24 रिक्त लोक अभियोजक पदों में से 19 पर नियुक्ति हो चुकी है। वरिष्ठ सहायक लोक अभियोजक के पद पर 58 लोक अभियोजकों में से 28 पर नियुक्ति हो चुकी है। अब तक सहायक लोक अभियोजकों की नियुक्ति के संबंध में एनएलएसआईयू द्वारा परीक्षाएं आयोजित की जा रही हैं और उक्त परीक्षा प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी कर ली जाएगी।"
कोर्ट ने जोड़ा,
"यह प्रस्तुत किया गया है कि लोक अभियोजकों और वरिष्ठ सहायक लोक अभियोजकों के शेष पदों के लिए उपयुक्त उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, जिसके कारण सभी पद नहीं भरे गए थे। हालांकि, यह एक्सरसाइज़ फिर से की जाएगी और खाली पदों को भरा जाएगा।"
राज्य भर में लोक अभियोजकों, वरिष्ठ सहायक लोक अभियोजकों और सहायक लोक अभियोजकों के सभी खाली पदों को भरने के लिए वर्ष 2019 में हाईकोर्ट द्वारा शुरू की गई एक स्वतः संज्ञान याचिका की सुनवाई के दौरान यह जानकारी प्रदान की गई थी।
राज्य सरकार ने जुलाई में अदालत में एक चार्ट दाखिल किया था, जिसमें राज्य में अभियोजकों के खाली पदों की संख्या को दर्शाया गया था। बताया गया था कि लोक अभियोजकों के 189 नियमित पदों में से 168 भरे हुए हैं और 21 पद खाली हैं। इसके अलावा, लोक अभियोजकों के 28 पद प्रतिनियुक्ति पर हैं, 25 पद भरे जा रहे हैं।
वरिष्ठ सहायक लोक अभियोजक के पद के संबंध में, 123 पदों में से केवल 65 ही भरे गए थे। वरिष्ठ सहायक लोक अभियोजक के प्रतिनियुक्ति पद 28 हैं, जिनमें से केवल 5 पद भरे हुए हैं। सहायक लोक अभियोजक के 401 पदों के संबंध में नियमित रूप से केवल 151 पद तथा अन्य 242 पदों को संविदा आधार पर भरा गया है। केवल 205 खाली पदों के संबंध में सीधी भर्ती की प्रक्रिया शुरू की गई है।
इससे पहले अदालत ने कहा था,
"भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, प्रत्येक आरोपी को त्वरित सुनवाई का अधिकार है। यदि अभियोजकों की अनुपलब्धता के कारण मुकदमे में देरी होती है भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।"
कोर्ट ने कहा,
"अभियोजकों की नियुक्ति में राज्य की विफलता ने जहां तक आपराधिक मामलों का संबंध है, न्याय प्रशासन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। हमें यहां ध्यान देना चाहिए कि राज्य में निचली अदालतों में आपराधिक मामलों की कुल लंबित संख्या 8,10,730 है, जिनमें से 61,867 आपराधिक मामले पांच साल से अधिक पुराने हैं और 10,650 आपराधिक मामले 10 साल से अधिक पुराने हैं।"
अदालत ने अब राज्य सरकार को चार सप्ताह के समय में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
केस शीर्षक: कर्नाटक हाईकोर्ट बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: WP 48130/2019