आदिपुरुष विवाद : 'क्या यूनियन ऑफ़ इंडिया जनहित में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के तहत कदम उठाएगा?': इलाहाबाद एचसी ने पूछा, संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को नोटिस जारी किया

Update: 2023-06-27 16:10 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदिपुरुष फिल्म के प्रदर्शन के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं से निपटते हुए मंगलवार को भारत संघ से पूछा कि क्या वह सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 6 के तहत शक्ति अपने पुनरीक्षण को लागू करके बड़े पैमाने पर जनता के हित में उचित कदम उठाने पर विचार कर रहा है।

संदर्भ के लिए सिनेमैटोग्राफ अधिनियम का उपर्युक्त प्रावधान केंद्र सरकार को पुनरीक्षण शक्तियां प्रदान करता है, जिससे वह किसी भी कार्यवाही का रिकॉर्ड मांग सकती है, जो पहले लंबित है, या जिस पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा निर्णय लिया जा चुका है। भारत संघ किसी भी स्तर पर ऐसा कर सकता है।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने एक जनहित याचिका में फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को पार्टी प्रतिवादी के रूप में शामिल करने की मांग करने वाली एक अर्जी भी स्वीकार कर ली और उन्हें नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।

यह आदेश आज तब पारित किया गया जब डिवीजन बेंच ने भगवान राम और भगवान हनुमान सहित धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से चित्रित करने के लिए 'आदिपुरुष' के फिल्म निर्माताओं की खिंचाई की।

कोर्ट ने एक तीखी टिप्पणी में पूछा कि एक विशेष धर्म (हिंदू धर्म) की सहिष्णुता के स्तर को वे क्यों परखा जा रहा है। पीठ ने मौखिक रूप से कहा,

"जो सौम्य है, उसे दबा देना चाहिए? क्या ऐसा है? यह अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसके मानने वालों ने कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं की। हमें आभारी होना चाहिए। हमने समाचारों में देखा कि कुछ लोगों ने "सिनेमा हॉल में गए (जहां फिल्म प्रदर्शित हो रही थी) और उन्होंने केवल हॉल बंद करने के लिए दबाव डाला, वे कुछ और भी कर सकते थे।"

पीठ ने कहा कि सीबीएफसी को इस मामले में प्रमाणपत्र देते समय कुछ करना चाहिए था। पीठ ने आगे कहा, "अगर हम लोग इसपर भी आंख बंद कर लें क्योंकि ये कहा जाता है कि ये धर्म के लोग बड़े सहिष्‍णु हैं तो क्या उसका टेस्ट लिया जाएगा?" कोर्ट ने यह टिप्पणी ओम राउत की फिल्‍म आदिपुरुष प्रदर्शन और संवादों के खिलाफ दायर दो जनहित याचिकाओं (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए की।

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं में से एक की वकील रंजना अग्निहोत्री ने अदालत का ध्यान फिल्म के कुछ हिस्से की आपत्तिजनक रंगीन तस्वीरों की ओर आकर्षित किया।

उन्होंने सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5-बी की उपधारा 2 के तहत सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन के लिए जारी दिशानिर्देशों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया, जिससे यह दिखाया जा सके कि फिल्म के न केवल कुछ संवाद बल्कि भगवान राम, देवी सीता, भगवान हनुमान, रावण और विभीषण की पत्नी आदि का चित्रण भी दिशानिर्देशों के अनुसार चित्रित नहीं किया गया है।

याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि फिल्म पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए क्योंकि उपरोक्त फिल्म न केवल बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, जो भगवान राम, देवी सीता, भगवान हनुमान आदि की पूजा करते हैं, बल्कि इसके तरीके को भी प्रभावित कर सकते हैं। रामायण के जिस चरित्र का चित्रण किया गया है, उससे समाज में भयंकर वैमनस्यता भी उत्पन्न होगी।

दूसरी ओर, जब कोर्ट ने भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल, सीनियर एडवोकेट एसबी पांडे से पूछा कि उन्हें इस मामले में क्या कहना है, तो उन्होंने सक्षम प्राधिकारी से निर्देश लेने के बाद तथ्यों को सत्यापित करने के लिए कुछ समय देने की प्रार्थना की।

उन्होंने कहा कि फिल्म प्रमाणन बोर्ड फिल्म को पहले ही जारी किए गए प्रमाणपत्र पर दोबारा गौर नहीं कर सकता और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा 6 के अनुसार, पुनरीक्षण शक्ति केंद्र सरकार के पास है।

इसके अलावा, जब उन्होंने प्रस्तुत किया कि उन्हें बताया गया है कि फिल्म शुरू करने से पहले इस आशय का डिस्क्लेमर दिखाया गया है कि यह फिल्म रामायण नहीं है तो न्यायालय ने उनसे निम्नलिखित प्रश्न पूछा:

“ …जब फिल्म निर्माता ने भगवान राम, देवी सीता, भगवान लक्ष्मण, भगवान हनुमान, रावण, लंका आदि को दिखाया है तो फिल्म का डिस्क्लेमर बड़े पैमाने पर लोगों को कैसे समझाएगा कि कहानी रामायण से नहीं है? ”

इसके बाद अदालत ने उन्हें भारत संघ, विशेष रूप से सूचना और प्रसारण मंत्रालय (विपरीत पक्ष संख्या 1) और फिल्म प्रमाणन बोर्ड (विपरीत पक्ष संख्या 3) से पूर्ण निर्देश प्राप्त करने के लिए 24 घंटे का समय दिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए बुधवार को पोस्ट कर दिया।

अपीयरेंस

याचिकाकर्ताओं के वकील: रंजना अग्निहोत्री, प्रिंस लेनिन

प्रतिवादी के लिए वकील: सीनियर एडवोकेट एसबी पांडे (भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल) की सहायता के लिए अडवोकेट अश्विनी कुमार सिंह (विपरीत पक्ष संख्या 1 और 3 के लिए); यूपी के अपर एडवोकेट जनरल विनोद कुमार शाही, मुख्य सरकारी वकील शैलेन्द्र कुमार सिंह।

केस टाइटल- कुलदीप तिवारी एवं अन्य बनाम सचिव, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से भारत संघ और 13 अन्य [सार्वजनिक हित याचिका (पीआईएल) नंबर- 728/2023

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