"हम अभी आगे के घटनाक्रम से चिंतित नहीं हैं, हम ये देखेंगे कि क्या डिवीजन बेंच में कोई अपील टिक सकती है" : सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल कोयला घोटाला मामले में कहा
सीबीआई के अनुरोध पर, सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 10 मार्च के लिए स्थगित कर दी, जिसके तहत हाईकोर्ट ने राज्य की सहमति ना होने के बावजूद पश्चिम बंगाल में रेलवे के माध्यम से कोयले के अवैध खनन और परिवहन से संबंधित एक मामले की सीबीआई जांच करने की अनुमति दी।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के समक्ष पेश होकर, एसजी तुषार मेहता ने अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा था।
ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, जो शिकायतकर्ता है, के लिए एक हस्तक्षेप आवेदन में उपस्थित वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि उनके आवेदन बोर्ड पर लिया जाए और नोटिस जारी किया जाए।
उन्होंने कहा,
"आगे के घटनाक्रम हैं जो मामले में एक महत्वपूर्ण अंतर लाते हैं। हम जवाब दाखिल करना चाहते हैं।"
जस्टिस शाह ने कहा,
"हम एलपीए के मुख्य बिंदु पर विचार कर रहे हैं और क्या यह सुनवाई योग्य है। हम पहले बिंदु पर हैं कि क्या कोई अपील डिवीजन बेंच में टिक सकती है। हम अभी आगे के घटनाक्रम से चिंतित नहीं हैं।"
साल्वे ने कहा,
"हम आगे के घटनाक्रम पर माई लॉर्डस की सहायता करना चाहते हैं। वे जांच को सूक्ष्म बनाना चाहते हैं। कृपया मेरी आईए पर नोटिस जारी करें। यदि एसजी समय चाहते हैं तो इसे मंज़ूर किया जा सकता है और मामले को किसी अन्य दिन सुना जा सकता है।"
एसजी ने कहा,
"जैसा कि जस्टिस शाह ने कहा, याचिकाकर्ता और सीबीआई दोनों ने एलपीए दायर किया था। हम चाहते हैं कि एलपीए को नियंत्रित करने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के नियमों पर आपकी की सहायता की जाए। फौजी का मामला यहां लागू नहीं होगा।"
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में राम किशन फौजी के मामले में कहा था कि अगर किसी एकल न्यायाधीश ने आपराधिक मामले में आदेश पारित किया है तो उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष अंतर-अदालत अपील दायर नहीं की जा सकती।
जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस एमएम शांतनागौदर की पीठ ने कहा था,
"दलील कि जब एक रिट याचिका केवल एक जांच को रद्द करने के लिए दायर की जाती है, उसमें अंतर- अदालत अपील के लिए जगह होगी, और यदि धारा 482 सीआरपीसी के तहत निहित अधिकार क्षेत्र के तहत याचिका दायर की जाती है, तो अंतर- अदालत अपील के लिए कोई स्थान नहीं होगा, ये एक विषम, अस्वीकार्य और अकल्पनीय स्थिति पैदा करेगा। पत्र पेटेंट में निहित प्रावधान ऐसी व्याख्या की अनुमति नहीं देता है।"
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की,
"कलकत्ता उच्च न्यायालय के नियम अन्य उच्च न्यायालयों के समान हैं, कोई अपील नहीं ठहरेगी।
पश्चिम बंगाल राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रार्थना की कि राज्य की सिविल अपील को भी सूचीबद्ध किया जाए-
"हम बहुत चिंतित हैं। कृपया एक छोटी तारीख दें। यह कई अन्य मामलों को भी प्रभावित करता है।"
उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा था कि रेलवे क्षेत्रों (पश्चिम बंगाल राज्य में) से परे सीबीआई द्वारा जांच केवल पश्चिम बंगाल राज्य के उपयुक्त अधिकारियों द्वारा विशिष्ट सहमति के अधीन ही हो सकती है।
सीबीआई द्वारा दाखिल की गई अपील में, उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगा दी और सीबीआई को बिना किसी बाधा के मामले की जांच करने की अनुमति दी।
सोमवार को, यह प्रार्थना की गई कि एकल पीठ के फैसले के खिलाफ अपील भी 10 मार्च को सूचीबद्ध की जाए, जिसमें आग्रह किया गया कि यदि पत्र पेटेंट अपील को सुनवाई योग्य नहीं पाया जाता है, तो पक्षकार को उपाय- रहित नहीं छोड़ा जा सकता है।
मेहता ने तर्क दिया,
"उन्होंने अपील की कि वहां वो खो गए। वे एकल न्यायाधीश के सामने पहले हार गए, इसलिए वे डीबी के सामने चले गए। डीबी के बाद, वे अब यहां एक एसएलपी में हैं।"
प्रारंभ में, याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, एक अन्य अदालत में पेश हो रहे थे और पीठ के समक्ष उपस्थित होने में असमर्थ थे। तदनुसार, उसकी ओर से मामले को कुछ देर टालने की मांग की।
जब पीठ सीबीआई को अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय देने के लिए मामले को एक सप्ताह के लिए स्थगित करने के लिए इच्छुक थी, रोहतगी की ओर से आग्रह किया गया था कि इस मामले में पिछले सप्ताह एक नोटिस दिया गया था और इसे बाद में दिन में सुना जा सकता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आश्वासन दिया,
"हम केवल एक सप्ताह के लिए मामले को स्थगित कर रहे हैं। हम एक लंबा स्थगन नहीं दे रहे हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका में केंद्रीय जांच ब्यूरो की प्रतिक्रिया मांगी थी, जिसके तहत उसने बिना राज्य की सहमति के सीबीआई को पश्चिम बंगाल में रेलवे के माध्यम से कोयले के अवैध खनन और परिवहन से संबंधित एक मामले की जांच करने की अनुमति दी थी।
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस शाह ने सीबीआई के साथ भारत संघ और पुलिस अधीक्षक, भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को भी नोटिस जारी किया था। अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ता के खिलाफ कठोर कदम उठाने से अंतरिम संरक्षण देने से इनकार कर दिया।
पृष्ठभूमि
मामला ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड, रिट याचिकाकर्ता (अनूप माजी) सहित कुछ अन्य निजी व्यक्तियों और रेलवे के अधिकारियों के साथ मिलकर रेलवे के माध्यम से कोयले के अवैध खनन और परिवहन से संबंधित है।
आपराधिक साजिश, लोक सेवकों द्वारा आपराधिक विश्वासघात और लोक सेवकों द्वारा आपराधिक कदाचार या बेईमानी से धोखाधड़ी करके या उनके द्वारा सौंपी गई संपत्ति को या अपने नियंत्रण में किसी अन्य संपत्ति को, सार्वजनिक सेवकों के रूप में या अन्य लोगों को अनुमति देने पर सीबीआई द्वारा मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।