'जब तक कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग अस्तित्व में नहीं आ जाती, मौखिक कार्यवाही के रिकॉर्ड की अनुपस्थिति न्यायिक व्यवस्था को सताती रहेगी': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट की मौखिक टिप्पणी को चुनौती देने वाली निर्वाचन आयोग की याचिका को खारिज करते हुए निर्णय में कहा कि जब तक कोर्ट की कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग अस्तित्व में नहीं आ जाती, तब तक मौखिक कार्यवाही के रिकॉर्ड की अनुपस्थिति न्यायिक व्यवस्था को सताती रहेगी।
कोर्ट ने कहा कि स्वप्निल त्रिपाठी बनाम सर्वोच्च न्यायालय (2018) 10 SCC 639 मामले के फैसले के तीन साल बीत गए हैं। इसमें न्यायिक कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के महत्व पर प्रकाश डाला गया था।
न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने यह भी कहा कि अदालतों के समक्ष मामले विधायिका और कार्यपालिका की गतिविधियों के बारे में और शिक्षा के उद्देश्य से सार्वजनिक जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालत नागरिकों को यह जानने के लिए एक मंच बन जाती है कि कानून का व्यावहारिक अनुप्रयोग उनके अधिकारों पर कैसे प्रभाव डालता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि दुनिया भर की कई अदालतें जैसे यूएस सुप्रीम कोर्ट, यूके सुप्रीम कोर्ट, यूके की अपील की अदालत और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय लाइव स्ट्रीमिंग या अन्य उपयुक्त ओपन एक्सेस पद्धति के माध्यम से कार्यवाही को सार्वजनिक रूप से लोगों को दिखाते हैं। गुजरात हाईकोर्ट ने भी हाल ही में न्याय के वितरण में जनता की भागीदारी बढ़ाने के लिए कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की।
सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने स्वप्निल त्रिपाठी मामले में कहा कि अदालती कार्यवाही को जनहित में लाइव-स्ट्रीम किया जाएगा। लाइव स्ट्रीमिंग संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मामलों के लिए है, जिसमें किशोर संबंधित मामले, यौन उत्पीड़न के मामलों, वैवाहिक मुद्दों के मामले शामिल हैं।
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि लाइव-स्ट्रीमिंग की प्रक्रिया के पूर्ण प्रभाव के लिए बेंच को संबोधित करने वाले अधिवक्ता और बार को संबोधित करने वाले न्यायाधीशों को अदालत को संबोधित करते समय माइक्रोफोन का उपयोग करना चाहिए। लाइव स्ट्रीमिंग संबंधित सभी पक्षकारों की पूर्व सहमति के साथ होगी और यदि सभी सहमत नहीं हैं तो संबंधित अदालत निर्णय लेगी। इसके साथ ही इस निर्णय के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। प्रसारण सामग्री पर अदालत का कॉपीराइट होगा। कार्यवाही और स्ट्रीमिंग के बीच उचित समय अंतराल होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो कुछ भी सार्वजनिक नहीं करना है उसे संपादित किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि,
"सूर्य का प्रकाश सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है। ओपन कोर्ट के सिद्धांत के विस्तार के रूप में लाइव-स्ट्रीमिंग यह सुनिश्चित करेगी कि वर्चुअल वास्तविकता के साथ अदालत की सुनवाई के बीच के इंटरफ़ेस के परिणामस्वरूप व्यापक जानकारी का प्रसार होगा और इसके साथ ही न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेही बनाना होगा।"
कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में सूचना के अधिकार के तहत उठाए गए विस्तृत प्रश्नों को खारिज कर दिया, जिसमें इस बात का स्पष्ट जवाब दिया गया कि रजिस्ट्री के विचार के अंतर्गत मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने जवाब देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने पिछले महीने कहा कि शीर्ष अदालत की ई-समिति अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए अपने नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने इसी बीच 26 अक्टूबर, 2020 से यूट्यूब (YouTube) पर कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू कर दी।
केस का शीर्षक: भारतीय निर्वाचन आयोग बनाम एमआर विजया भास्कर [CA 1767 Of 2021]
कोरम: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह
CITATION: LL 2021 SC 244
जजमेंट की कॉपी यहां पढ़ें: