(सीएए) : साल्वे को कुछ भी भेदभावपूर्ण नहीं लगता, जबकि सुहरित ने इसे असंवैधानिक कहा, दोनों पक्षों को अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति होनी चाहिए : मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने एंटी सीएए विरोध प्रदर्शन करने और सीएए के समर्थन में सार्वजनिक बैठक करने की अनुमति देते हुए कहा कि भारत एक जीवंत और कार्यशील लोकतंत्र है, जिसमें दोनों को अपने-अपने पक्ष को स्पष्ट करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के विरोध प्रदर्शन करने के लिए जनसभा की अनुमति मांगने वाली रिट याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति जी.आर स्वामीनाथन ने कहा कि-
" कोई भी इस बात को नकार नहीं सकता है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दे पर इस समय सभी स्तरों पर बहस चल रही है। सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दायर की गई हैं। इसके पक्ष और विपक्ष ,दोनों में लेख लिखे जा रहे हैं। नेता और बुद्धिजीवी स्थिति को संभाल रहे हैं।
जबकि हरीश साल्वे ने संशोधनों में कुछ भी भेदभावपूर्ण नहीं पाया है, वहीं सुहरित पराथसारथी इसे असंवैधानिक बताते हैं। भारत को एक जीवंत और कार्यशील लोकतंत्र होने के नाते दोनों को अपने-अपने पक्षों को स्पष्ट करने की अनुमति देनी चाहिए। अधिकारियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है और बिना हथियार के शांतिपूर्ण एकत्रित होने का भी अधिकार है। बेशक ये मौलिक अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) और (3) में निर्धारित उचित प्रतिबंधों के अधीन हो सकते हैं लेकिन उनसे अधिक या उससे बाहर नहीं।"
सीएए के समर्थन में बैठक आयोजित करने की अनुमति के लिए दायर एक अन्य रिट याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने कहा कि-
''अगर यह अदालत एंटी सीएए की बैठक आयोजित करने की अनुमति दे रही है, तो यह न्यायालय सीएए के समर्थन में बैठकें आयोजित करने की अनुमति देने के लिए बाध्य है।
याचिकाकर्ता हाल के संशोधनों का समर्थन करते हुए एक बैठक आयोजित करना चाहता है। नागरिकता संशोधन अधिनियम एक ऐसा अधिनियम है जिसे भारतीय संसद द्वारा वैध रूप से पारित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति उसी के समर्थन में एक बैठक आयोजित करना चाहता है और यदि उक्त अधिकार का उल्लंघन किया जाता है, तो यह तीसरे प्रतिवादी का कर्तव्य है कि उसके लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें।''
राज्य की तरफ से न्यायालय को बताया गया था कि आसपास के क्षेत्र में काफी मुस्लिम आबादी हैं और इसलिए, यदि कोई अभद्र या भड़काने वाला भाषण दिया जाता है तो यह कानून और व्यवस्था के गंभीर मुद्दे को जन्म देगा।
इसलिए, अदालत ने इस अंडटेकिंग को रिकॉर्ड पर लिया कि संगठन के साथ-साथ प्रतिभागी भी पूरी तरह आत्म संयम और नियंत्रण में रहेंगे। कोर्ट ने कहा कि-
तीसरे प्रतिवादी की तरफ से व्यक्त की गई आशंका को लापरवाही से अनदेखा नहीं किया जा सकता है। यह न्यायालय हाल ही में दिल्ली में हुई घटना से बेखबर नहीं है।
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