मद्रास हाईकोर्ट ने हाल में दिए गए फैसले में एक नाबालिग लड़की के जन्म प्रमाण पत्र में मृतक जैविक पिता के नाम की जगह दत्तक पिता का नाम डालने से इनकार कर दिया। दत्तक पिता लड़की की जैविक मां का दूसरा पति है।
अदालत किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 56 (2), गोद लेने के विनियमों (52) (4) और 55 (2) के साथ पढ़ें, के तहत मामले की सुनवाई कर रही थी। मामले में दत्तक पिता की नियुक्ति के लिए प्रार्थना की गई थी, (जैविक मां ने नाबालिग लड़की को अपने दूसरे पति को गोद देने के लिए सहमति व्यक्त की है।) ताकि लड़की को जैविक पुत्री की कानूनी स्थिति प्राप्त हो जाए और उसे उत्तराधिकार और विरासत के सभी सभी प्रयोजनों के लिए कानूनी अनुमति प्राप्त हो जाए।
याचिकाकर्ताओं की ओर से आग्रह किया गया था कि दूसरी याचिकाकर्ता ने पहले याचिकाकर्ता से शादी की है और दोंनो एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं। नाबालिग बेटी भी इस परिवार का हिस्सा है और उसने पहले याचिकाकर्ता को अपने पिता के रूप में मान्यता दी है और स्वीकार किया है। पहला याचिकाकर्ता नाबालिग लड़की को गोद लेना चाहता है और दूसरी याचिकाकर्ता, यानी नाबालिग की जैविक मां, की भी इच्छा है कि पहला याचिकाकर्ता कानूनी रूप से नाबालिग लड़की के पिता के रूप में मान्यता प्राप्त कर ले।
हालांकि मामले में राहत देने से इनकार करते हुए, जस्टिस पीटी आशा ने कहा कि "दिवंगत वी वेंकटेश सहाना के जैविक/ प्राकृतिक पिता थे और जिस दिन अधिकारियों ने जन्म प्रमाण पत्र जारी किया था, वो जीवित थे और उन्हें ही जन्म प्रमाण पत्र में नाबालिग का पिता बताया गया है।"
सिंगल जज ने कहा कि गोद लेने से बच्चे का अपने जैविक पिता के साथ रिश्ते खत्म नहीं होता है, एकमात्र अपवाद तब होता है जब जैविक पिता खुद नाबालिग के पिता के रूप में अपने अधिकार का त्याग करता है और गोद लेने के लिए दत्तक पिता द्वारा बच्चे की सहमति ली जाती है।
जज ने कहा, "यहां तक कि ऐसे मामलों में, मेरा विचार है कि जैविक पिता होने की स्थिति नहीं बदलती है। यह केवल दत्तक पिता की स्थिति, नाबालिग की कस्टडी और भरणपोषण की स्थिति बदलती है।"
अदालत ने कहा कि इस पर विवाद नहीं है कि जैविक / प्राकृतिक मां को नाबालिग को दूसरे याचिकाकर्ता को गोद देने का अधिकार है, लेकिन वह बच्चे को जन्म प्रमाण पत्र पर अपने जैविक/ प्राकृतिक पिता के नाम से वंचित नहीं कर सकती।
पीठ ने इस बात की सराहना की कि जन्म का पंजीकरण जन्म व मृत्यु अधिनियम, 1969 के पंजीकरण के प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होता है। धारा 8, 9 और 10 में कहा गया है कि जन्म और मृत्यु की सूचना सूचीबद्ध व्यक्तियों द्वारा दी जाएगी। अधिनियम में विलंबित पंजीकरण का भी प्रावधान है और इस प्रक्रिया को अधिनियम की धारा 13 में समझाया गया है। धारा 15 उन परिस्थितियों के बारे में बात करती है, जिनके तहत जन्म व मृत्यु रजिस्टर की किसी प्रविष्टि को सही या रद्द किया जा सकता है। इस खंड के अनुसार जन्म व मृत्यु रजिस्टर की प्रविष्टि में सुधार या रद्द निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जा सकता है:
(ए) जब प्रविष्टि फार्म या सबस्टांस में गलत है; और
(b) प्रविष्टि धोखाधड़ी या अनुचित तरीके से की गई है।
उपरोक्त घटनाओं की स्थिति में, प्राधिकरण को कारण बताकर सुधार या रद्द करने के लिए आवेदन किया जा सकता है। उक्त धारा में यह प्रावधान है कि मूल प्रविष्टि में कोई फेरबदल नहीं किया जाएगा और सुधार केवल अधिकारी के हस्ताक्षर के साथ हाशिए पर किया जा सकता है।
बेंच ने कहा, "इसलिए, धारा 15 को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि मूल प्रविष्टि को सुधारा / हटाया नहीं जा सकता है और नए विवरणों का समावेश केवल हाशिए पर ही किया जा सकता है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि तमिलनाडु ने जन्म व मृत्यु अधिनियम, 1969 की धारा 30 के तहत निहित शक्तियों के अनुसरण में तमिलनाडु पंजीकरण और जन्म व मृत्यु संशोधित नियमों को अधिसूचित किया है, जिन्हें जन्म व मृत्यु का तमिलनाडु पंजीकरण नियम, 2000 कहा जाता है।
बेंच का विचार था कि जैविक पिता जीवित नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने अपनी बेटी के साथ संबंध तोड़ लिया है। भले ही जैविक/ प्राकृतिक मां ने इस याचिका को दायर करके पहले याचिकाकर्ता को जैविक पिता का स्थान देने पर अपनी सहमति दी हो, यह न्यायालय नाबालिग के जैविक / प्राकृतिक पिता के रूप में पहले याचिकाकर्ता के नाम के प्रतिस्थापित करने की अनुमति नहीं दे सकती है।
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