पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी का विवाद: सुप्रीम कोर्ट वीसी नियुक्तियों के लिए खोज समितियां गठित करेगा; कंपोजिशन के लिए सुझाव आमंत्रित किए

Update: 2023-09-28 13:18 GMT

राज्य संचालित यूनिवर्सिटी में कुलपतियों की नियुक्ति के मुद्दे पर ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार और राज्यपाल सीवी आनंद बोस के बीच बढ़ती तनातनी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (27 सितंबर) को हस्तक्षेपकर्ताओं से प्रसिद्ध नामों का प्रस्ताव देने को कहा। इन नियुक्तियों के लिए चयन पैनल में शामिल करने के लिए वैज्ञानिकों, टेक्नोक्रेट्स, प्रशासकों, शिक्षाविदों और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमंत्रित किया जाता है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ पश्चिम बंगाल सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कलकत्ता हाईकोर्ट के 28 जून के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें 13 राज्य संचालित यूनिवर्सिटी में राज्यपाल बोस द्वारा की गई अंतरिम कुलपति नियुक्तियों को बरकरार रखा गया।

पिछले अवसर पर अदालत ने राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच गतिरोध को तोड़ने के प्रयास में राज्य संचालित यूनिवर्सिटी के कुलपतियों की नियुक्ति के लिए खोज-सह-चयन समिति गठित करने का निर्णय लिया। समिति की संरचना निर्धारित करने के लिए अदालत ने यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग (यूजीसी), पश्चिम बंगाल सरकार और राज्यपाल से पांच-पांच नाम मांगे। यह घटनाक्रम तब हुआ जब राज्य सरकार ने पीठ को सूचित किया कि न तो राज्यपाल ने राज्य संचालित यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के रूप में अपनी पदेन क्षमता में न ही यूजीसी ने नियुक्ति के लिए खोज समिति के लिए नियमित कुलपतियों की अपने नामांकित व्यक्तियों की मांग करने वाले किसी भी संचार का जवाब दिया था।

कोर्ट ने अब कानूनी कार्यवाही में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों या पक्षकारों से इस बारे में सुझाव मांगे कि सर्च कमेटी में किसे शामिल किया जाना चाहिए। हस्तक्षेपकर्ता बुधवार 4 अक्टूबर तक अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर सकते हैं।

खंडपीठ ने आदेश में यह कहा,

“[वे] खोज समिति में नामांकन के उद्देश्य से प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, प्रौद्योगिकीविदों, प्रशासकों, शिक्षाविदों, न्यायविदों या किसी अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के नाम सुझाने के लिए स्वतंत्र होंगे।

इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में राज्य संचालित यूनिवर्सिटी, वहां पढ़ाए जाने वाले विषयों या अनुशासनों, खोज समिति में सदस्यों की नियुक्ति के मौजूदा प्रावधानों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 द्वारा प्रस्तावित नए प्रावधानों के बारे में भी जानकारी मांगी गई है, जो फिलहाल राज्यपाल की सहमति का इंतजार कर रहा है। यह विधेयक न केवल राज्य संचालित यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को नियुक्त करने का प्रावधान करता है, बल्कि कुलपतियों के लिए खोज समिति के पुनर्गठन का भी प्रावधान करता है। पीठ ने निर्देश दिया कि इन विवरणों वाला सारणीबद्ध चार्ट अगले बुधवार तक उपलब्ध कराया जाए।

इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार 6 अक्टूबर को होगी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद इस बात पर केंद्रित है कि क्या पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस द्वारा स्टेट यूनिवर्सिटी के लिए अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति कानूनी रूप से वैध है।

पिछले साल अनुपम बेरा मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद इस्तीफे या कार्यकाल की समाप्ति के माध्यम से 27 रिक्तियां उत्पन्न हुईं कि 2018 यूनिवर्सिटी अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियम राज्य यूनिवर्सिटी अधिनियमों में परस्पर विरोधी प्रावधानों पर हावी होंगे। इनमें से 24 नियुक्तियां पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी कानून संशोधन अधिनियम 2012 और 2014 के आधार पर ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा की गई हैं।

