बॉम्बे हाईकोर्ट ने 9 साल बाद अंधविश्वास विरोधी एक्टिविस्ट नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच की निगरानी बंद की; परिजनों का कहा कि मास्टरमाइंड अभी तक पकड़ा जाना बाकी है
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को अंधविश्वास विरोधी योद्धा नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच की निगरानी जारी रखने से इनकार कर दिया, जिनकी 2013 में सुबह की सैर के दौरान वैचारिक कारणों से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
जस्टिस अजय एस गडकरी और जस्टिस प्रकाश नाइक की खंडपीठ ने दाभोलकर के रिश्तेदार द्वारा दायर दो याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा,
"... और निगरानी की आवश्यकता नहीं है।"
दाभोलकर की बेटी मुक्ता ने 2015 में एडवोकेट अभय नेवागी के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिन्होंने अदालत से कम से कम अगले छह महीनों तक जांच की निगरानी जारी रखने का अनुरोध किया और इस बात पर जोर दिया कि अपराध के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार किया जाना बाकी है।
अपने संगठन अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के माध्यम से अंधविश्वास विरोधी अभियान चलाने वाले दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे में सुबह की सैर के दौरान बाइक सवार दो लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
2014 में अदालत ने एक्टिविस्ट केतन तिरोडकर और बाद में मुक्ता दाभोलकर की याचिका के बाद पुणे पुलिस से सीबीआई को जांच ट्रांसफर कर दी। तब से अदालत मामले में प्रगति की निगरानी कर रही है।
2021 में पुणे की विशेष अदालत ने कथित मास्टरमाइंड वीरेंद्र सिंह तावड़े के खिलाफ आरोप तय किए और उस पर तीन अन्य लोगों के साथ हत्या, साजिश और आतंकवाद से संबंधित अपराधों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA Act) के तहत आरोप लगाए। पांचवें आरोपी एडवोकेट संजीव पुनाळेकर पर सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया गया।
आरोपी कथित रूप से दक्षिणपंथी धार्मिक संगठन सनातन संस्था से जुड़े हुए है। तब से इस मामले में कई गवाहों का ट्रायल किया जा चुका है।
अदालत ने कहा,
"निरंतर निगरानी नहीं हो सकती। कुछ निगरानी ठीक है लेकिन कानून स्पष्ट है कि जब चार्जशीट दायर की जाती है तो अभियुक्तों के अधिकारों पर विचार किया जाना चाहिए।"
एडवोकेट नेवागी ने तर्क दिया कि सीबीआई अभी तक अपराध में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल और हथियारों का पता नहीं लगा पाई। उन्होंने बताया कि पूरक चार्जशीट में सीबीआई के बयान के मुताबिक जांच जारी है।
सीबीआई के लिए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत को सीलबंद लिफाफे में अपना पक्ष प्रस्तुत किया।
सुनवाई के दौरान नेवागी ने जोर देकर कहा कि सीपीआई नेता गोविंद पानसरे, कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की बाद की हत्याओं के मास्टरमाइंड एक ही हैं। हालांकि, न्यायाधीशों ने कहा कि यद्यपि हथियार समान हो सकते हैं, लेकिन हर अपराध अलग होता है।
नेवागी ने कहा,
"लेकिन माइंड एक है। वे आपस में जुड़े हुए हैं।"
उन्होंने कहा,
"लोग केवल इसलिए मारे जाते हैं, क्योंकि 'मुझे उनकी विचारधारा पसंद नहीं है।"
नेवागी ने जोर देकर कहा कि दाभोलकर अंधविश्वास के खिलाफ थे, पानसरे ने शिवाजी महाराज पर किताब लिखी थी, कलबुर्गी ने लिंगायतों को हिंदुओं से अलग करने का प्रचार किया और लंकेश को उनके विचारों के लिए नापसंद किया गया।
गौरतलब है कि नेवागी ने कहा कि पानसरे के मामले की जांच हाल ही में आतंकवाद निरोधी दस्ते ने अपने हाथ में ली है और उसका निष्कर्ष महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने हाईकोर्ट से कम से कम अगले छह महीने तक निगरानी जारी रखने का आग्रह किया।
अभियुक्त विक्रम भावे और वीरेंद्र तावड़े के अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय और सुभाष झा ने तर्क दिया कि जब कोई याचिका उच्च न्यायालय में लंबित होती है, तो इसका प्रभाव मुकदमे पर पड़ता है। हालांकि, उच्च न्यायालय स्पष्ट था कि इस याचिका में उनका कोई अधिकार नहीं है।