केंद्र सरकार ने सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन गाइडलाइंस में संशोधन की मांग की; कहा- सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित प्वाइंट-बेस्ड सिस्टम ने वकालत के सम्मान को हल्का किया

Update: 2023-02-18 00:47 GMT

सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन की प्रक्रिया में सुधार संबंधी सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह की याचिका के मामले में केंद्र सरकार ने एक आवेदन दायर किया।

गुरुवार (16 फरवरी, 2023) को जब संबद्ध आवेदनों के साथ याचिका सुनवाई के लिए जस्टिस एसके कौल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस अरविंद कुमार के समक्ष पेश हुई, तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि केंद्र सरकार संशोधन के लिए आवेदन दायर करेगी।

यूनियन ने कहा कि उसकी ओर से इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (2017 के फैसले) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैराग्राफ 74 के संदर्भ में आवेदन पेश किया गया है। पैराग्राफ 74 में कोर्ट ने डेजिग्नेशन के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों पर फिर से विचार करने का प्रावधान किया था।

सम्मान को हल्का करता है

आवेदन में प्रस्तुत किया गया है कि 'सीनियर एडवोकेट', 'सीनियर काउंसलर', 'किंग्स काउंसल', 'क्वीन्स काउंसल' के टाइटल पारंपरिक रूप से वर्तमान या पूर्व राष्ट्रमंडल न्यायालयों में प्रक्टिस करने वाले प्रतिष्ठित वकीलों को प्रदान की जाती है। उन्हें असाधारण क्षमता, कानून के विकास में योगदान, वकालत के कौशल आदि के आधार पर यह सम्मान दिया जाता है। यह तर्क दिया गया कि 2017 के फैसले के माध्यम से जो प्रणाली विकसित हुई, जिसमें कोई भी व्यक्ति जो प्वाइंट-बेस्‍ड क्राइटेरिया को पूरा करता है वह सीनियर एडवोकेट बनने के योग्य हो जाता है, इस 'सम्मान' की गरिमा को हल्का करती है।

पब्लिकेशन और इंटरव्यू के कारण अन्यथा योग्य उम्मीदवार बाहर हो रहे हैं

आवेदन में दिया गया तर्क यह है कि पब्लिकेशन और इंटरव्यू अत्यधिक व्यक्तिपरक हैं और एक उम्मीदवार का मूल्यांकन करने के लिए प्रभावी पैरामीटर नहीं हो सकते हैं। ‌डेजिग्नेट होने का सम्मान अदालत में उनके प्रदर्शन और बार में उन्हें दिए गए सम्मान पर आधारित है - इसका पब्लिकेशन और इंटरव्यू के साथ कोई संबंध नहीं है।

आवेदन में जोर देकर कहा गया है ‌कि अनुभव ने दिखाया है कि उक्त आवश्यकताएं डेजिग्नेशन के मुद्दे के लिए प्रासंगिक नहीं हैं और अक्सर अन्यथा योग्य उम्मीदवारों को बाहर करने का कारण बनती हैं।

पब्लिकेशन को दिया गया वेटेज में अस्पष्ट

आवेदन में यह भी प्रस्तुत किया गया है कि पब्ल‌िकेशन को दिए गए वेटेज में अस्पष्टता है। कहा गया है -

"...यह सामान्य ज्ञान है कि फर्जी और दिखावटी पत्रिकाओं का बड़े पैमाने पर प्रसार हो रहा है, जिसमें कोई भी व्यक्ति मामूली राशि का भुगतान करके सामग्री और गुणवत्ता के अकादमिक मूल्यांकन के बिना अपने लेख को 'प्रकाशित' करा सकता है।"

उसी के मद्देनजर, यह प्रस्तुत किया गया है कि पब्ल‌िकेशन की आवश्यकता पर विचार करते समय एक मानक बनाए रखा जाना चाहिए। यह यह भी सुझाव दिया गया है कि प्रकाशन की विशाल मात्रा को प्रकाशनों की विषय वस्तु पर वरीयता नहीं देनी चाहिए।

सिक्रेट बैलेट के जर‌िए साधारण बहुमत के नियम का सहारा लिया जाए

यह बताया गया है कि चूंकि सिक्रट बैलेट के जर‌िए मतदान पर जोर नहीं दिया जाता है, उम्मीदवार स्थायी समिति के बीच प्रचार करते हैं और जजों से भी संपर्क करते हैं, जो एक अस्वास्थ्यकर प्रथा है। आवेदन में सिक्रट बैलेट के जर‌िए साधारण बहुमत के पिछले नियम की बहाली की मांग की गई है।

आवेदन में कहा गया है-

"इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया (2017) 9 एससीसी 766 के फैसले में पारित निर्देशों में संशोधन के लिए दिशा-निर्देश पारित करें और निर्देश दें कि प्रत्येक संवैधानिक न्यायालय में सभी माननीय जजों की एक पूर्ण अदालती बैठक में आवेदक के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के बाद सीनियर एडवोकेट का डेजिग्नेशन प्रदान किया जाएगा, और ऐसा निर्णय केवल सिक्रेट बैलेट का सहारा लेकर और साधारण बहुमत से पारित किया जाएगा।

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