'यह क्यों मान लिया जाए कि महिलाएं तकनीक के प्रयोग में पीछे हैं?' : सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने महिला वकीलों को ई-फाइलिंग से छूट देने की मांग वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका में डेब्ट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल्स (डीआरटी) और डेब्ट्स रिकवरी अपीलीय ट्रिब्यूनल (डीआरएटी) में अनिवार्य ई-फाइलिंग की पुष्टि की।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने ऐसा करते हुए इस धारणा पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की कि लेडी डॉक्टर्स को अनिवार्य ई-फाइलिंग के नियम से छूट की आवश्यकता होगी।
याचिका में वित्त मंत्रालय की अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसने डेब्ट्स रिकवरी ट्रिब्यूनल्स और डेब्ट्स रिकवरी अपीलीय ट्रिब्यूनल्स के इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग (संशोधन) नियम, 2023 नियम 3 में संशोधन किया।
संशोधित मानदंडों के अनुसार, DRT/DRAT के समक्ष आवेदकों द्वारा याचिका की ई-फाइलिंग की जाती है। मगर इसे बिना किसी परिसीमा के अनिवार्य कर दिया गया। इससे पहले डीआरटी/डीआरएटी के समक्ष रिप्रेजेंटेशन की ई-फाइलिंग केवल तभी अनिवार्य थी, जब रिकवर किया जाने वाला डेब्ट्स 100 करोड़ रुपये या इसे अधिक हो।
मामले पर बहस करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने अनिवार्य ई-फाइलिंग के नियम के कुछ अपवादों की मांग की।
उन्होंने कहा,
"छूट उचित के पर्याप्त कारण है। महिला वकीलों और सीनियर सिटीजन्स को छूट दी जानी चाहिए।"
सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस पर टिप्पणी की,
"महिला वकील? आपका मतलब है कि महिलाएं सक्षम नहीं हैं? महिला वकील पुरुष वकीलों की तुलना में अधिक तकनीकी जानकार हैं। यह धारणा क्यों है कि महिला वकील समायोजित नहीं होंगी या तकनीक के इस्तेमाल में पीछे हैं?"
याचिकाकर्ता ने सीनियर सिटीजन्स के मामलों में भी छूट मांगी है।
उन्होंने तर्क दिया,
"जब हम ई-फाइलिंग की बात करते हैं तो क्लर्क ई-फाइलिंग जानता होगा, जूनियर फाइलिंग जानता होगा और हम उन डॉक्टर्स के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की बात कर रहे हैं, जो जिला स्तर पर प्रैक्टिस कर रहे हैं। झारखंड, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों और जिले के गांव आदि में रहने वाले सीनियर सिटीजन्स यह सब नहीं जानते होंगे।"
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पर जवाब दिया,
"इसलिए हमारे पास हेल्प डेस्क है, इसलिए ई-सेवा केंद्र।"
जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने ई-फाइलिंग को और अधिक सुलभ बनाने के निर्देश प्रदान करने वाले आदेश को समाप्त करते हुए डीआरटी या डीआरएटी में जाने वाले वकीलों से जल्द से जल्द खुद को अपग्रेड करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा,
"लोग यूपीआई के साथ खुद को अपग्रेड कर रहे हैं। सब्जी विक्रेता के साथ भी आप मोबाइल फोन से आराम से लेन-देन कर सकते हैं। हर कोई खुद को अपग्रेड कर रहा है। इसे मुकदमेबाजी में परिवर्तित न करें। देखें कि डीआरटी या डीआरएटी में जाने वाले वकील जल्द से जल्द खुद को अपग्रेड करें। यह संभव है। यह स्थायी विशेषता नहीं होनी चाहिए।"
केस टाइटल: एमपी हाई कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ | डब्ल्यूपी (सी) नंबर 155/2023