फिजिकल डिस्टेंसिंग''का उपयोग करें : अस्पृश्यता के साथ ''सोशल डिस्टेंसिंग'' शब्द का संबंध होने के कारण इसके उपयोग पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Update: 2020-05-05 05:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट में एक पत्र याचिका दायर कर मांग की गई है कि सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह ''सोशल डिस्टेंसिंग'' शब्दावली का उपयोग बंद करें क्योंकि इस शब्दावली के साथ सामाजिक कलंक जुड़ा हुआ है। 

पत्र पीआईएल के तौर पर यह याचिका डाक्टर बी. कार्तिक नवयन ने दायर की है, जो हैदराबाद में बतौर वकील प्रैक्टिस कर रहे हैं। 

याचिका में कहा गया है कि कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए  जारी दिशा-निर्देशों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए  ''सोशल डिस्टेंसिंग'' की जगह ''फिजिकल डिस्टेंसिंग''या ''इंडिविजुअल डिस्टेंसिंग'' या ''सेफ डिस्टेंसिंग'' या ''डिसीज डिस्टेंसिंग'' शब्दावली का प्रयोग किया जाना चाहिए। 

पत्र याचिका में कहा गया है कि-

''.... उन्हें निर्देश दिया जाए कि वह ''सोशल डिस्टेंसिंग या सामाजिक दूरी'' शब्द का उपयोग बंद करें और इसकी जगह ''शारीरिक दूरी या फिजिकल डिस्टेंसिंग''या ''इंडिविजुअल डिस्टेंसिंग'' या ''सेफ डिस्टेंसिंग'' या ''डिसीज डिस्टेंसिंग'' या उस उपयुक्त शब्दावली का उपयोग करें, जो पहले विश्व में आई किसी ऐसी महामारी के लिए उपयोग किया गया हो। जो हमारे देश व समाज के लिए हितकारी हो और भारत के संविधान की भावना को बनाए रखें।''

सरकारी अधिकारियों की तरफ से जारी विभिन्न एडवाइजरी में इस शब्दावली का उपयोग भेदभावपूर्ण तरीके से किया गया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि

"यह पहले से ही मौजूद जाति आधारित सामाजिक प्रथाओं को और बढ़ावा देगा, जैसे  अस्पृश्यता का व्यवहार और  अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ जातिगत पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है।''

याचिकाकर्ता ने ऐसी ही एक घटना का उदाहरण देते हुए बताया कि एक तेलुगु कलाकार ने  अस्पृश्यता को बढ़ावा देने का काम किया है।

याचिकाकर्ता ने बताया कि-

''... तेलुगु सिने लिरिस्ट का एक कलाकार है, जो एक गैर-अनुसूचित जाति से संबंध रखता है। उसने खुद के द्वारा लिखी एक कविता का वीडियो बनाया। यह विडियो 1.16 मिनट का है, जिसमें उसने अपने गैर-अनुसूचित समुदाय  के लोगों से कहा है कि वह गैर-अनुसूचित जाति से संबंधित होने व अपनी प्रथाओं पर गर्व महसूस करें, जो  एससी एसटी के प्रति भेदभावपूर्ण रही हैं।

उसने कहा है कि  गैर-अनुसूचित के लोग गर्व से जिएं क्योंकि पूरा विश्व अपने आप को कोराना वायरस से बचाने के लिए उनकी प्रथाओं को स्वीकार कर रहा है। उक्त वीडियो ने तेलुगु राज्यों और अनुसूचित जाति संगठनों में नाराजगी पैदा की है ...।''

इसके अलावा याचिकाकर्ता ने बताया है कि डब्ल्यूएचओ ने भी ''फिजिकल डिस्टेंसिंग'' शब्द का उपयोग शुरू कर दिया है, इसलिए भारत को इस बारे में जल्दी से विचार करना चाहि और ''सोशल डिस्टेंसिंग'' शब्द के प्रसार पर रोक लगानी चाहिए।

इसके अलावा याचिका में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि  विभिन्न विशेषज्ञों ने भी इस शब्दावली के उपयोग की निंदा की है क्योंकि बाद में इस शब्दावली का उपयोग ''जाति के अस्पृश्यता और वर्चस्ववाद के नए औचित्य के रूप में किया जाएगा''। इसलिए इसकी जगह  उपयुक्त शब्द का उपयोग आज के समय की जरूरत  हैं।

''एमओएचएफडब्ल्यू (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय) द्वारा जारी एडवाइजरी में  सामाजिक दूरी की परिभाषा- 1) अन्य लोगों से कम से कम 6 फीट (लगभग 2 हाथ की लंबाई)  दूर रहें, 2) समूहों में इकट्ठा न हों, 3) भीड़-भाड़ वाले स्थानों से दूर रहें और सामूहिक समारोहों से बचें।

इसका मतलब यह है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए जो जरूरी है,वह ''फिजिकल डिस्टेंसिंग'' है ना कि ''सोशल डिस्टेंसिंग'' जबकि ''सोशल डिस्टेंसिंग''  सदियों पुरानी उस प्रथा जैसी है, जो  जाति आधारित अस्पृश्यता के लिए प्रयोग की जाती थी।"

याचिका में कहा गया है कि ''सोशल डिस्टेंस'' की जगह ''फिजिकल डिस्टेंस'' और ''सोशल सालिडैरिटी या सामाजिक संमवय''  शब्द को उपयोग करने की जरूरत है।

याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें 



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