गुवाहाटी हाईकोर्ट ने गलत तरीके से 'सामान्य श्रेणी' में मानी गई एससी महिला को मौजूदा/भविष्य की वैकेंसी पर नियुक्त करने का निर्देश दिया

Update: 2023-09-04 11:37 GMT

Gauhati High Court

असम की अनुसूचित जाति समुदाय की एक महिला को वर्ष 2012 में सामान्य श्रेणी की उम्मीदवार बताकर वार्ड गर्ल के रूप में नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार को उक्त पोस्ट के लिए मौजूदा या भविष्य किसी भी वैकेंसी में नियुक्त करने के निर्देश दिया है।

जस्टिस संजय कुमार मेधी की एकल पीठ ने कहा,

“जब याचिकाकर्ता एससी कैटेगरी से संबंधित थी, जिसे कई छूट और लाभ दिए गए हैं तो यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उसने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में आवेदन किया था। इस तथ्य का भी कोई खंडन नहीं है कि याचिकाकर्ता एससी उम्मीदवार है और विपक्ष में हलफनामे में यह भी दावा नहीं किया गया है कि उसने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में आवेदन किया था।"

याचिकाकर्ता का मामला यह था कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से है और उसने गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में वार्ड गर्ल के रूप में नियुक्ति के लिए 21 अक्टूबर, 2011 को दिए गए विज्ञापन के जरिए शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया में भाग लिया था। याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि उससे कम अंक पाने वाले एक अभ्यर्थी को उसकी जगह नियुक्ति का लाभ दिया गया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता ने एससी कैटेगरी के तहत आवेदन किया था, हालांकि, उसे सामान्य (अनारक्षित) श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में माना गया और उक्त प्रक्रिया में नियुक्ति से वंचित कर दिया गया।

आगे यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा एससी श्रेणी में प्राप्त अंक उस उम्मीदवार (प्रतिवादी संख्या 6) के अंकों से अधिक थे, जिन्हें उसके स्थान पर नियुक्त किया गया था।

राज्य के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से पेश स्थायी वकील ने कहा कि नियुक्तियां वर्ष 2012 में की गई थीं और एक दशक से अधिक समय बीत चुका है और इसलिए इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी संख्या 6 एससी कैटेगरी है, इस पर कोई विवाद नहीं है।

कोर्ट ने कहा,

“रिट याचिका के पैराग्राफ-3 में, याचिकाकर्ता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह एससी समुदाय से है और प्रमाण पत्र भी रिट याचिका के एनेक्जर-6 के रूप में संलग्न किया गया है। प्रमाण पत्र पर प्रथम दृष्टया नजर डालने से पता चलता है कि इसे सक्षम प्राधिकारी यानि उपायुक्त, लखीमपुर ने वर्ष 1997 में यानी भर्ती प्रक्रिया से बहुत पहले जारी किया है। पैराग्राफ 3 में दिए गए उस कथन को प्रतिवादी अधिकारियों ने प्रतिवादी संख्या चार के माध्यम से दायर एक फरवरी 2013 के विरोध शपथ पत्र में अस्वीकार नहीं किया है। याचिकाकर्ता ने चार फरवरी 2018 के अतिरिक्त हलफनामे के पैराग्राफ 3 में एक और बयान दिया गया है।"

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता की श्रेणी जो कि एससी है, उसके संबंध में कोई विवाद नहीं है, हालांकि, याचिकाकर्ता को सामान्य (अनारक्षित) श्रेणी का उम्मीदवार माना गया और इसलिए एससी उम्मीदवार, जिसे चयनित किया गया, उसकी तुलना में अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद उन्हें नियुक्ति का लाभ नहीं मिला। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार (अनारक्षित) के रूप में वर्गीकृत करना रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि है।

इस प्रकार, न्यायालय ने उत्तरदाताओं को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को वार्ड गर्ल की किसी भी मौजूदा रिक्ति या भविष्य में होने वाली किसी भी वैकेंसी पर निजी उत्तरदाताओं की नौकरियों को डिस्टर्ब किए बिना नियुक्त किया जाए और ऐसी नियुक्ति विधिवत आयोजित भर्ती प्रक्रिया में उसके चयन के बल पर होगी।

केस टाइटल: श्रीमती मिनाक्षी मेधी बनाम असम राज्य और अन्य।

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (गुवाहाटी) 86


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