हाईकोर्ट के फैसले का अनुपालन करने के लिए यूनिवर्सिटी कानूनों को यूजीसी विनियमों के साथ संरेखित करने के लिए पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी कानून (संशोधन) अध्यादेश 2023 लागू किया गया। उच्च शिक्षा विभाग के प्रभारी मंत्री ब्रत्य बसु ने रिक्त पदों को भरने के लिए राज्यपाल को 27 अंतरिम कुलपति उम्मीदवारों की सूची भी प्रस्तावित की। हालांकि, जून में राज्यपाल बोस ने सूची से केवल दो उम्मीदवारों को मंजूरी दी और कथित तौर पर राज्य सरकार से परामर्श किए बिना एकतरफा 13 कुलपतियों की नियुक्ति की। जवाब में राज्य सरकार ने यह आरोप लगाते हुए उनका वेतन रोक दिया कि इस पद पर नियुक्त 13 सीनियर प्रोफेसरों को शिक्षा विभाग द्वारा भर्ती नहीं किया गया। इतना ही नहीं 13 नियुक्तियों ने मौजूदा कानूनी चुनौती को भी जन्म दिया।

यह तर्क देते हुए कि 13 नियुक्तियां मनमाने ढंग से और गैर-पारदर्शी हैं, रिटायर्ड प्रोफेसर ने कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उन्हें रद्द करने की मांग की। हालांकि, चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम की अगुवाई वाली पीठ ने याचिका खारिज कर दी और अंतरिम कुलपति नियुक्तियों की वैधता को बरकरार रखा, यह स्पष्ट करते हुए कि इन नियुक्तियों को अस्थायी भूमिका के लिए अतिरिक्त भत्ते के साथ अपना पिछला वेतन मिलेगा। अदालत ने यह भी देखा कि पूर्व प्रोफेसर अपनी जनहित याचिका (पीआईएल) में किसी भी सार्वजनिक हित को प्रदर्शित करने में विफल रहे, जिससे यह चिंता बढ़ गई कि उन्हें राज्य सरकार द्वारा राज्यपाल के आदेशों को अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती देने के लिए 'अंडरटेकिंग' के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

अगस्त में पश्चिम बंगाल सरकार ने विशेष अनुमति याचिका में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी। लगभग उसी समय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरोध के बीच राज्य विधानसभा ने पश्चिम बंगाल यूनिवर्सिटी कानून (संशोधन) विधेयक, 2023 भी पारित कर दिया। इसके अलावा राज्य संचालित यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को नियुक्त करने का प्रस्ताव किया गया। विधेयक में कुलपतियों के लिए खोज समिति के पुनर्गठन का प्रावधान है। यह दूसरी बार है जब पश्चिम बंगाल विधानसभा ने विधेयक पारित किया है, राज्यपाल ने पिछले साल पारित पहले विधेयक पर अपनी सहमति रोक दी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, गवर्नर बोस ने अभी तक दूसरी पुनरावृत्ति पर सहमति नहीं दी।

राज्य सरकार और राजभवन के बीच चल रही खींचतान के बीच राज्यपाल बोस ने कथित तौर पर इस महीने की शुरुआत में प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी MAKAUT और बर्दवान यूनिवर्सिटी सहित सात अन्य राज्य यूनिवर्सिटी के लिए अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति की है। कथित तौर पर राज्य सरकार से परामर्श किए बिना उठाए गए इस कदम की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने कड़ी आलोचना की है। राजभवन द्वारा हाल ही में जारी सर्कुलर भी सवालों के घेरे में आ गया, जिसमें कहा गया कि यूनिवर्सिटी के अधिकारियों को राज्य सरकार के आदेशों को क्रियान्वित करने से पहले कुलपतियों की सहमति लेनी होगी।

केस टाइटल- पश्चिम बंगाल राज्य बनाम डॉ. सनत कुमार घोष एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 17403/2023

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