वक्फ एक्ट - समर्पण के सबूत के अभाव में एक जर्जर ढांचे को धार्मिक स्थल की मान्यता नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि 'समर्पण' या 'उपयोगकर्ता' या 'अनुदान' के सबूत के अभाव में, जिसके जरिए वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3 (आर) के संदर्भ में एक जीर्ण दीवार या प्लेटफॉर्म को 'वक्फ' माना जाएगा, उक्त ढांचे को नमाज अदा करने के लिए धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसके तहत जिंदल सॉ लिमिटेड को खनन के लिए आवंटित भूखंड से एक ढांचे को हटाने की अनुमति दी गई थी, जिस पर वक्फ बोर्ड, राजस्थान ने दावा किया था कि यह एक धार्मिक स्थल है।
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
8.12.2010 की एक लीज डीड के जरिए जिंदल सॉ लिमिटेड को खनन के लिए ढेडवास गांव, भीलवाड़ा, राजस्थान के पास पट्टा दिया गया था।
1963 में, राजस्थान राज्य के सर्वेक्षण आयुक्त, वक्फ ने एक सर्वेक्षण किया था और 'तिरंगा की कलंदरी मस्जिद' के ढांचे को वक्फ के रूप में अधिसूचित किया था। वक्फ रजिस्टर में प्रविष्टि के अनुसार मस्जिद का ढांचा 108 फीट मापा गया था। एक अन्य सर्वेक्षण वक्फ अधिनियम, 1995 के अनुसार किया गया था और 15.01.2002 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जहां सर्वेक्षण संख्या 931 में मस्जिद का ढांचा 525 फीट मापा गया था।
17.04.2012 को अंजुमन कमेटी ने वक्फ बोर्ड, राजस्थान को पत्र लिखकर सूचित किया कि मस्जिद की दीवार और चबूतरा पुर गांव की तिरंगा पहाड़ी पर स्थित है। यह भी बताया गया कि कई चांद पहले मजदूर वहां इबादत किया करते थे। हालांकि, जैसा कि गांव के बुजुर्ग सदस्य ने बताया किसी को भी मस्जिद में नमाज अदा करते नहीं देखा गया। वहां तक पहुंचना कठिन हो गया था।
पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि खनिक इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सहमत हुए थे। 18.04.2012 को वक्फ बोर्ड ने जवाब दिया कि मस्जिद के अवशेषों को खनन से बचाया जाना चाहिए। बोर्ड ने यह संदेह करते हुए कि अंजुमन कमेटी वक्फ के बजाय अपने हितों के लिए काम कर रही है, बोर्ड ने कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को सूचित किया।
एक प्राथमिकी दर्ज की गई और कमेटी से पैसा बरामद किया गया। इसके बाद, जिंदल सॉ लिमिटेड ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने अन्य बातों के साथ-साथ यह निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया कि खनन के लिए आवंटित भूखंड पर बना ढांचा मस्जिद है या नहीं।
कमेटी ने 10.01.2021 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। बहुसंख्यक मत से पता चला कि कि ढांचा न तो मस्जिद थी और न ही उसकी कोई पुरातात्विक या ऐतिहासिक प्रासंगिकता थी।
अपीलकर्ता की आपत्तियां
वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि विशेषज्ञ कमेटी में बोर्ड का कोई प्रतिनिधि नहीं है। चूंकि वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 83 के संदर्भ में वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारण किया जाना था, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत तय नहीं किया जा सकता था।
राजस्थान राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. मनीष सिंघवी ने प्रस्तुत किया कि खनन के लिए आवंटित भूखंड क्या एक सार्वजनिक भूमि थी, जिस पर खनन किया जा सकता था, यह राज्य सरकार द्वारा तय किया जाना था।
उन्होंने तर्क दिया कि संबंधित भूखंड अर्थात सर्वेक्षण संख्या 6731 को सरकार द्वारा एक सार्वजनिक भूमि के रूप में पहचानी गई थी और उसमें खनन की अनुमति नहीं थी।
उत्तरदाताओं की आपत्तियां
जिंदल सॉ लिमिटेड की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता श्री रंजीत कुमार और श्री सीएस वैद्यनाथन ने तर्क दिया कि खनन के लिए आवंटित भूखंड सर्वेक्षण संख्या 6731 था न कि सर्वेक्षण संख्या 931 जिस पर मस्जिद स्थित थी।
यह दावा किया गया था कि सर्वेक्षण संख्या 6731 में एक धार्मिक ढांचा मौजूद होने संबंधी रिकॉर्ड पर कोई दस्तावेज नहीं था। ढांचे के क्षेत्र के संबंध में वकील ने एक विसंगति पर प्रकाश डाला। एक सर्वेक्षण में यह यह 108 फीट और दूसरे में 525 फीट था। तस्वीरों से पता चलता है कि ढांचा जीर्ण-शीर्ण था और क्षेत्र दुर्गम था। यह दलील दी गई कि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे यह पता चले कि नमाज अदा की गई थी और वजू की कोई सुविधा नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो यह सुझाव दे कि सर्वेक्षण संख्या 931, जिस पर मस्जिद स्थित थी, सर्वेक्षण संख्या 6731, खनन के लिए आवंटित भूमि के समान थी। इसलिए यह राय थी कि जिस भूमि पर बोर्ड ने दावा किया था कि मस्जिद स्थित थी, वह जिंदल सॉ लिमिटेड को आवंटित नहीं थी।
इसके अलावा कोर्ट ने ढांचा के क्षेत्रफल में विसंगति को देखा। कोर्ट ने कहा कि सुनी-सुनाई बातों पर आधारित अंजुमन कमेटी के पत्र का कोई बाध्यकारी मूल्य नहीं था। यह कहते हुए कि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि ढांचे का इस्तेमाल मस्जिद के रूप में किया गया था और समर्पण या उपयोगकर्ता या अनुदान का कोई सबूत नहीं है जो इसे वक्फ अधिनियम की धारा 3 (आर) के तहत 'वक्फ' के रूप में अधिसूचित करता है।
कोर्ट ने कहा,
"समर्पण या उपयोगकर्ता के किसी भी सबूत के अभाव में, एक जर्जर दीवार या एक प्लेटफॉर्म को प्रार्थना/नमाज अदा करने के उद्देश्य से धार्मिक स्थल का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य सरकार का दावा है कि सर्वेक्षण संख्या 6731 सार्वजनिक भूमि थी, निराधार था।
केस शीर्षक: वक्फ बोर्ड, राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड और अन्य।
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 425
केस नंबर और तारीख: सिविल अपील संख्या 2788 ऑफ 2022 | 29 अप्रैल 2022
कोरम: जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम