पदोन्नति पर विचार के समय जो नियम लागू है उसी नियम के अनुसार पदोन्नति होनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पदोन्नति कोई अधिकार नहीं है बल्कि नियम के अनुसार पदोन्नति के लिए योग्य पाए जाने का अधिकार उस नियम के तहत है जो उस दिन लागू रहता है जिस दिन पदोन्नती पर विचार होता है।
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने हवलदार को रिक्त पदों पर नाइब सूबेदार के रूप में पदोन्नति देने के बारे में मणिपुर हाईकोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया। यह रिक्तियाँ 2011 में हुए परिवर्तनों के पहले पैदा हुईं और फिर भर्ती नियमों को 2012 में लागू करने से पहले हुई।
शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस आधार पर अपना फ़ैसला दिया कि पुनर्गठन के पहले जिन लोगों को नियुक्त किया गया वे हवलदार के पद पर थे और नाइब सूबेदार के पद पर नियुक्ति का उन्होंने निहित अधिकार पाया।
कृष्ण कुमार बनाम भारत संघ के इस मामले में वारंट अधिकारी का मध्यवर्ती पद 2011 में बनाया गया और हाईकोर्ट ने कहा कि हवलदारों को वारंट अधिकारी के रूप में अगर पदोन्नति दे दी गई तो इससे संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा। दूसरी राय यह थी कि 2011 के पहले जो रिक्तियाँ पैदा हुईं उसको उन हवलदारों को नाइब सूबेदारों के रूप में पदोन्नति देकर भरा जाए जो इसके लायक़ हैं।
कोर्ट ने कहा कि पदोन्नति कोई निहित अधिकार नहीं है पर पदोन्नति का अधिकार उस नियम के अनुसार होना चाहिए जो उस समय पर लागू रहता है जिस दिन पदोन्नति के बारे में विचार किया जाता है।
पूर्व के फ़ैसलों का ज़िक्र करते हुए पीठ ने कहा, "….हमारी राय में हाईकोर्ट के फ़ैसले का आधार यह था कि जिन लोगों को भर्ती नियमों में संशोधनों से पहले नियुक्त किया गया था और जो हवलदार के पद पर थे उनको नाइब सूबेदार के रूप में पदोन्नति देने का निहित अधिकार है। पर यह क़ानून के तहत जायज़ नहीं है…"