अवमानना का क्षेत्राधिकार एक आवश्यक क्षेत्राधिकार है; विकल्प होने के बावजूद इस याचिका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि अवमानना का क्षेत्राधिकार एक आवश्यक क्षेत्राधिकार है और अवमानना की याचिका को आधार पर ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि इसके लिए और विकल्प उपलब्ध हैं।
न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल ने एक अवमानना याचिका पर उठाई गई आपत्ति पर ग़ौर करते हुए यह बात कही। इस आपत्ति में कहा गया था कि चूँकि अमल सम्बंधी आवेदन पर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 36 के तहत ग़ौर किया जा सकता है ताकि मध्यस्थता अधिकरण के फ़ैसले को लागू किया जा सके, इसलिए अवमानना की याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इस मामले में, हाईकोर्ट ने अधिकरण के फ़ैसले को बहाल कर दिया था और एसईसीएल को निर्देश दिया था कि निर्णीत राशि वह लैंको अमरकंटक पावर लिमिटेड को चुका दे। चूँकि यह राशि नहीं चुकाई गई, इसलिए कम्पनी ने हाईकोर्ट में कोर्ट की अवमानना की याचिका दाख़िल कर दी।
इस बारे में पूर्व में आए विभिन्न फ़ैसलों का ज़िक्र करते हुए कोर्ट ने कहा, "अवमानना के लिए दंडित करना इस और अन्य सभी बड़ी अदालतों से जुड़ी एक ऐसी बात है जिसको अलग नहीं किया जा सकता है। यह एक आवश्यक क्षेत्राधिकार है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ़ इसलिए कि आदेश को लागू करवाने का वैकल्पिक उपचार उपलब्ध है, हाईकोर्ट के आदेश को जानबूझकर नहीं मानने के ख़िलाफ़ दायर अवमानना की याच्चिका को ख़ारिज नहीं किया जा सकता अगर अदालत को यह लगता है कि उसके आदेश का जानबूझकर पालन नहीं किया गया है।
कोर्ट ने इसके साथ ही अवमानना की याचिका को लेकर उठाई गई आपत्तियों को ख़ारिज कर दिया।