मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 – अतिरिक्त दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति नहीं देने का आदेश अंतरिम फ़ैसला नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
मध्यस्थता क़ानून के तहत एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर मध्यस्थता अधिकरण ने अतिरिक्त दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति रद्द कर दी है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसने 'अंतरिम फ़ैसला' दे दिया है।
अदालत ने कहा कि ONGC Petro Additions Limited (ओपल) v. Tecnimont S.P.A and Another मामले में न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने जो फ़ैसला दिया है उसके मुताबिक़ इस तरह के आदेश को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 34 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती।
ओपल और टेक्निमोंट एसपीए के बीच मध्यस्थता की प्रक्रिया में ओपल ने अधिनियम की धारा 19 के तहत आवेदन देकर मामले को लेकर अतिरिक्त दस्तावेज़ और एक गवाह का बयान पेश करने की अनुमति माँगी थी। अधिकरण ने उसकी यह माँग ख़ारिज कर दी जिसके बाद उसने इस आदेश को हाईकोर्ट में अधिनियम की धारा 34 के तहत चुनौती दी।
ओपल के वक़ील डॉक्टर एएम सिंघवी ने कहा कि अधिनियम की धारा 2(1)(c) के तहत 'मध्यस्थता का फ़ैसला' में 'अंतरिम फ़ैसला' भी शामिल है। डॉक्टर सिंघवी ने कहा कि चूँकि अतिरिक्त दस्तावेज़ पेश करने की अनुमति नहीं देने के कारण पक्ष के 'बहुमूल्य अधिकार' प्रभावित हुए हैं, इसलिए यह 'अंतरिम फ़ैसला' जैसा है। अपनी इस दलील के लिए उन्होंने सिनेविस्टाज लिमिटेड बनाम मेसर्स प्रसार भारती मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें अदालत ने कहा कि "अगर कोई बहुमूल्य अधिकार खो जाता है तो इसे वादकालीन फ़ैसला माना जाएगा। अगर आदेश सामान्य प्रकृति का है तो इसे "फ़ैसला" नहीं माना जाएगा।
अपीलकर्ता ने इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड बनाम भद्रा प्रॉडक्ट्स (2018) 2SCC 534 में आए फ़ैसले पर भी भरोसा जताया।
दूसरी ओर, टेक्निमोंट के वक़ील रितिन राय ने कहा कि अधिकरण के आदेश को अंतरिम फ़ैसला नहीं माना जा सकता क्योंकि यह किसी भी तरह के दावे या प्रतिदावे पर ग़ौर नहीं करता है। उन्होंने आगे कहा कि साक्ष्य के सवाल से पक्ष के 'बहुमूल्य अधिकार' प्रभावित नहीं होते हैं क्योंकि इन्हें क्रॉस इग्ज़ैमिनेशन के बाद पेश करने की बात कही गई थी। उन्होंने अपनी दलील का आधार Rhiti Sports Management Pvt Ltd vs Power Play Sports and Events Ltd मामले में दिल्ली हाइकोर्ट के फ़ैसले को आधार बनाया।
अदालत ने अपीलकर्ता की इस दलील को ख़ारिज कर दिया और कहा कि इस तरह के आदेश को 'अंतरिम फ़ैसला' नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा,
"किसी भी क़ानूनी प्रक्रिया में बहुमूल्य अधिकार के निर्धारण की परिणती ज़रूरी नहीं है कि कार्रवाई होने लायक़ अधिकार में हो। यह सुनिश्चित करने के लिए कि दिया गया आदेश अंतरिम फ़ैसला या आंशिक फ़ैसला है, जो दो बातें इसका निर्धारण करती हैं वे हैं "अंत्यता" और "मुद्दे"। अगर आदेश की प्रकृति अंतिम फ़ैसले जैसा है जिसका मतलब यह हुआ कि वह मध्यस्थता प्रक्रिया में उसने किसी मुद्दे पर निष्कर्षतः कोई निर्णय लिया है, तो उस स्थिति में यह आदेश अंतरिम फ़ैसला माना जाएगा। पर इस मामले में ऐसा नहीं हुआ है। इस आदेश में अतिरिक्त दस्तावेज़ पेश करने के ओपल के अनुरोध को सिर्फ़ ख़ारिज किया गया है। उसने दोनों पक्षों के बीच किसी मामले का सुलह नहीं किया है। अधिकरण ने सिर्फ़ यह आदेश दिया है कि अपीलकर्ता कोई ताज़ा दस्तावेज़ इस समय पेश नहीं कर सकता। संबंधित आदेश निष्कर्षतः आवेदन पर अपना निर्णय दिया है और यह नहीं कहा जा सकता कि मध्यस्थता के विषय और पक्षों के अधिकारों पर कोई अंतिम निर्णय दिया गया है"।
अदालत ने कहा, "कोई आदेश "फ़ैसला" माना जाए इसके लिए अंत्यता की जाँच निस्सन्देह ज़रूरी है, पर इसका मतलब यह नहीं है कि मध्यस्थता अधिकरण का कोई आदेश "फ़ैसला" की परिधि में आ जाएगा।
सिनेविस्टा मामले में मध्यस्थ ने परिसीमन के आधार पर अतिरिक्त दावे को उठाने से रोक दिया था। चूँकि परिसीमन का शुरुआती मुद्दा इस मामले का निष्कर्षतः फ़ैसला करता है, पर जहाँ तक अतिरिक्त दावों की बात है, उसे 'अंतरिम फ़ैसला' माना गया।
इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड का मामला भी परिसीमन के शुरुआती मामलों से संबंधित था।
अदालत ने कहा, "अदालत की भूमिका क़ानून की व्याख्या करना और उसे मामले के तथ्यों पर लागू करना है। अगर अधिनियम इस स्तर पर चुनौती की अनुमति नहीं देता है, तो अदालत ऐसा रूख अख़्तियार नहीं करेगा जिसे उदार माना जाएगा। अदालत, जो क़ानून है, उसको लागू करने के अपने कर्तव्यों से बंधा है और उसकी व्याख्या सिर्फ़ इसलिए नहीं करता क्योंकि यह ज़्यादा संतोषप्रद विचार लगता है। अगर दरवाज़ा पूरी सख़्ती से बंद है तो मैं उसे खोल नहीं सकता हूँ"।
अदालत ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि संबंधित आदेश 'अंतरिम फ़ैसला' था तो भी धारा 34 के तहत इसमें हस्तक्षेप की बात मामले में नहीं उठाई गई है।
मामले के तथ्य इस निष्कर्ष पर पहुँचाते हैं कि ओपल ने दस्तावेज़ों को पेश करने में बहुत ही ज़्यादा देरी की है जिसका कारण ओपल ख़ुद ही है। कोर्ट ने निष्कर्षतः कहा, "…ओपल अपनी ही मूर्खता का शिकार हो गया है…"।